भाषा शिक्षणः कविता के माध्यम से बच्चों को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाएं?
आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। इस अवसर पर पढ़िए एक लेख जिसे एजुकेशन मिरर के लिए प्रिया जायसवाल ने लिखा है। आपके पास शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव है। कोविड काल में भी शिक्षकों के पेशेवर विकास (यानि टीचर प्रोफ़ेशनल डेवेलपमेंट) के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और भाषा शिक्षण के लिए कविता विधा का उपयोग करने के व्यावहारिक अनुभवों को सामने रखता है। शेष लेख विस्तार से पढ़िए उन्हीं के शब्दों।
कोरोना ने हर तबके को, हर वर्ग को प्रभावित किया है. सबसे ज्यादा जिस क्षेत्र को इसकी मार सहनी पड़ी वह है शिक्षा। परन्तु ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा के वाहक शिक्षकों ने स्वयं की अपने पेशे के प्रति सजगता और तैयारी को बरकरार रखा है। जहाँ शिक्षक साथियों से फेस टू फेस मोड में प्रत्यक्ष रूप से मिलना नहीं हो पा रहा है वहां उनकी स्वयं की सीखने की चाहत भी कम नहीं हुई है। स्कूल जब भी खुलेंगे उससे पहले स्वयं की तैयारी को लेकर वे सजग हैं और यह सीखने- समझने की ललक उनके द्वारा ऑनलाइन प्रशिक्षणों में उनकी सक्रिय प्रतिभागिता के रूप में देखी जा सकती है।
पढ़ना सिखाने के लिए कविताओं का उपयोग
इसी तरह के ऑनलाइन प्रशिक्षण में शिक्षकों के साथ- ‘कविता के माध्यम से पढना-लिखना सीखना’ को लेकर एक चर्चा हुई। इस बातचीत में शिक्षकों ने व्यक्तिगत तौर पर बहुत सी कवितायें बड़ी तन्मयता के साथ सुनायीं। कविताओं को लेकर शिक्षकों ने अपने विचार भी दिए- जैसे : कविताओं में धुन होना, छोटी-छोटी कविताओं में विशेषकर तुकांत कविताओं में बच्चों की रूचि, कविताओं के माध्यम से जुड़ाव क्योंकि संगीत मानव जीवन को पसंद है, हमारे हमारे ह्रदय से जुडा होता है, कल्पनाशीलता, गेयता का होना, साथ ही कविता एक मजेदार चीज होती है जहाँ पात्रो को इधर-उधर भी कर सकते हैं आदि।
शिक्षकों ने एक कविता , ‘एक हाथी इतना बड़ा’……..को आधार बनाते हुए अपनी कक्षा कक्ष प्रक्रियाओं को साझा करते हुए बताया कि कोई भी कविता कराते समय वे विभिन्न गतिविधियों का प्रयोग करते हैं जिससे बच्चे रूचि भी लेते हैं और सहभागी बनते हैं, किसी बच्चे को हाथी बना देते हैं, हाथों से एक्शन करके बड़ा-छोटा बताया जा सकता है , लम्बी सूंड दिखाई जा सकती है, बड़े-बड़े दांत की एक्टिंग करके दिखा सकते हैं, हाथी का चित्र भी बनाकर टांग सकते हैं और उस पर बात कर सकते हैं, एक (गिनती) का कांसेप्ट बताया जा सकता है, छोटा-बड़ा, मोटा-पतला, विलोम शब्द, योजक चिन्हों पर बातचीत कर सकते हैं, मात्राओं को भी साथ में ले सकते हैं जैसे लम्बी में ई की मात्रा, बड़ा में आ की मात्रा आदि पर ध्यान दिलाना आदि।
बच्चों को कविताएं क्यों पसंद आती हैं?
