मेरी पहली कहानीः मासूम अजय

इस कहानी की लेखिका दुर्गा ठाकरे मध्यप्रदेश के हरदा दिले में एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं।
अजय आज विद्यालय से जल्दी ही लौट आया, घर में कदम रखते ही उसे उसकी सौतली माँ शांता से डांट पड़ गई जिससे वह और भी दुखी हो गया। विद्यालय में भी उसके सहपाठियों ने उसका खूब मजाक उड़ाया था। वह दुखी मन से अपने छोटे से बगीचे में आकर भूखा-प्यासा बैठ गया। उसका रोने का मन कर रहा था। अजय सोचने लगा कि काश! आज मेरी माँ होती तो कितना अच्छा होता? वह मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़कर क्यों चली गई?
अजय जब केवल 3 साल का था, जब उसकी माँ यमुना लम्बी बीमारी के कारण उसको पिता की गोद में छोड़कर स्वर्ग-लोक चली गई। छोटा सा अजय माँ -माँ कहता हुआ रोता रहता था। उसके पिता मजदूरी जब करने जाते तो उसे पड़ोस की एक दादी के पास छोड़कर चले जाते। ताकि वह उनके पास दिनभर आराम से रह सके।
दादी के घर आने वाली पड़ोस की औरतें उससे पूछतीं कि उसकी माँ कहां गई? अजय उन औरतें के ऐसे प्रश्न सुनता और कुछ सोचता हुआ सा गुमसुम रह जाता। सांझ होते अजय के पिता उसको अपने साथ घर ले आते, तब जाकर अजय को अच्छा लगता। वह बड़ी ही मासूमियत से पिता से प्रश्न करता कि उसकी माँ कहां गई? राम सिंह उसके इस प्रश्न पर मौन होकर सोच में पड़ जाते। दोनों को ही यमुना की कमी खलती,पर ईश्वर के आगे किसकी चलती है?
पिता का दूसरा विवाह
कुछ दिन इसी तरह बीत गए। राम सिंह को रिश्तेदारों और समाज के लोगों ने दूसरा विवाह करने का सुझाव दिया किअजय को नई माँ मिल जाएगी, तो बेचारा माँ की ममता और दुलार से वंचित नहीं रहेगा। यही सब सोचकर राम सिंह ने रिश्तेदारों की मदद से पास के गांव की एक मजदूर की पुत्री शांता से विवाह कर लिया। शांता नए परिवार में घुलमिल गई और जल्दी ही उसने घर-गृहस्थी सम्भाल ली। धीरे-धीरे दिन बीतते गए, अब अजय का एक छोटा भाई रवि भी परिवार में सदस्य बनकर आ गया था। शांता का सारा वक्त रवि की देखभाल और घर के कामों में बीतने लगा। अजय की अब वह पहले की तरह देखभाल और प्यार दुलार नहीं कर पाती थी। एक तरीके से वह अजय के प्रति वह जाने-अनजाने उदासीन हो गई थी। नई माँ शांता के उसके प्रति उदासीनता से विपरीत प्रभाव पड़ने लगा।
अब अजय छह साल का हो गया था। उसके पिता ने पड़ोस के सरकारी स्कूल में उसका दाख़िला करना दिया। अब विद्यालय जाने लगा था ,लेकिन विद्यालय में पढ़ने-लिखने में उसका मन नहीं लगता, वह सारा दिन गुमसुम सा रहता था। जबकि उसकी हमउम्र के सभी बच्चे खूब खेलते , पढ़ते और शरारत करते, लेकिन अजय को इन सबमें कोई रुचि नहीं थी। उसे इन सबसे एक चिढ़ सी होने लगती थी और उसे अकेले बैठना अच्छा लगात था।
