शिक्षा के क्षेत्र में फ़िनलैंड नंबर वन क्यों है?

भारत में शिक्षा की स्थिति फिनलैंड जैसी कब होगी? बहुत से शिक्षाविद यह सवाल पूछते हैं?
दुनिया में शिक्षा पर होने वाला कोई भी विमर्श या सेमीनार फ़िनलैंड का जिक्र किए बिना पूरा नहीं होती। फ़िनलैंड की इस सफलता का रहस्य वहां की संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था में है। शिक्षा के क्षेत्र में फिनलैंड नंबर क्यों है? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए बहुत सारे देशों के प्रतिनिधि फिनलैंड का दौरा करते हैं।
वर्तमान समय में फिनलैंड गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और नई सरकार शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले आवंटन में कटौती पर विचार कर रही है, ऐसे में वहां शिक्षा के महत्व को लेकर नए सिर से चर्चाओं का दौर गर्म है।
वहां के पूर्व शिक्षा मंत्री पार स्टेनबैक अपने एक लेख में कहते हैं, “शिक्षा के लिए हमारे देश की तारीफ होना एक साधारण बात है। साल दर साल हमने बेहतर प्रदर्शन करते हुए कोरिया, सिंगापुर और जापान जैसे देशों को पीछे छोड़ा है।”
फ़िनलैंड की सफलता का रहस्य
वह अपने लेख में वे बताते हैं कि फ़िनलैंड के शानदार अधिगम स्तर (लर्निंग रिजल्ट) के मुख्यतौर पर तीन कारण हैं
1. हमारी संस्कृति में शिक्षा और सीखना दोनों को बेहद सम्मानित स्थान हासिल है। 19वीं शताब्दी में फ़िनलैंड ने आज़ादी के बाद सबके लिए शिक्षा (एज्यूकेशन फ़ॉर ऑल) में निवेश के माध्यम से एक राष्ट्रीय पहचान बनाई और उसे सुरक्षित रखा। इस तरह से आगे के विकास को रास्ता देने के लिए नींव पहले से तैयार थी।
2. दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है ‘कोई बच्चा छूटे नहीं’ (“Leave no child behind”) का नारा। अमरीका में इस नारे के लोकप्रिय होने से काफ़ी पहले फ़िनलैंड के स्कूलों में इस स्लोगन को आत्मसात कर लिया गया। इसके कारण सीखने में परेशानी का सामना करने वाले छात्रों को शिक्षकों और सहायकों की तरफ़ से उनके बाकी सहपाठियों के औसत स्तर पर लाने का प्रयास किया गया। जो ऐसे बच्चों पर अतिरिक्त ध्यान देते ताकि बाकी बच्चों की तरह उनका अधिगम स्तर (लर्निंग लेवल) बेहतर किया जा सके।
3. इस तरह की सफलता हासिल करने के लिए आपको उच्च गुणवत्ता वाले संवेदनशील शिक्षकों की जरूरत होती है। शिक्षा के क्षेत्र में अप्लाई करने वालों में मात्र 11 फ़ीसदी लोगों का चुनाव बतौर शिक्षक होता है, इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा उत्साही लोगों का चुनाव होता है। इस पेश के प्रति सम्मान के कारण ही ऐसा संभव होता है कि प्रतिभाशाली छात्र टीचिंग प्रोफ़ेशन में आते हैं।
क्या हैं फ़िनलैंड में बहस के मुद्दे
पार स्टेनबैक कहते हैं कि हमारी शैक्षिक सफलता के मात्र तीन कारण नहीं है। वे बताते हैं कि हाल ही में आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि फ़िनलैंड के क्लासरूम बाकी देशों की तुलना में ज्यादा अधिकारवादी है। नवाचार और भागीदारी भले ही नए और फ़ैशनेबल हो लेकिन वे शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया (लर्निंग प्रॉसेस) के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
फ़िनलैंड में अभी तीन मुद्दों पर काफ़ी चर्चा हो रही है। पहला मुद्दा है विज्ञान और गणित में लड़कियों का प्रदर्शन। 15 साल की उम्र में फ़िनलैंड के लड़कों की इस क्षेत्र में समझ इसी उम्र की लड़कियों से ज्यादा पाई गई। लेकिन यह अंतर बहुत ज़्यादा नहीं है और लड़कियों के लिए सकारात्मक उदाहरण पेश करते हुए इस खाई को भरने की कोशिशें जारी हैं।
वहीं दूसरा मुद्दा इतिहास के घटते हुए महत्व का है जिसके ऊपर बहस हो रही है, यहां लोगों को लगता है कि इतिहास की जानकारी का दायरा 20वीं शताब्दी से भी ज़्यादा व्यापक होना चाहिए। तीसरा मुद्दा भाषा के प्रशिक्षण से जुड़ा है। सवाल पूछा जा रहा है कि इसके शिक्षण पर शुरुआत से ध्यान क्यों नहीं दिया जाता?