शिक्षकों ने बताया कि यह कविता बच्चों को अच्छी लगेगी क्योंकि जानवरों में बच्चे रुचि लेते हैं साथ ही एक्शन करने से बच्चे आकर्षित हो जाते हैं. इस कविता को गाते वक्त आवाज के उतार – चढ़ाव का अगर ध्यान देते हैं तो बच्चे ज्यादा खुश होते हैं और रुचि भी लेते हैं। किसी एक कविता के माध्यम से किस तरह अलग-अलग दक्षताओं का विकास बच्चों में कराया जा सकता है यह शिक्षकों की शेयरिंग में साफ़ साफ़ प्रदर्शित हो रहा था।
इसके बाद एक कविता को डिस्प्ले किया गया ‘गाड़ी आयी मथुरा से लाये पेडे भर-भर के। इस कविता को शिक्षकों से आगे बढाने को कहा गया। शिक्षकों ने कविता को अपने–अपने अनुसार बढ़ाया जैसे: गाड़ी आयी देहरादून से लायी आम भर-भर के…..गाड़ी आयी इलाहबाद से लायी अमरुद भर-भर के, गाड़ी आयी शिमला से लायी सेब भर-भर के…..गाड़ी आयी जयपुर से लायी नमकीन भर भरके, गाड़ी आयी कोल्हापुर से लायी चप्पल भर भर के….गाड़ी आयी जौनपुर से लायी अदरक भर-भर के, गाड़ी आयी आगरा से लायी पेड़े भर-भर के….गाड़ी कहती पों पों पों, बच्चे कहते वाह वाह वाह, सवारी कहती रुक रुक रुक….. गाड़ी आयी लखनऊ से लायी रेवड़ी भर भरके…
कविता के माध्यम से विकसित होने वाले भाषायी कौशल
शिक्षकों ने यह भी साझा किया कि इस तरह की गतिविधि /कविता के माध्यम से बच्चों में भाषागत क्षमताओं का विकास किया जा सकता है। इस तरह सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं को करने से बच्चों का शब्द भण्डार पड़ता है, बच्चों को एक दूसरे की जगह की जानकारी मिलती है , मिठाई पर, फलों पर सब्जियों पर चर्चा की जा सकती है कि किस किस चीज की गाडी आ रही है, बच्चों को किस तरह की चीजें पसंद है, एक्शन के साथ ट्रेन का एक्शन बच्चे एक दुसरे को पकड़ कर भाग सकते हैं , बच्ची को यह गतिविधि काफी अच्छी भी लगती है शहरों के नाम भी याद होंगे, भर-भर, गाडी आयी इस तरह के शब्दों की पुनरावृति भी बच्चों को काफी भाती है, मात्राएँ सिखा सकते हैं जैसे बड़ी ई की मात्रा बार- बार जब बच्चे वही शब्द बोलते और सुनते हैं तो वे बच्चे आसानी से सीख पाते हैं, चार्ट पेपर पर टांगकर, ब्लैकबोर्ड पर लिखना, रेखांकित करके पढना इत्यादि।
किसी एक कविता के माध्यम से बहुत सी चीजें हो सकती हैं, हर कविता का वाक्य विन्यास क्या कहता है ,किसी कविता के माध्यम से और क्या किया जा सकता है, यातायात के साधन कौन-कौन से हैं, बच्चों ने किस तरह की गाड़ियाँ देखीं हैं इत्यादि। इस पूरी चर्चा में यह बात भी समझ आती है कि -भाषा शिक्षण में वे अवसर हैं कि इसका अन्य विषयों के साथ भी जुड़ाव देखा जा सकता है , इसके अलावा किसी विशेष वर्ण पर जहाँ बच्चे ज्यादा भ्रमित होते हैं जैसे ‘ड़’ शब्द को कविता में बोलने से बच्चे उस शब्द को उच्चारण के साथ बेहतर समझ पाते हैं। बच्चे कविताओं में अपने संदर्भो को भी देख पाते हैं।’खिलोने वाला ‘कविता- में कुछ चर्चाएँ जैसे: आप किस तरह के खिलोने से खेलते हैं हर जगह किस तरह के खिलोने मिलते हैं जैसेः- कपडे, मिटटी आदि के खिलौने आदि जहाँ बच्चे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
इस तरह कविता के माध्यम से भाषा सीखने में विभिन्न कौशल विकसित होते है जैसे: अलग- अलग चीजों के माध्यम से विभिन्न मात्राओं से परिचित कराना, आप-पास की चीजों के प्रति संवेदनशीलता। की तरफ भी ध्यान दिलाया जा सकता है। बच्चे अलग-अलग चीजों की ध्वनि को पहचान पाते हैं, और किसी ख़ास मात्रा से बच्चों को परिचित कराने के लिए इस तरह की गतिविधि की जा सकती है।