अजय को विद्यालय जाना पसंद नहीं आता। उसे बात करना और किसी के साथ खेलना कुछ भी पसन्द नहीं आता था। शिक्षक भी उस पर स्कूल में ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। उसको नालायक, गधा, मूर्ख आदि कहकर पुकारते थे। इसके कारण बाकी बच्चे भी उसका मजाक उड़ाते और उसे बार-बार चिढ़ाते थे।
इसके अलावा अजय को घर के सभी छोटे-बड़े काम जो उसकी नई माँ शांता बताती उसे करने पड़ते थे। अगर वह नही करता था तो उसे सौतेली माँ के कोप का भाजन भी बनना पड़ता था। इसके कारण कभी-कभी उसे भूखा भी रहना पड़ता था। पिता अब अपने मजदूरी के काम में ज्यादा व्यस्त रहने लगे थे। वे देर शाम को घर आते और भोर होते ही फिर मजदूरी करने चले जाते। राम सिंह अपने बड़े बेटे अजय और छोटे बेटे रवि में यूँ तो कोई भेद नहीं करता था, लेकिन दो वक्त की रोटी की जुगत में वह अजय को पहले की तरह लाड़-प्यार और वक़्त नही दे पाता था। वह शांता की गृहस्थी में ज्यादा हस्तक्षेप भी नहीं करता था। इसलिए भी अजय के मन को पढ़ पाने और उसकी जरूरत को समझ पाने में वह सक्षम नहीं था। इन सब बातों का अजय के मन की मासूमियत पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।
‘अपनी माँ का राजा बेटा’
आज कक्षा में भी उसे साथ पढ़ने वाले लड़कों ने उसको बहुत सताया था, जिससे वह गुस्सा हो गया और भागकर घर आ गया। घर आते ही रवि को खिलाने के लिए उठाया तो भूखा रवि रोने लगा और शांता ने रवि के रोने सारा इल्जाम अजय पर मढ़ दिया। अब तो अजय पहले से ज्यादा दुखी होकर भूखा ही जाकर बगीचे में बैठ गया।
अजय सोचने लगा कि क्या गलती है मेरी जो मेरे साथ ही बार-बार ऐसा होता है। मेरी माँ होती तो क्या मुझे भूखा रहने देती? मेरी माँ कभी ऐसा नहीं करती , मैं उनका राजा बेटा था। अगर वे ये सब जानतीं तो मुझे सीने से लगाकर अपने आँचल में छुपा लेती। मेरे सिर को सहलाती। मुझे लाड़-प्यार करतीं और कभी भी ऐसे ही रोता हुआ न छोड़ती। हाय! मेरी माँ तुम कहाँ हो? लौट क्यों नहीं आती? इस प्रकार विलाप करते उसकी आँखों से आँसूओं की धाराएं बहने लगी। वह एक हाथ से अपने आँसू पोछता, मगर उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। शाम होने तक वह बगीचे में उसी तरह बैठा रहा। उसकी माँ ने कोई खबर तक न ली। शाम को जब उसके पिताजी मजदूरी करके लौटे, तो अजय को वहाँ न पाकर उन्होंने शांता से पूछा, ” अजय कहाँ गया,कहीं नजर नहीं आ रहा है। तो शांता ने कहा कि होगा यहीं-कहीं , उसे काम न करना पड़े इसलिए कहीं बैठा होगा।
