निरंतरता के सवाल का समाधान क्या है?
किसी योजना की जोर-शोर से शुरुआत करना एक बात है। इसे निरंतर उत्साह और सक्रियता के साथ जारी रखना दूसरी बात है। अपनी मौजूदगी और प्रयासों से अन्य लोगों को भी प्रेरित करना बिल्कुल तीसरी बात है। शिक्षा के क्षेत्र में हमारे प्रयास अगर तीसरी श्रेणी के आसपास पहुंच रहे हैं, तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमारे प्रयास एक सार्थक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
ऐसे ही प्रयास लंबे समय में एक सशक्त उदाहरण के रूप में हमारे सामने आते हैं। उदाहरण के तौर पर स्कूल में असेंबली तो रोज़ होती है, पर क्या स्कूल में होने वाली प्रातःकालीन सभी वह असर पैदा करने में समर्थ है जो बच्चों को दिनभर के लिए ऊर्जा और उत्साह से भर सके। स्कूल में आने के बाद उनको समाज के बाकी सारे तनाव और दबाव से मुक्त कर सके।
किसी गतिविधि के रोज़ होने से उसका महत्व कम नहीं होता
अगर आपका जवाब नहीं में है तो फिर यह सोचने की जरूरत है कि रोज़मर्रा होने से किसी चीज़ का महत्व कम नहीं हो जाता। या फिर कोई चीज़ स्कूल की रूटीन में शामिल हो गई है तो फिर उसे किसी रूटीन की भांति कर देने से उसके करने का लक्ष्य और उद्देश्य कहीं खो जाएगा।
उदाहरण के तौर पर क्या बच्चों के लिए होने वाली शनिवारीय सभा एक औपचारिकता भर है? अगर हाँ, तो फिर ऐसी सभा से बेहतर है कि बच्चों को स्वतंत्र समय दिया जाये जिसमें वे अपने मन का कुछ कर सकें। विचारों का अभाव और किसी काम को करने में औपचारिकता का भाव बहुत से छात्र-छात्राओं और शिक्षकों का समय खराब होता है।
इस समय के सदुपयोग का एक उपाय है कि हम अपने काम को खुद समालोचना वाले भाव से देखें और विचार करें कि अगर कोई काम सिर्फ औपचारिकता या आदेश के कारण हो रहा है तो उसे कैसे अर्थपूर्ण बनाया जा सकता है? इस सवाल के जवाब की तलाश में एक बेहतरी की उम्मीद छुपी है। आप भी खोजिए, हम भी अपनी तलाश जारी रखते हैं।
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