कविताओं का डिस्प्ले
बातचीत के अगले क्रम में एक और कविता डिस्प्ले की गयी, कागज़ की गुड़िया के कान नहीं है ……… इस कविता को लेकर शिक्षकों से यह शेयर करने को कहा गया कि आपको क्या लगता है इस कविता के माध्यम से बच्चों में किन भाषायी दक्षताओं का विकास किया जा सकता है?शिक्षकों ने बताया कि बच्चों की सोच को विस्तार दे पाते हैं बच्चे की सोच में नए आयाम, नया विस्तार आता है। वह खरगोश के कान भी लगा सकते हैं ऐसा भी हो सकता है गुड़ियाँ स्प्रिंग के हाथ भी लगा सकती है, बिल्ली की आँख भी हो सकती है। बच्चे कुछ भी कल्पनाएँ कर सकते हैं शरीर के अंगो के बारे में भी पता चलता है कि कौनसा अंग किस काम आता है यह भी बच्चे जानेंगे।इसके अलावा बच्चे इस कविता को आगे भी विस्तार दे सकते हैं।
इस कविता में सकारात्मक पक्ष है आशा का संचार है -की वो ऐसे सुनेगी। यहाँ कुछ चीजें पहले से दी हुई हैं पर इन शब्दों को अगर बदल दिया जाए बताओ खरगोश के जगह किसके कान लगा सकते हैं, हाथी के कान, (शरीर में कान काफी हाईलाइट होते हैं,बड़े होते हैं) बच्चे जब अपने विचार देंगें तो बच्चा जिसको भी पसंद करता है वह उस शब्द को लगा देंगें जैसे बन्दर के हाथ क्योंकि बच्चे अपने सन्दर्भों, रुचियों से जुडी बातचीत का हिस्सा बनते हैं।
कविता में शब्दों का जादू
एक अगली गतिविधि की गयी शब्दों के जादू की -जिसमें एक कविता कुछ इस तरह की थी, चींटी ओ चींटी कहाँ गयी थी. शिक्षकों ने आगे की पंक्तियों में जोड़ा और बताया जैसे: बिल्ली ओ बिल्ली कहाँ गयी थी—-दूध और चूहे की तलाश में। इसी तरह बकरी ओ बकरी कहाँ गयी थी अरे यहीं थी पास में घास/पत्तों की तालश में, चिड़िया ओ चिड़िया कहाँ गयी थी अरे यहीं थी पास में तिनके की तलाश में , मकड़ी ओ मकड़ी कहाँ गयी थी, अरे यहीं थी पास में मकड़े की तलाश में। शिक्षकों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं कि इस तरह की गतिविधि के माध्यम से बच्चे का शब्द भण्डार बढ़ता है, बच्चा चीजों में सहसंबंध बैठा पाता है।
यहाँ पर सुगमकर्ता ने यह बात भी रखी कि जो बच्चा बोलता है उसे ब्लैकबोर्ड पर या चार्ट पर लिखा जाना चाहिए इससे बच्चे को पता चलता है कि जो हम बोलते हैं उसे लिखा और पढ़ा जा सकता है। बच्चों के पास बहुत सारे अनुभव और आइडिया होते हैं जिन्हें इस तरह किसी कविता में खाली स्थान देकर वहां बच्चों की प्रतिक्रियाएं ली जा सकती हैं। रचना और रटना में मात्र एक अक्षर का अंतर है पर इनके मायने बहुत गहरे होते हैं, इसलिए हमारे प्रयास इस ओर होने चाहियें जहाँ कविताओं के रचने के मौके बच्चों को हों ।
एक कविता के उदाहरण पर चर्चा
एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में से जब एक कविता शिक्षकों के सामने रखी गयी- एक मां की बेबसी- उस पर शिक्षकों ने कुछ इस तरह की प्रतिक्रियाएं दीं- इसमें जो बच्चा आम बच्चों की तरह नहीं है और खुद से अकेले में नहीं खेल पा रहा है । इसमें एक मां की बेबसी के बारे में बताया गया है, जब वो बच्चा बोलने की कोशिश करता था तो बाकि बच्चे नहीं समझ पाते थे उसकी मां के अन्दर जो दर्द है कि उसका बच्चा अपनी बातें और बच्चों को नहीं समझा पा रहा है वह उसकी मां की आँखों में झलकता