एक काम नही सुनता तुम्हारा लाड़ला , मैं क्या -क्या करूँ , मेरी छाती पर लाकर सबको पटक दिया है। एक पल का सुख न देखा मैंने, तुम्हारे झोपड़े में। इस तरह कहते हुए शांता ने अपने मन की भड़ास निकाल ली। अब राम सिंह ने कुछ न कहना ही ठीक समझा। उसने आस-पड़ोस में अजय को पूछा। लेकिन वहाँ न मिलने पर बगीचे में उसे देखने गया। वहाँ उसने देखा कि अजय सिसकता हुआ पेड़ तले बैठा था। राम सिंह ने कहा,” क्यों रे! अजय यहाँ क्यों बैठा है ,मैं कब से तुझे खोज रहा हूँ।”
अजय – कुछ नही बाबा ऐसे ही बैठा था
अजय ने अपनी सिसकियों को रोकते हुए कहा।
रामसिंह -” चल घर चल , रवि भी रो रहा हैं, उसे सम्भालना ,और तेरी माँ के कामों में मदद क्यों नहीं करता। कितना परेशान हो जाती है। अजय चुपचाप रामसिंह के साथ घर की ओर चल पड़ा।
तालाब के किनारे, दिन बीते सारे
इस तरीके से धीरे-धीरे समय बीतता रहा और अजय पाँचवीं कक्षा पास करके पड़ोस के माध्यमिक स्कूल में पढ़ने चला गया। अजय नये स्कूल में खुद को ढालने की पूरी कोशिश कर रहा था। उसके कुछ पुराने सहपाठी पीछे छूट गये। एक दिन अजय घर से विद्यालय के लिए तैयार होकर निकला, लेकिन वह विद्यालय न जाकर तालाब के किनारे बैठ गया। इसी दिन उसके स्कूल में एक नई शिक्षिका सीमा की ज्वाइनिंग थी। सीमा एक प्रशिक्षित और प्रतिभाशाली शिक्षिका थीं। वे बच्चों को रचनात्मक कार्यों में शामिल करतीं और बच्चों के साथ संवेदनशीलता के साथ जुड़ाव रखती थीं।
सभी शिक्षक साथियों से परिचय होने के बाद शिक्षिका सीमा कक्षा छठीं में गईं, इसी कक्षा में अजय भी पढ़ता था। कक्षा में अनजान व्यक्ति को देखकर बच्चे अचानक से शांत हो गये। सीमा को देखकर कुछ बच्चे खुश हुए ,वहीं कुछ बच्चे डरे सहमे से चुप होकर बैठ गए। सीमा ने बड़े ही सरल और हँसमुख होकर सभी बच्चों को हेलो कहा और अपना परिचय दिया। बच्चों की जिज्ञासा और भय को दूर करने के लिए उन्होंने बच्चों से एक-एक कर उनका परिचय लिया और इसके बाद उनसे उनकी पसन्द के बारे में पूछा।
सीमा ने देखा कि अभी भी कुछ बच्चे अब सहमे हुए हैं तो उन्होंने एक खेल गतिविधि करवाना उचित समझा। इसमें उन्होंने भी बच्चों के साथ हिस्सा लिया। गतिविधि करवाने के बाद उन्होंने देखा कि अब बच्चों का भय दूर हो गया था। बच्चे उन्हें नई मैम, नई मैम कहकर पुकार रहे थे।
सीमा- बच्चों कैसी लगी गतिविधि?
सभी बच्चे एक स्वर में बोल पड़े , ” बहुत अच्छी गतिविधि लगी मैम।
सागर – क्या आप रोज ऐसे खेल खिलाएंगी?
