वेबिनारः ऑनलाइन शिक्षा ‘विशेषण’ के रूप में ठीक, संज्ञा’ के रूप में खतरनाक – कृष्ण कुमार
डॉक्टर हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्यप्रदेश के सामाजिक विज्ञान शिक्षण अधिगम केन्द्र के द्वारा 28 -29 मई को दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय वेबिनार “रिविजिटिंग द आईडिया ऑफ टीचर इन द वर्चुअल सिन -एंड पोस्ट कोविड -19” विषय पर आयोजित किया गया। इस दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय वेबिनार में कुल चार सत्रों में 12 विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए।
उद्घाटन वक्तव्य में माननीय कुलपति प्रोफेसर आर पी तिवारी ने कहा कि इस वेबिनार के माध्यम से वर्तमान शिक्षा की चुनौतियों को एक अवसर के रूप में ले सकते हैं। साथ ही शिक्षको एवं अन्तरनुसाशनिक शोधकर्ताओं को इस मुश्किल समय मे शिक्षा की बारीकियों को समझने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही अन्तरनुसाशनिक शोध को बढ़ावा मिलेगा। उदघाट्न सत्र के बाद प्रथम सत्र में पद्मभूषण प्रोफेसर विजय भाटकर (कुलाधिपति नालन्दा विश्विद्यालय एवम वैज्ञानिक सलाहकार पीएमओ भारत सरकार) ने कहा कि शिक्षकों को हमेशा शिक्षा में नवाचार करते रहना चाहिये साथ ही स्वयं में शिक्षकों को अपना महत्व समझना चाहिए।
‘विद्यार्थियों के साथ संवाद हो और उनका आत्मविश्वास बढ़ें’
इसी क्रम में जयंत सहस्रबुद्धे (विज्ञान भारती के राष्ट्रीय सचिव) ने प्रतिभागियों के साथ संवाद करके शिक्षा से जुड़े कई समकालीन मुददो पर बात की। प्रखर वक्ता एवं चिंतक श्री शंकरानन्द जी ने कहा कि हमारी सोच विस्तृत होनी चाहिये। शिक्षाविद् प्रोफेसर चांद किरण सलूजा ने बताया कि शिक्षा का अर्थ भाषा की पकड़ से है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि मैं परीक्षा को अनिवार्यता नहीं मानता हूँ। गाँव का बच्चा विज्ञान को अपने जीवन मे जीता हैं जबकि शहर का बच्चा विज्ञान पढ़ता है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों, विद्यर्थियों को सुनने ,पढ़ने, समझने, तर्क करने , चिंतन करने , धारण करने एवम व्यवहार में लाने की कला में निपुण होना चाहिए।
प्रोफेसर बलराम सिंह ने अपने वक्तव्य में भारत को अपनी परम्पराओ से सीखना चाहिए। साथ ही प्राचीन भारतीय विज्ञान बहुत ही विस्तृत था जबकि आज का विज्ञान सीमित हैं। पद्मश्री श्रीमान सुभाष काक ने कहा कि शिक्षकों को छात्रों का आत्म विश्वास को बढ़ाना चाहिए,उनके साथ तार्किक एवम समालोचनात्मक वार्तालाप होना चाहिए। दूसरे दिन के सत्र में मुकुल कानितकर (राष्ट्रीय आयोजक सचिव ,भारतीय शिक्षा मण्डल) ने अपने व्याख्यान में शिक्षा में एकलव्य पेडागोगी पर चर्चा की , शिक्षा आचार्य केंद्रित होनी चाहिए, आचार्य शब्द आचारण से निकलता है। इसके साथ ही हम सभी को कोविड-19 के चुनौतियों को अवसर के रूप में लेना चाहिए।
प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत (एनसीआरटी नई दिल्ली के पूर्व निदेशक) ने कहा कि गुरु वो है जो मनुष्य को देवत्त्व की तरफ ले जाता है। वर्तमान में शिक्षकों को प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण विधि से कार्य करना चाहिए, जीवन का उद्देश्य हमेशा पूर्णता की ओर होना चाहिए।
‘ऑनलाइन शिक्षा’ का इस्तेमाल ‘विशेषण’ के रूप में हो
भारत के प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार (एन सीआरटी नई दिल्ली के पूर्व निदेशक) ने बताया कि इस महामारी से मिल रही जानकारी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। हमें नवाचार के बारे में सोचना होगा। इसके साथ ही कोविड-19 को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये। उन्होंने प्रतिभागियों के जीवंत प्रश्नों के उत्तर भी दिए। उन्होंने कहा, “तकनीक किसी समस्या का समाधान नहीं है। तकनीक स्वयं कई विषमताओं या विरोधाभाषों से ग्रस्त है। किसी भी टेक्नोलॉजी या यंत्र के इस्तेमाल में विषमता सदैव बनी रहती है। ‘ऑनलाइन शिक्षा’ शब्द का अगर विशेषण के रूप में इस्तेमाल हो रहा तो ठीक है। लेकिन संज्ञा के रूप में हो रहा है तो फिर खतरनाक है।” (इस सत्र में प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार से बातचीत डॉ. नवनीत शर्मा ने की)
अंत मे प्रोफेसर नीता कुमार ने शिक्षा में किस प्रकार की भूमिका में स्कूल और परिवार का योगदान होता हैं, विषय पर उत्कृष्ट उद्बोधन दिया।
इस आयोजन की खास बात ये रही कि इसमें देश के कई नामचीन संस्थाओं के शिक्षकों ने वक्ताओं के सत्रों के संचालन का दायित्व निभाया। प्रतिभागियों के प्रश्नों, उनकी जिज्ञासाओं को वक्ताओं के सामने रखकर उनके विचारों को जानने का प्रयास किया गया। आयोजन को लेकर पूरे देश के शिक्षा से जुड़े प्रतिभागियों में खासी रुचि देखी गई। इस अंतरास्ट्रीय वेबिनार के अलग- अलग सत्रों का संचालन डॉ आशुतोष मिश्रा, डॉ विवेक जायसवाल ,डॉ सज्जाद अहमद ,डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी, मिस कपिला परासर ,डॉ प्रीति वाधवानी, कपिला पराशर एवम डॉ नवनीत शर्मा द्वारा किया गया। समापन सत्र में समाजिक विज्ञान अधिगम केंद्र एवम इस अंतरास्ट्रीय वेबिनार के समन्वयक डॉ. संजय शर्मा द्वारा वेबिनार के सभी सत्रों का एक संक्षिप्त विवरण दिया गया। अंत मे डॉ आशुतोष मिश्रा एवम डॉ विवेक जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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बहुत ही सुंदर व्याख्यान एक ही पोस्ट में इतने सारे शिक्षाविदों के वक्तव्य पढ़ने को मिला ।
“गाँव का बच्चा विज्ञान जीता हैं और शहर का बच्चा विज्ञान पढ़ता हैं ।”
“भारत को अपनी परम्पराओं से सीखना चाहिए ,भारतीय विज्ञान विस्तृत हैं।”
“ऑनलाइन शिक्षा को विशेषण के रूप में इस्तेमाल हों रहा है तो ठीक है लेकिन संज्ञा के रूप में होना खतरनाक है ”
अपने आप मे हमारे शिक्षा में सही ठहरते हैं ।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।