शिक्षा के क्षेत्र में नये वर्ष 2022 की चुनौतियां और संभावनाएं क्या हैं?
एजुकेशन मिरर के सभी पाठकों और लेखकों को नव वर्ष 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं और बहुत-बहुत धन्यवाद शिक्षा के क्षेत्र में संवाद के सिलसिले को सतत जारी रखने के लिए। वर्ष 2020 में भारत को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मिली। लेकिन यही वह दौर था जब पूरी शिक्षा व्यवस्था कोविड-19 के ख़तरे का सामना कर रही थी। परिस्थितियों को सामान्य होने में लगभग दो साल का समय लगा।
कोविड-19 के फेज़-2 का असर खत्म होने के बाद सितम्बर 2020 से कुछ राज्यों में प्राथमिक स्कूलों को खोलने की पहल हुई। उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के विद्यालय पहले ही खुल चुके थे। लेकिन दिसम्बर 2020 के जाते-जाते फिर से कोविड-19 के नये वैरियंट और तीसरी लहर के ख़तरे की आशंका जोर पकड़ रही है। ऐसे में उम्मीदों की रौशनी में सवालों की धुंध भी है कि जो लक्ष्य प्राथमिक स्तर पर निपुण भारत मिशन के तहत तय किये गये हैं, क्या उनको हासिल करने की टाइम लाइन में बदलाव करना पड़ेगा या फिर विद्यालयों के खुलने की परिस्थिति के सामान्य होने तक तैयारी वाले पहलू पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जाये।
बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान (FLN) पर रहेगा फोकस
निपुण भारत मिशन के अंतर्गत बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान (FLN) के साथ-साथ सामाजिक-भावनात्मक कौशलों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस मुश्किल लक्ष्य को हासिल करने के लिए समुदाय को भी जोड़ने की बात कही गई है, ताकि 2026-27 तक निपुण भारत मिशन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इस संदर्भ में हाल ही में मिशन प्रेरणा के लक्ष्यों को निपुण भारत मिशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार अपडेट किया गया है। इससे इन लक्ष्यों को लेकर पूरे प्रदेश में नये सिरे से संवाद, विमर्श और रणनीति बनाने की जरूरत महसूस हो रही है ताकि नये लक्ष्यों के अनुसार क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। छत्तीसगढ़ और बिहार में भी इस दिशा में प्रशिक्षण व उन्मुखीकरण का सिलसिला सतत जारी है।
रेमेडियल टीचिंग की बजाय दीर्घकालिक समाधान खोजें
कोविड काल में शिक्षा मंत्रालय द्वारा विभिन्न दस्तावेज़ों के प्रकाशन का कार्य किया गया है। जिसके अध्ययन व उसके आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के संदर्भ में विचार-विमर्श का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन चुनौतियां हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टेक्नोलॉजी के माध्यम से प्राथमिक स्तर के बच्चों तक पहुंच बना पाना और उनका सीखना सुनिश्चित कर पाना बेहद मुश्किल काम है, इस बात की पुष्टि कोविड-19 के कारण बच्चों के अधिगम पर होने वाले प्रभाव से संबंधित में बार-बार हो रही है। यह सीखने के संकट (लर्निंग क्राइसिस) के सघन होने का संकेत मात्र है, स्थिति इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। इस गंभीर स्थिति का समाधान केवल 100 या 150 दिन के रेमेडियल टीचिंग से हो जायेगा, यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती है। क्योंकि 100 दिन की योजना तभी सफल हो सकती है जब उसमें निरंतरता हो, जिसपर कोविड काल में काफी विपरीत असर पड़ा है। दीर्घकाल की योजना के साथ काम करने और पाठ्यक्रम से ज्यादा कक्षा के अनुरूप दक्षता या कौशलों के विकास पर फोकस करने की जरूरत है।
सीखने की निरंतरता के अवसर पैदा करने की जरूरत
आख़िर में कह सकते हैं कि 2022 की सबसे बड़ी चुनौती ऐसे समाधान खोजने की है जो दीर्घकाल में समस्या के समाधान का रास्ता देती हो। ऐसे समाधान केवल रेमेडियल टीचिंग भर नहीं होंगे क्योंकि बच्चे पहली बार सीधे दूसरी व तीसरी में स्कूल आ रहे हैं, जबकि पूर्व में उनके साथ नियमित रूप से कक्षा के अनुरूप दक्षता के विकास हेतु व्यवस्थित कार्य कोविड-19 के कारण हो ही नहीं पाया है। बच्चों में पढ़ने के प्रति फिर से ललक पैदा करने और सीखने की निरंतरता की तरफ लेकर जाने की जरूरत है। ऐसे में बच्चों के लिए ऐसे अवसर पैदा करने होंगे जहाँ वे स्वयं अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए काम कर सकें और जरूरत के अनुसार बड़ों के सहयोग से भी अपनी क्षमताओं को निखार सकें।
(एजुकेशन मिरर की इस पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें mystory@educationmirror.org पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )
नव चुनौतियों के साथ नव वर्ष का आगमन हुआ है लेकिन नव समाधान भी जरूर निकेलगा ।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं टीम एडुकेशन मिरर 💐💐💐💐
जरूरी ये भी है कि माता पिता को बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित करने के लिए कक्षा 5 तथा 8 के बाद अन्य वित्तीय सपोर्ट भी मिले और ntse जैसे अन्य प्रतियोगी अवसरों के लिए सूचनाएं। क्यो नही हर प्राइवेट कंपनी को 50 -50 बच्चों की शिक्षा की सम्पूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है,केवल 1या 2 के इस क्षेत्र में योगदान से कुछ नही होगा।
बहुत सुंदर