है। बच्चे की मां और माँ की बच्चे के प्रति भावना यहाँ बच्चे के दिल को छूता है। इस तरह की कविताओं के साथ मानवीय सामजिक मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता की और इशारा है, इस कविता को पढने के बाद एक सजीव चित्र हमारी आँखों के सामने बन जाता है। इस तरह की बातचीत के आने के बाद सुगमकर्ता ने यह बात जोड़ी कि कविताओं में काफी शक्ति होती है, कवितायें हमारे भीतर की बहुत सी परतों को खोलती हैं और कविताओं से हम काफी जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
कविताओं के माध्यम से ‘ध्वनि जागरूकता’
इसके पश्चात अगले चरण में कविता से सम्बंधित कुछ अन्य गतिविधियाँ भी की गयी। जैसे: कुछ चीजों के नाम डिस्प्ले किये गए और शिक्षकों को उनसे निकलने वाली आवाज को बताना था जो कविता से ही मिलती जुलती थी जैसे: रेल- छुक-छुक, घंटी- टन-टन आदि इस तरह बच्चों को अपनी आस-पास की आवाजों के प्रति सचेत किया जा सकता है, उनके पास अपनी आस-पास की चीजों को अवलोकन करने के मौके भी होंगे और उन पर फिर अन्य चर्चा की ओर भी बढ़ा जा सकता है।
एक गतिविधि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में ही थी उसे भी रखा गया जिसमें कविता बनानी थी। यहाँ इस बात को भी चर्चा में लाया गया कि इस तरह की कविता बनाने के लिए पहले बच्चों से अलग-अलग ध्वनि की चर्चा की जानी चाहिए ताकि आगे फिर बच्चे के लिए इस तरह की कविता बनाने में आसानी होगी।
कविताओं के माध्यम से वर्ण व शब्द पहचान
इसके बाद एक अन्य कविता- ‘वह देखो वो आता चूहा’ को डिस्प्ले करके और उसे शिक्षकों के द्वारा गाने के बाद उस कविता से शब्द और वर्ण की पहचान पर काम किया गया। यहाँ पर कविता में आये गए शब्दों को बोर्ड पर लिखना, उचारण के साथ ऊँगली रखकर पढना, रेखांकित करना, फिर बच्चों से उन शब्दों को पूछने के लिए घेरा लगवाना जिससे बच्चे किसी शब्द विशेष की पहचान कर पाएं। इसके बाद शब्दों को तोड़कर उनमें आये अलग-अलग वर्णों को अलग करना और उनकी ध्वनि पर ध्यान आकर्षित करवाना पर बात हुई फिर उन्हीं सब शब्दों में आये सभी वर्णों से नए शब्द बनाने की गतिविधि पर काम किया गया। शिक्षकों ने बहुत सारे नए शब्द बनाये।
जैसे: काटी, कार, तार, काम, चंपू, चमका ,हार, चरखा, चखा, आम, रोता, पूंछता, खाका,
इन सभी गतिविधियों को प्रतिभागियों के साथ करने के साथ ही यह बात हुई कि यह प्रक्रियाएं हम बच्चों के साथ भी करें,उन्हें स्वयं से अमुक ध्वनि/मात्रा से सम्बंधित शब्दों को प्ले कार्ड्स में से छांटने को कहा जा सकता है , ऐसा भी हो सकता है किसी शब्द में एक से अधिक ध्वनियाँ/मात्रा हो तब बच्चों को कहा जा सकता है कि वे उन शब्दों को अलग-अलग श्रेणी में भी रख सकते हैं।
(एजुकेशन मिरर के लिए यह लेख प्रिया जायसवाल ने लिखा है। इस लेख में भाषा शिक्षण को रोचक बनाने के लिए कविताओं का इस्तेमाल कैसे करें, इस विषय पर प्रशिक्षण के अनुभवों को विस्तार से व्यक्त किया गया है। आप वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन देहरादून में कार्यरत हैं।
शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर लेखन और चिंतन आपकी दिनचर्या में शामिल है।शिक्षक दिवस के अवसर पर पढ़िए यह बेहद जरूरी लेख और साझा करिए अपने अन्य शिक्षक साथियों के साथ भी।)
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