सीमाः हाँ, जरूर और भी बहुत सारे खेल हैं हम सब मिलकर खेलेंगे।”
नई शिक्षिका की सुनकर बच्चों ने ताली बजाई। इसके बाद शिक्षिका सीमा ने कक्षा में सभी बच्चों से एक -एक कर अपनी पसंद बताने को कहा। वह अपनी डायरी में सभी बच्चों के नाम और उनकी पसंद को सुनते हुए नोट कर रही थीं। सीमा ने जाने से पहले सभी बच्चों को अपनी -अपनी कॉपी में परिवार के सदस्यों का परिचय और आसपास की चीजों के नाम लिखकर लाने को कहा। आज का सारा दिन इन्हीं गतिविधियों में बीत गया और छुट्टी की घण्टी बज गई।
स्कूल की छुट्टी के बाद राकेश ,संजय ,पिंकी और रानी तालाब वाले रास्ते से ही अपने -अपने घर लौट रहे थे। अचानक ही उन सभी की नजर तालाब के किनारे बैठे अजय पर पड़ी। राकेश बोला कि चलो आज इसे ऐसा सबक सिखाते हैं कि ये कभी विद्यालय ही नही आएगा, रोतला कहीं का। इसके बाद तीनों ने उसकी हाँ में हाँ मिलते योजना बनाई की नई मिस के बारे में बताकर इसे डराते हैं। संजय ने अजय के करीब जाकर उससे पूछा -“क्यों रे! अजय आज तू विद्यालय क्यों नही आया? पता हैं आज नई मैम आई थीं, जिसने सबको नया -नया गृहकार्य दिया और जो उसे करके नहीं लाएगा, उसे कल छड़ी से मार पड़ेगी।”
स्कूल में नई शिक्षिका का ‘डर’
पिंकी बोली कि स्कूल में आने वाली नई मैम बहुत ही खतरनाक हैं। वह उन सब बच्चों को तो कल जरूर मारेंगी जो आज विद्यालय नहीं आये थे। तुझे तो अब खूब मार पड़ेगी। यह सुनकर अजय ने चिड़चिड़ाहट में आव देखा न ताव और पत्थर उठाकर राकेश, संजय, पिंकी और रानी की तरफ फेंका। इसके बाद वे चारो वहाँ से अपने घर भाग गये।
अजय अभी भी तालाब के पानी की ओर कुछ सोचते हुए देख रहा था। वह अचानक से उठ खड़ा हुआ और अपने घर की ओर चल पड़ा। घर पहुँचते ही माँ ने उससे पूछा, “क्यो रे! पाठशाला की छुट्टी तो कभी की हो गई थी और तू अब आ रहा है? घर का काम कौन करेगा? खाने को तो सब आ जाते हैं। लेकिन काम करते समय इनकी नसें दुखने लगती हैं। जल्दी से जा और पानी भरकर चौके में रख दे।”
अजय चुपचाप पानी का बर्तन उठाकर हैंडपंप की और चल देता है। हैंडपंप पर पानी भरने के बाद बड़े बर्तन को उठाते समय उसका पैर फिसल गया और सर पर रखी गुंडी नीचे गिर गई। अजय के पैर में मोच आ गई। वह वहीं पर दर्द से चीख़ता हुआ बैठ गया। आसपास की औरतें जो वहाँ पानी भर रही थीं। उन्होंने उसे उठाय। कुछ देर बाद जब रोते हुए अजय घर पहुँचा तो माँ उसके हाथ में खाली बर्तन देखकर गुस्से में बरस पड़ी। उसकी माँ ने झिड़कते हुए बोला कि इससे तो एक काम भी ढंग से नही होता।”
इसके बाद अजय वहां से उठ कर लंगड़ाते हुए अपने बगीचे में पहुँच गया। उसका दाँएं पैर में मोच और सूजन आ गई थी। इसके कारण उसे चलने में परेशानी हो रही थी। अजय अपने आप से बोलने लगा, “माँ को जब देखो तब काम की पड़ी रहती है। मेरी माँ होती तो देखते ही दौड़कर अपने कलेजे से लगा लेती। पैर पर पट्टी बाँधती और इस तरीके से झिड़ककर अकेला न छोड़ती। मन की उधेड़बुन और पैर की पीड़ा से वह सारी रात सो नहीं पाया। अगले दिन जब वह विद्यालय के लिए घर से निकला तो नई मिस के डर से तालाब के किनारे जाकर बैठ गया।
आज विद्यालय में सीमा का दूसरा दिन था। वह कक्षा में आईं और सभी बच्चों से पूछा कि आप सभी कैसे हो?
बच्चे – हम अच्छे हैं मैम।
सीमा- आज आप क्या करना चाहते हैं?
