आलेखः ‘बचपन को कूड़े की तलाश में खो जाने से बचाना होगा’
जब सुबह हमारे घर के बच्चे अपने कन्धों पर अपना बस्ता लेकर स्कूल जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ कुछ बच्चे अपने कन्धों पर बोरिया लेकर कूड़ा बीनने जाते हैं , जिन्दगी की जद्दोजहद और अपना पेट भरने के लिए इसी कूड़े-कचरे को अपनी आजीविका का सहारा बना लेते हैं। ये मासूम बच्चे इसी को अपना सहारा मान कर जिंदगी गुजारने लगते हैं , जहाँ समाज के बाकी बच्चों को माँ-बाप का साया नसीब होता है ,वहीं दूसरी तरफ इन बच्चों को खुले आसमान का साया और गन्दी ज़मीन ही नसीब होती है।
‘बचपन से महरूम बच्चे’
इन बच्चों को नहीं पता कि बचपन का प्यार क्या होता है , माँ की लोरी कैसी होती है , उन्हें यह नहीं पता कि चमन के फूल किस तरह के होते हैं, तितलियाँ किस तरह की और कितने रंगों की होती हैं , शायद वे इन सब के बारे में नहीं सोचते हैं| वे दिनभर कूड़े में कुछ ढूंढते रहते हैं और रात के खौफनाक अँधेरे में कहीं पर भी सो जाते हैं | उन्हें यह पता ही नहीं कि सूरज कब निकलता है , चिड़ियाँ गाना कैसे गाती हैं ,उन्हें यह नहीं पता कि स्कूल की तख्ती कैसी होती है , स्कूल का बस्ता कैसा होता है| हाँ, उन्हें यह पता है तो बस दो वक़्त की रोटी कमाना और रात के अँधेरे में सोने की जगह को तलाश करना।
वास्तव में उन्हें नहीं पता कि रात के टिमटिमाते हुए सितारे उनके लिए हैं , चाँद उनका मामा है, उन्हें रिश्तों की कोई पहचान नहीं है , और न ही इनकी कोई ईद और दिवाली होती है , जिस दिन यह बच्चे रोटी कमा लेते हैं बस वह दिन इन के लिए ईद , नहीं तो यह दिन भर फाकों की होली खेलते फिरते हैं |
बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की जरूरत है
ये बच्चे बहुत सारी चीजों से वंचित हैं , इन के मुँह पर हँसी और आँखों में लाखों सपने हैं , यह हमारे देश के कूड़े पर खिलते हुए फूल हैं | पर हम में से ज्यादातर लोग इन पर एक नज़र डालते हैं और आगे बढ़ जाते हैं , इन बच्चों को हम जमीन व जायदाद तो नहीं दे सकते ,तो क्या हम इनकी बेहतर जिंदगी के लिए सोच भी नहीं सकते हैं ?
अगर शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के आठ साल बाद (शिक्षा का अधिकार कानून 1 अप्रैल 2010 में लागू हुआ था्) भी बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, आजीविका के लिए कूड़ा बीनने को मजबूर हैं तो यह हमारे लिए यह घोर चिंता का विषय है। इस हालात को बेहतर बनाने की जरूरत है ताकि कोई मासूम कूड़े के ढेर में अपने बचपने को जीने से महरूम न रह जाये।
(एजुकेशन मिरर के लिए यह आलेख मोहम्मद हबीब ने लिखा है। आप मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद से मॉस्टर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहे हैं। .यह आपका पहला आलेख है।)
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