हिंसा पर चिंता
फ़िनलैंड में स्कूलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों में बढ़ती हिंसा को लेकर भी चर्चा हो रही है। इस आलेख में वे बताते हैं, “मैंने अपने एक लेख में सुझाव दिया कि कक्षा के अनुशासन को चुनौती देने वाले व्यवहार के ख़िलाफ़ कड़ाई होनी चाहिए। किसी व्यक्ति के बुरे व्यवहार के जो भी कारण हों, ऐसे व्यवहार से बाकी बच्चों के लिए भी सीखने के सकारात्मक माहौल पर असर पड़ता है। दुर्भाग्य से भविष्य से इस तरह की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो सकती है और स्कूलों में मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होगी ताकि बिखरे हुए परिवारों से आने वाले बच्चों की मदद की जा सके।”
फ़िनलैंड की स्कूली व्यवस्था काफ़ी विकेंद्रीकृत है। नगरपालिका को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या को अपने हिसाब से लागू करने पूरी छूट है। कौन से स्कूल में किस भाषा में पढ़ाई होगी? किस कक्षा से भाषा का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, इस बारे में फ़ैसला करने का अधिकार नगरपालिका को ही होता है। वहीं स्कूल के लिए संसाधनों का निर्धारण करने की जिम्मेदारी स्थानीय राजनीतिज्ञों के हाथ में होती है। लेकिन शिक्षकों के पदों की संख्या और स्कूलों के मानकों में फेरबदल उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। जब कुछ नगरपालिकाओं ने शिक्षा के बजट को निश्चित करने का फ़ैसला किया तो उन्हें शिक्षक संगठनों की तरफ़ से भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
शिक्षा और शिक्षक के पेश के लिए सम्मान
यहां के स्कूलों में भी बच्चों को भोजन दिया जाता है, विदेश से यहां आने वाले लोगों को इस योजना पर काफ़ी हैरानी होती है लेकिन फ़िनलैंड के लोगों के लिए यह आम बात है। अपने इस लेख में पार स्टेनबैक लिखते हैं कि बच्चों के स्वास्थ्य के लिए निश्चित तौर पर यह एक अच्छी योजना है। यहां बहस बच्चों को गरम खाना देने पर नहीं है, बल्कि इस बात पर होती है कि खाने में बच्चों को क्या परोसा जाए? भारत के संदर्भ में शिक्षण के पेश के बारे में कहा जाता है कि यहां वेतन कम है और काम के घंटे ज्यादा है। यहां शिक्षकों को मिलने वाले सम्मान में गिरावट आ रही है। लोगों को लगता है कि शिक्षक स्कूल में काम नहीं करते। शिक्षकों के सामने बहुत सी ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका सामना करने में खुद को शिक्षक भी असहाय महसूस करते हैं। मगर उनकी बात कोई सुनने वाला नहीं है।
फिनलैंड में शिक्षा विषय पर अपने आलेख में स्टेनबैक कहते हैं कि फ़िनलैंड के सामने शिक्षा का खर्च उठाने की चुनौती है ताकि वह अपने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं को पूरा कर सके। आख़िर में वे एक बड़ी मजेदार घटना बताते हैं कि एक बार उनसे एक टीवी रिपोर्टर ने स्थानीय अधिकारियों के लिए एक लाइन में कोई सुझाव देने के लिए कहा तो उनका जवाब था, “शिक्षा और शिक्षक के पेशे के लिए स्थाई सम्मान का भाव विकसित करने मं 150 साल लगते हैं।” जाहिर सी बात है कि टीवी रिपोर्टर उनके जवाब से ख़ुश नहीं हुए।
(agenda.weforum.org पर प्रकाशित आलेख ‘3 reasons why Finland is first for education’ का अनुवाद।
That point is Admirable. Good wishes for such a nice dream.
As I m in education field I will love to go and visit the schools of Finland and really want to learn something good