शिक्षा विमर्श: ‘सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होता, काम करने से काम होता है’
शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव का हर प्रयास आपके धैर्य और सतत प्रयास की परीक्षा लेता है। जो इस परीक्षा में पास होने के इरादे से उतरते हैं, उनको सफलता जरूर मिलती है। भले ही यह सफलता आंशिक ही क्यों न हो।
शिक्षा के क्षेत्र में कई सालों का अनुभव बताता है कि हमें धैर्य के साथ काम करना चाहिए। अपनी असफलताओं से सीखना चाहिए। दूसरों के अनुभवों से भी सीखना चाहिए, मगर प्रयास करने की अपनी चाहत पर किसी भी नकारात्मक विचार को हावी नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि आपको अक्सर सुनने को मिलेगा कि हम तो सब करके देख चुके हैं, स्थिति में कोई भी बदलाव नहीं हुआ। आप भी करके देख लीजिए।
बाहरी ‘डर’ बनाम बच्चों से लगाव
शिक्षा के क्षेत्र में बाहरी बदलाव को मूर्त रूप देने में डर की बड़ी भूमिका होती है। यह भूमिका बाहरी निरीक्षण या संभावित विज़िट के पहले चीज़ों को बेहतर करने से जुड़ी होती है। मगर दीर्घकाल के बदलाव को मूर्त रूप देने में उन प्रयासों की भूमिका होती है कि जो विद्यालय से जुड़े विभिन्न लोगों के साथ साझीदारी के माध्यम से किये जाते हैं।
वे प्रयास भी आगे बढ़ने में सफल होते हैं, जिनमें बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से भागीगारी का अवसर दिया जाता है। बच्चों को भागीदारी देने से उनके नेतृत्व कौशल में निखार आता है, वे जिम्मेदारी लेना सीखते हैं। जब वे किसी काम की जिम्मेदारी खुद लेते हैं तो उसे बेहतर करने के लिए वे पूरी लगन और मेहनत केसाथ लग जाते हैं। बच्चों की क्षमता पर भरोसा और उनके छोटे-छोटे प्रयासों को प्रोत्साहित करना काफी मदद करता है।
उदाहरण के साथ करें बात
जब हम किसी स्कूल में बदलाव का प्रयास करते हैं तो हमें उदाहरण के साथ बात करनी होती है। अगर यह उदाहरण उसी स्कूल का है, जिसे शिक्षक साथी भी देख सकते हैं तो उनका अपने बच्चों पर भरोसा बढ़ता है। वे सहयोग के लिए खुद आगे आते हैं। मगर बात यहां तक पहुंचे, इसके लिए सिर्फ बातों से बात नहीं बनेगी। आपको काम करना होगा और एक अच्छा उदाहरण उनके सामने रखना होगा।
इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें