एजुकेशन मिरर: शिक्षा के क्षेत्र में नये लेखकों को मिले प्रोत्साहन और पहचान

एजुकेशन मिरर का नया लोगो शिक्षा के क्षेत्र में स्वायत्ता, स्वतंत्रता नवाचार और रचनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करता है।
नये सत्र 2018-19 में शिक्षा के क्षेत्र में ज़मीनी स्तर होने वाले प्रयासों, चुनौतियों और उनके समाधान के विकल्पों को रेखांकित करने में एजुकेशन मिरर सहयोग कर सके, हमारी यही अपेक्षा है। ज़मीनी स्तर पर आने वाली चुनौतियों को हम जितना-जितना साफ-साफ पहचान सकेंगे, उनके समाधान का रास्ता खोजना भी उतना ही स्पष्ट होगा।
21वीं सदी में शिक्षा के स्पेश को प्रभावित करने में टेक्नोलॉजी की भूमिका बेहद अहम है। मगर यह भूमिका शिक्षकों की जगह ले ले, स्थिति इतनी भी गंभीर नहीं है। क्योंकि शिक्षण की प्रक्रिया में मानवीय संवाद और संवेदनशीलता की जो भूमिका है, उसकी जगह कोई भी तकनीक नहीं ले सकती है।
कैसे भेजें अपनी कहानी
आप अपनी स्टोरी हमें मेल कर सकते हैं, एजुकेशन मिरर के फेसबुक पेज़ से मैसेज कर सकते हैं और सीधे ह्वाट्सऐप के जरिए भी आप अपनी स्टोरी हमारे साथ सीधे साझा कर सकते हैं। कहानी लिखते समय ध्यान रखें कि यह आपके अनुभवों, विचारों व छोटे-छोटे प्रयोगों, प्रयासों व नवाचारों पर केंद्रित हो सकती है।
नये लेखकों को मिले प्रोत्साहन और पहचान
एजुकेशन मिरर का विज़न है शिक्षा के क्षेत्र में नये लेखकों को प्रोत्साहित करना और उनके प्रयासों को पहचान देना है। ताकि भावी जीवन में लेखन के माध्यम से भारतीय भाषाओं में सामग्री के निर्माण और प्रसार में सक्रिय योगदान दे सकें।

एजुकेशन की चर्चा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र में आयोजित एक सेमीनार में करते हुए वृजेश सिंह
हाल ही में जारी एक शोध के मुताबिक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं में मौजूद सामग्री का 0-1 प्रतिशत ही भारतीय भाषाओं में हैं। इसमें से हिंदी, मराठी, गुजराती और अन्य भाषाओं का प्रतिशत तो और भी कम होगा। ऐसे में जरूरी है कि हम भारतीय भाषाओं में लेखन और पढ़ने को मिलकर प्रोत्साहित करें। अगर आप कोई डायरी, नोट्स, रिफलेक्शन या किसी सिद्धांत या स्कूल विज़िट के अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।
काम के साथ सोचने व चिंतन को मिले बढ़ावा
शिक्षा के क्षेत्र में काम के साथ-साथ चिंतन करने वाले शिक्षकों की परिकल्पना की गई है ताकि शिक्षक खुद को एक रिफलेक्टिव प्रेक्टिसनर के रूप में देख सकें। शिक्षक अपने-अपने स्तर पर प्रेक्टिस यानि पढ़ाने और विचारों को क्रिया के रूप में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
बस उसके ऊपर चिंतन या रिफलेक्शन करने यानि सोचने की जरूरत है, ऐसे अनुभवोंं पर चिंतन से नये ज्ञान का सृजन होता है। नवाचारों की उत्पत्ति होती है। ऐसे अनुभवों का भी एजुकेशन मिरर के प्लेटफार्म पर हार्दिक स्वागत है।
पढ़ने की आदत व संस्कृति का विकास
भावी शिक्षकों, शिक्षकों व युवाओं के साथ-साथ आम जनमानस में पढ़ने की आदत का विकास करना। पढ़ने की आदत और संस्कृति को प्रोत्साहित करना एजुकेशन मिरर के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है। पढ़ने की आदत हमें अपने विचारों को व्यवस्थित तरीके से व्यक्त करने, अपने जीवन को समझने, दूसरों के नजरिये से जीवन को देखने और लिखित शब्दों के माध्यम से जीवन के विविध अनुभवों तक पहुंचने का रास्ता देती है। इसलिए जरूरी है कि हम खुद भी पढ़ें और बतौर अभिभावक अपने घर, परिवार और कार्यस्थल पर पढ़ने की संस्कृति को प्रोत्साहित करें।
पढ़ने की आदत और संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए छोटे-छोटे स्टेप लिये जा सकते हैं जैसे अपने विद्यालय की लायब्रेरी को सक्रिय बनाना, बच्चों की पत्रिकाओं को नियमित रूप से मंगाना, स्कूल की असेंबली में कहानी का वाचन और उस पर चर्चा। परिवार में पत्रिकाओं को लाना और बच्चों को पढ़ने के लिए देना। अपने लिए भी जरूरी पत्रिकाओं को पढ़ना और अपने ज्ञान में वृद्धि करना। बच्चे अवलोकन करते हैं, उसे अपनी ज़िंदगी में उतारते हैं इसलिए जरूरी है कि हम खुद भी पढ़ें, अगर हम उनसे पढ़ने की अपेक्षा रखते हैं।
Thank you so much Sir/Mam. Apna naam bhi likh sakte hain comment ke saath. Koi issue nahin hai.
बहुत सुन्दर बृजेश सर,
आपके अनुभवों से हमें शिक्षा के क्षेत्र में आगे नवाचार की और बढ़ने की प्रेरणा मिलती है