ऑनलाइन क्लासेज़ः छोटे शहरों, कस्बों, गांवों में रहने वाले छात्रों का क्या होगा?

edu-1इस कोरोना संकट के समय #ऑनलाइन_क्लासेज की धूम मची हुई है। मेरे शहर (रिसड़ा,हुगली) में जहाँ अधिकांश फैक्ट्रियों और कोलकाता के आफिसों में काम करने वाले निम्न मध्यवर्ग/निम्न वर्ग के लोग रहते हैं। यहाँ पिछले बीस वर्षों में इंग्लिश मीडियम स्कूलों की बाढ़ सी आ गयी है। सेंट जेवियर्स, सेंट मेरी, लोरेटो, गोसपेल, स्टेपिंग स्टोन, लिटिल बड्स, विवेकानंद और न जाने क्या-क्या।

इन स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी पहली पीढ़ी के हैं,उनके माता-पिता कभी स्कूल नहीं गए और गए भी तो हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों में।

इनमें से अधिकांश स्कूल आईसीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी न किसी मैम या सर से ट्यूशन पढ़ रहे होते हैं। अभी तक इन विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकें नहीं मिलीं हैं,पर ऑनलाइन क्लासेज स्टार्ट हो गई हैं।

ऑनलाइन लर्निंग की वास्तविक चुनौतियां क्या हैं?

ऑनलाइन क्लास के नाम पर सिर्फ बच्चों को होम वर्क दिया जा रहा है, और इस तरह चैप्टर खतम। पर,इन स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थियों के पास डेस्कटॉप/लैपटॉप तो दूर एंड्रोएड फ़ोन तक नहीं है और यदि एंड्रोएड फ़ोन है भी तो उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है।

बच्चों को घर पर होम वर्क समझाने वाला कोई नहीं है,क्योंकि माता-पिता को अंग्रेजी आती नहीं है। इसके कारण बच्चों को किसी टॉपिक को समझने में कठिनाई होती है,फिर ऑनलाइन में जहाँ सिर्फ प्रश्न देकर पाठ को कम्पलीट किया जा रहा है ये बच्चे क्या समझ पा रहे होंगे?? ऑनलाइन क्लास दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूरू आदि महानगरों में चल तो सकता है, वह भी एक छोटी आबादी के लिए। छोटे शहरों, कस्बों, गांवों में रहने वाले छात्रों का क्या होगा?

(कोलकाता से संतोष सिंह ने एजुकेशन मिरर के लिए इस समसामयिक मुद्दे पर लिखा है। आप 25 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं। वीडियो कंटेंट व स्टोरी के लिए एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। )

1 Comment

  1. संतोष जी आप ने जो लिखा है, ऐसी स्थिती सभी जगह है, ऑनलाईन के नाम पे padhana to ho raha hai, lekin bachche kitana sikh rahe hai, ye prasha hi hai.

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