बच्चे – हम पेंटिंग्स करना और खेलना चाहते हैं
सीमा- बहुत अच्छा ! क्यों न आज हम कोई नया खेल खेलें।
बच्चे- हाँ. मिस।
सीमा – आप सभी को कौन सा खेल खेलना सबसे ज्यादा पसंद है। उसका नाम बताइए। अच्छा आज कौन -कौन विद्यालय नहीं आया है?”
राजा- अजय आज भी नही आया। वह बहुत ही गन्दा लड़का है।
पिंकी – मैम, कल हमने उससे विद्यालय आने को कहा तो वह हमें पत्थर मारने लगा था।
सागर – उसको पढ़ना भी नही आता मैम।
नेहा- उसकी नई माँ उसको बहुत मारती है और घर का काम भी कराती है।
सीमा -” नई माँ ?”
नेहा -“हाँ मैम”
सीमा – ठीक है , मैं उसके पिताजी से सम्पर्क करुँगी, अजय को प्रतिदिन विद्यालय भेजने को कहूंगी।
(सीमा नेहा की बातें सुनकर थोड़ी भावुक हो गई थीं ,उन्हें अजय से सहानुभूति हो गई थी।)
कक्षा खत्म होते ही वह प्रधानाध्यापक कक्ष में गई और अजय की रिपोर्ट कार्ड प्रधानाध्यापक से लेकर देखने लगी ।
फिर उन्होंने स्कूल में बच्चों को पोर्टफोलियो से अजय के पिताजी का मोबाइल नम्बर लेकर फोन किया।
सीमा – हेलो, क्या मेरी बात अजय के पिताजी से हो सकती है
राम सिंह – हाँ मैडम जी, मैं अजय का पिता ही बोल रहा हूँ
सीमा- मैं अजय के विद्यालय से बोल रही हूँ , क्या अजय ठीक है? दो दिन से वह विद्यालय नही आया है?
रामसिंह- मैडम जी, मैं तो सुबह से ही खेत में मजदूरी के लिए निकल जाता हूँ। अब मुझे क्या पता? लेकिन मैं उसकी माँ से पूछता हूँ।
सीमा -अच्छा ठीक है, आप कल समय निकालकर उसके साथ विद्यालय आ जायें , अजय के बारे में कुछ जरूरी बात करनी थी।
राम सिंह- मालिक छुट्टी नहीं देंगे , मैडम जी इसलिए मैं उसकी माँ को कह दूँगा स्कूल जाने के लिए।
मिस सीमा -हाँ, ठीक है।
अगले दिन अजय अपनी माँ के पीछे-पीछे लंगड़ाकर चलते हुए डरा-सहमा सा विद्यालय पहुँचता है। उसकी माँ शांता पहले नई शिक्षिका सीमा से नमस्ते करते हुए कहती हैं, “मैडम जी यह बहुत ही बिगड़ा हुआ लड़का है। घर में कोई काम नहीं करता। इसने तो मेरी नाक में दम करके रखा है। मैं तो बड़ी परेशान हूँ इससे। अब आप ही समझाओ। मेरी छाती पर पटक कर इसकी माँ तो सुखी हो गई और मुझे जी का जंजाल दे गई।”
सीमा ने अजय की माँ से कहा कि अरे आपको ऐसा कहना चाहिए। अजय तो अच्छा लड़का है। जाओ अजय कक्षा में जाकर बैठ जाओ। कक्षा में अजय अपनी नजरें नीची करके बैठा गया। सभी बच्चे उसे अजीब तरह से देखते हुए उस पर हँस रहे थे। इससे अजय के मन में भय और गुस्सा दोनों तरह की भावनाएं साथ-साथ आ रही थीं।
‘वात्सल्य का अहसास
मिस सीमा अपनी कक्षा में प्रत्येक बच्चे को सीखने के अवसर उपलब्ध कराना पसंद करती थीं। वह बालकेंद्रित शिक्षा के विचारों को भी अमल में लाने पर जोर देती थीं। अजय के प्रति उन्हें लगा कि उसकी सबसे बड़ी जरूरत स्वयं में आत्मविश्वास जगाना और स्नेह की कमी को पूर्ण करने का प्रयास करना था। अजय की माँ के जाने के बाद उन्होंने अजय को पास बुलाया। अजय लंगड़ाते हुए अपनी शिक्षिका सीमा के पास गया। सीमा ने उसके पैर की और देखा कि उसमें सूजन आई हुई थी।
