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पुस्तक चर्चा: आरव राउत की लिखी कहानी ‘राजा सुदीर की साहस कथा’

‘राजा सुदीर की साहस कथा’ के लेखक हैं 12 वर्षीय आरव राउत। उनकी यह किताब 9 शब्दों राजा, शैतान, सेना, प्रजा, हाथी, घोड़ा, भाला, झंडा, लड़ाई से कहानी बनाने की गतिविधि को करने की प्रक्रिया का हासिल है। बचपन से बाल साहित्य यानि कविता, कहानियों और कहानियों को सुनने व पढ़ने के भरपूर अवसर और उनपर होने वाली बातचीत। अपने अनुभवों को लिखने के लिए मिले प्रोत्साहन और इस प्रक्रिया में सतत सहयोग का बड़ा योगदान है।

‘मैं भी लेखक बन सकता हूँ’

अपनी किताब के साथ आरव गजेन्द्र राउत।

आरव की मातृभाषा मराठी है। हिन्दी भाषा में आरव की निपुणता व रूचि बाल साहित्य के माध्यम से हासिल होने वाला अनुभव है, जिसे धीरे-धीरे एक विस्तार मिला। इतनी कम उम्र में लिखने और अपने अनुभवों को एक कहानी की सीरीज़ के रूप में सामने लाने की यह पहली खुले मन से प्रोत्साहन की गुजारिश करती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह किताब जब देश के विभिन्न हिस्सों के पुस्तकालयों में शामिल होगी तो बच्चों को भी अपने भीतर के लेखक को खोजने और इस विश्वास को जागृत करने का अवसर देगा कि ‘मैं भी लेखक बन सकता हूँ।’

बच्चों को जब हम कहानी सुनाते हैं तो यह अपेक्षा होती है कि हम लेखक और चित्रांकनकर्ता के बारे में बताते हैं। कई बार यह सवाल आता है कि क्या लेखक का नाम बताना जरूरी है, बिल्कुल जरूरी है। ताकि बच्चों को यह विश्वास हो सके कि किताबें, कहानियां, कविताएं व बाल साहित्य समेत अन्य सृजनात्मक कार्य इंसानों के द्वारा किये जाते हैं। इस काम की अपनी एक वैल्यू एक उपयोगिता है। यह काम भी बेहद महत्वपूर्ण है।

बाल साहित्य से जुड़ाव और लेखन के प्रति रूचि

आरव के लेखन का सफ़र विभिन्न यात्राओं के अनुभवों को शब्द देने और डायरी लिखने से शुरू होता है। इस लेखन का विस्तार आमतौर पर लोगों को चौंकाने वाला लग सकता है कि इतने विस्तार में भी किसी अनुभव को समेटा जा सकता है। इस प्रक्रिया ने आरव के अवलोकन, विचारों को शब्दों में उतारने की कला और उस मेहनत के लिए तैयार किया जिसकी आवश्यकता लेखन की प्रक्रिया में उतरने और विचारों को एक फ्रेम में लाने के दौरान पड़ती है।

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आरव की लिखी इन कहानियों को पढ़ना मेरे लिए बेहद सुखद और विशिष्ट अनुभव रहा। क्योंकि एजुकेशन मिरर के लिए आरव की डायरी को प्रकाशित करते समय पहले ड्राफ्ट से गुजरने का मुझे एक बेहतरीन अनुभव मिला था। यहाँ पर नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के बच्चों की भी याद मुझे हो आती है जिन्होंने बेहद संवेदनशील मुद्दों पर और समसामयिक मुद्दों पर लेखन कार्य किया और एजुकेशन मिरर के साथ साझा किया। इस बात का उल्लेख यहाँ करने का आशय आने वाली नई पीढ़ी के प्रति उम्मीद जगाने वाली संभावनाओं को रेखांकित करना है।

आरव गजेन्द्र राउत के यात्रा वृत्तांत और अन्य अनुभव आप एजुकेशन मिरर पर पढ़ सकते हैं।

आरव के लेखन का यह सिलसिला जारी रहे। नये-नये विषयों पर उनकी नजर जाये और यात्रा-वृत्तांत पर भी आने वाले वर्षों में कुछ ख़ास पढ़ने को मिले ऐसी उम्मीद रहेगी।

‘राजा सुदीर की साहस कथा’ से

आपके लिए प्रस्तुत है इस पुस्तक का एक अंश,” एक हफ़्ते बाद राजा सुदीर का एक जासूस आया और उसने कहा राजा सुदीर मुझे एक खास ख़बर मिली है और मुझे लगता है कि आपको यह ख़बर अकेले में ही सुननी चाहिए अगर दूसरों ने यह ख़बर सुन ली तो सब हमारा राज्य छोड़कर चले जाएंगे। राजा सुदीर ने कहा ‘एकांत’ – तो दरबार के मंत्री चले जाते हैं सिवाय जासूस के। फिर जासूस अपनी ख़बर सुनाना शुरू कर देता है।”

“वह कहता है महाराज मुझे यह ख़बर उग्रदेश के महल में रहने वाले जासूस से पता चली है., उसने कहा कि ‘उग्रराज ने खुले दरबार में ये एलान किया कि राजा सुदीर हमसे हमारा गोटासुर छीनने वाला है, हमें सतर्क रहना होगा और अगले एक महीने के बाद लड़ाई की तैयारियां शुरू की जाएं। राजा सुदीर को झटका सा लगता है, वे पूछते हैं कि उग्रराज को ये कैसे पता चला कि हम उसका गोटासुर चुराने वाले हैं। जासूस ने कहा ये सब जादूगर अकरम ने बताया है। राजा सुदीर ने पूछा कि वो ये सब कैसे बता सकता है। वह तो नेक इंसान है।”

गोटासुर एक खुंखार राक्षस राक्षस था जो उग्रदेश के राजा की क़ैद में है, राजा सुदीर इस एक अच्छे जिन्न के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं। क्या उनकी यह इच्छा पूरी होती या सौम्य देश के राजा सुदीर युद्ध में पराजित होकर अपना राज्य गंवा देंगे, विस्तार से पढ़िए आरव की इस किताब से। अपनी शुभकामनाएं और सुझाव आप टिप्पणी के रूप में जरूर साझा करें।

(आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें educationmirrors@gmail.com पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

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