सीमा – अजय आपको चोट कैसे लगी? आपके पैर में तो सूजन आई हुई हैं।
सीमा -सुमन, बेटा जाओ, जरा प्रधानाध्यापक कक्ष से प्राथमिक उपचार पेटिका तो लेकर आओ।
सुमन -जी मैम, अभी लाई।
(सुमन प्रधानाध्यापक कक्ष से प्राथमिक उपचार पेटिका लेकर आती हैं। उसके साथ प्रधानाध्यापक भी पीछे -पीछे आते हैं।)
सुमन -लीजिये।
सीमा – थैंक यू सुमन।
सीमाः नमस्ते सर। आइए सर।
प्रधानाध्यापक – अरे! अजय है। क्यों क्या हो गया तुझे? कहाँ, तोड़ लिया पैर तुमने।
(अजय चुपचाप सिर नीचे किये खड़ा रहता है।)
प्रधानाध्यापक – ठीक है सीमा मैडम, आप तो अपना काम कीजिये, इस नालायक के पीछे अपना समय बर्बाद मत कीजिए।” (सीमा इन शब्दों के जवाब में बस हल्की सी मुस्कुरा भर देती हैं। (प्रधानाध्यापक अब कक्ष से बाहर चले जाते हैं।)
सीमा – अजय इस कुर्सी पर आराम से बैठ जाओ। बहुत दर्द हो रहा है क्या? इतना सुनते ही अजय रोने लगा।
सीमा – अजय क्यों रो रहे हो, मैं हूँ ना आपके साथ। अभी दवाई लगा देती हूँ। आपके पैर का दर्द ठीक हो जाएगा। सीमा के इस वात्सल्य से अजय का ह्रदय भर आया।
अजय का ‘बदलता’ व्यवहार
इस दिन के बाद अजय प्रतिदिन विद्यालय आने लगा। उसके व्यवहार में भी दिन-प्रतिदिन सकारात्मक बदलाव आने लगे। अब उसके बाल, कपड़े और बैग सभी साफ होते, जिन्हें शायद वह स्वयं धोता था। प्रतिदिन कक्षा में होने वाली नई-नई गतिविधियों में उसकी सक्रिय भागीदारी करता था। वह अब खुश रहने लगा था। उसके हर मासिक मूल्यांकन में उसके अच्छे अंक आने लगे थे। इस बार की अर्धवार्षिक मूल्यांकन में उसने अपनी कक्षा में पाँचवां स्थान पाया था।
अजय को घर पर अभी भी माँ की डांट व गुस्से का सामना करना पड़ता था। वह अपनी सौतेली माँ के बताए हर काम को कर देता लगा था। छोटे भाई रवि की देखभाल भी करता था। लेकिन न जाने क्यों उसकी माँ का ह्रदय उसके लिए नही पसीजा। वह अब भी अजय से पहले जैसा ही व्यवहार कर रही थीं। अजय कोशिश करता कि माँ को शिकायत का मौका न मिले। प्रतिदिन घर के कामों को निपटाने के बाद वह पढ़ाई करने बैठ जाता। घर पर पढ़ते समय जो सवाल उसे समझ में नहीं आते थे या कठिन लगते वह उनको कॉपी में नोट करता लेता था। अगले दिन विद्यालय में पहुँचकर अपनी शिक्षिका सीमा से उनका हल /जवाब पूछता। सीमा उसकी इस जिज्ञासा की पूरे विद्यालय में खूब तारीफ करती थीं और साथ ही साथ दूसरे बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं।
वे कभी भी बच्चों के बार -बार सवाल पूछने पर बिल्कुल नहीं डांटती थीं। इसके बदले में वे ऐसे बच्चों को सवाल पूछने को बढ़ावा देती थीं। इस कारण से कक्षा के सभी बच्चे उनसे रोजाना सवालों के जवाब पूछते थे। लेकिन विद्यालय के अन्य शिक्षक/शिक्षिकाएं अब भी सीमा से ईर्ष्या भाव रखने लगे। पर वे इस बात पर कोई ध्यान न देकर निष्पक्ष भाव से अपना काम करती थीं। अजय को सीमा मैम से बहुत लगाव हो गया, कुछ शिक्षक तो उसे सीमा मैम का चमचा कहकर बुलाते, लेकिन अजय अब उन्हें बड़े ही आदर भाव से जवाब देता।
अपनी शिक्षिका सीमा के स्नेह के कारण उसे हमेशा महसूस होता कि वह अपनी माँ के पास हैं। अजय को सीमा मैम में अपनी माँ नजर आने लगी थी। सभी बच्चों के साथ बैठ कर पढ़ना-लिखना ,खेलना-कूदना उसे अब अच्छा लगता। कक्षा के बच्चे भी अजय के बहुत अच्छे दोस्त बन गए। प्रत्येक काम को सभी बच्चे आपस में मिलजुल कर करते। बच्चों को हर दिन उत्सुकता होती कि आज सीमा मैम उन्हें क्या बताएंगी। उनके पढ़ाने के तरीके और गतिविधियां सभी बच्चों में उत्साह का संचार कर रही थीं। अब वार्षिक मूल्यांकन का समय नजदीक था। इससे पूर्व विद्यालय में वार्षिक उत्सव मनाया जाने के लिए सभागार कक्ष को सजाया गया था। बच्चे विभिन्न गतिविधियों में प्रस्तुति देने को आतुर थे। इसकी तैयारी उन्होंने एक सप्ताह पूर्व से करनी प्रारंभ कर दी थी। अजय ने भी इन गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
‘आप मेरी माँ हो…’
बच्चों की तैयारी के दौरान ही वार्षिक उत्सव के दिन की घोषणा हो गई थी। इसके कारण सभी बच्चे अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गये थे। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब अजय और उनके साथियों की की गई तैयारी की प्रस्तुति होनी थी। बच्चों को विद्यालय के वार्षिक उत्सव में प्रतिभाग करने के लिए मंच पर अतिथियों के साथ प्रधानाध्यापक और सभी शिक्षक/शिक्षिकाएं बैठी थीं। इस आयोजन में हिस्सा लेने के लिए बच्चों के माता-पिता भी उपस्थित थे। अजय और उसकी टीम ने वार्षिकोत्सव में नाटक ‘मेरी शिक्षिका’ की प्रस्तुति दी। इस नाटक में रानी मे ने शिक्षिका की भूमिका निभाई।
वहीं अजय ने इस नाटक में एक ऐसे बच्चे की भूमिका निभाई जो अपनी माँ के स्नेह और दुलार से वंचित था। रानी से शिक्षिका की भूमिका में अपनी शिक्षिका सीमा के किरदार को जीवंत किया। वहीं शिक्षिका बनी रानी ने मिस सीमा के रुप को मंच पर प्रस्तुत कर सभी को भाव-विभोर कर दिया। अजय का अभिनय देखकर सबकी आंखे भर आईं। इस मंच पर होने वाला अभिनय अजय के जीवन की वास्तविक सच्चाई भी थी। नाटक की समाप्ति में कुछ वक्त शेष था, सभी शिक्षक /शिक्षिकाएं, अतिथिगण और बच्चों के माता-पिता मंच की और देख रहे थे।
अजय ने माइक हाथ मे लेते हुए, सीमा मैम को मंच पर आने का आग्रह किया। उनके मंच पर आते ही चारों और से तालियां बजने लगती हैं। सीमा ये देखकर भावविभोर होकर उठीं।
अजय ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा -“सभी सम्मानीय अतिथियों और शिक्षकगण आपको मेरा प्रणाम। आज मैं आप सभी को अपनी माँ से मिलवाना चाहता हूँ। जिन्हें मैं ढूंढा करता था और न मिलने पर रोता था। आज मुझे मेरी माँ मिल गई है। सीमा मैम की ओर देखते हुए अजय ने कहा कि हाँ, आप ही मेरी माँ हो। यह बात सुनकर सभी लोग बड़े ही अचरज भरे भाव से मंच की तरफ देखने लगे। अजय ने आगे कहा, “माँ मुझे आपकी ही जरूरत थी। ईश्वर ने आपको मेरे लिए भेजा हैं। मैं आपको कभी भूल नही पाऊँगा। आपने मुझे नया जीवन दिया है।”
अजय के ये बोल सुनकर सीमा ने अपने छात्र अजय को गले से लगा लिया। सभागार में तालियां बज उठती हैं। मंच पर मौजूद बाकी सभी बच्चे भी मिस सीमा से लिपट जाते हैं। इस दृश्य को देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखों मे आंसू आ जाते हैं । ये आंसू किसी दुःख के नहीं बल्कि एक बच्चे के मन को पढ़ने वाली शिक्षिका के सम्मान में निर्झर होकर बह रहे थे।
लेखक परिचयः दुर्गा ठाकरे मध्यप्रदेश के हरदा जिले के शासकीय प्राथमिक विद्यालय सुल्तानपुर में कार्यरत हैं। यह हरदा विकास खंड के संकुल शा.उ.मा.विद्यालय मसनगाव के अंतर्गत आता है। आपको किताबें पढ़ने, कविताएं और कहानियाँ लिखने में रुचि है। एजुकेशन मिरर के लिए यह आपकी पहली स्टोरी है।
(आप एजुकेशन मिरर के फ़ेसबुक पेज़ और ट्विटर हैंडल से जुड़ सकते हैं। इसके साथ ही साथ वीडियो कंटेंट व स्टोरी के लिए एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। आप भी एजुकेशन मिरर के लिए अपने लेख educationmirrors@gmail.com पर भेज सकते हैं।)
बहुत बड़िया कहानी है दुर्गाजी आपकी कहानी पढ़कर हमें भी हमारे अनुभव प्राप्त हुए याद आ गये।एसा लगा जैसे हमारे साथ भी यही अनुभव होता रहा है पर आपने शब्दों में भावना को पिरोने का जो एहसास जगाया है वो बहुत ही शानदार है बहुत धन्यवाद आपका
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से कृति ने इस कहानी के लिए ऊनी टिप्पणी शेयर की है, “बच्चे का सामाजिक वातावरण तो बच्चे के व्यक्तित्व में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता ही है, किन्तु शिक्षक अगर बच्चे पर विश्वास करने लग जाए व अपने विद्यार्थियों को स्पेस भी दे, तो शिक्षार्थी भी हर वो चीज़ करने को तैयार होता है जो उसके शिक्षक को गैरवान्वित महसूस कराए।
दुर्गा ठाकरे जी ने बखूबी यह कहानी में दर्शाया है। कहानी को इतना दिलचस्प बनाया है की आगे क्या होगा यानि पूरी कहानी पढ़ने की जिज्ञासा हो रही है। हृदय में एक स्पर्श छोड़ रही है ये कहानी। शिक्षक व शिक्षार्थी के रिश्ते को भी दर्शा रही है।
#कृति
बहुत ही सुंदर कहानी
God bless you