कहानीः सोनू का निशाना
वर्तमान में बच्चों को ‘ऑनलाइन पढ़ाई’ में शामिल करने की कोशिश हो रही है। ऐसे ही समय जश्न-ए-बचपन व्हाट्सएप्प ग्रुप का निर्माण इस उम्मीद के साथ किया गया है ताकि बच्चा दिन में थोड़े ही समय सही संगीत, सिनेमा, पेंटिंग, साहित्य और रंगमंच से जुड़ अपनी भीतर मौजूद रचनात्मकता को प्रकट करे। वह मजे-मजे में अपनी रुचि के अनुरूप कुछ मस्ती करते हुए सीख भी ले। इसमें साहित्य का पन्ना महेश पुनेठा, सिनेमा संजय जोशी, ओरेगामी सुदर्शन जुयाल, पेंटिंग सुरेश लाल और कल्लोल चक्रवर्ती, रंगमंच जहूर आलम और कपिल शर्मा मुख्य रूप से इससे जुड़े हुए हैं।
साहित्य की गतिविधियों को देखने वाले महेश पुनेठा जी कहते हैं, “इन दिनों ‘जश्न-ए-बचपन’ व्हट्सप ग्रुप में नवयुवकों से साप्ताहिक रूप से साहित्य पर संवाद करने का अवसर मिल रहा है। साहित्य की अलग-अलग विधाओं को गतिविधियों के माध्यम से समझने की कोशिश की जा रही है। प्रतिभागी अपनी रचनाएँ ग्रुप में पोस्ट कर रहे हैं। इसी क्रम में जीवन की रोचक घटनाओं को कहानी में बदलने की गतिविधि की गयी। यह कहानी भी उन्ही रचनाओं में से एक है। यह कहानी भी उन्ही रचनाओं में से एक है। इस कहानी को कृति अटवाल ने लिखा है।
कहानी
“अरे! आज फ़िर लड़ाई करके आया है क्या? बता तो सही आख़िर हुआ क्या? रामू तू तो बता, आज तेरा भाई क्या नया बखेड़ा खड़ा कर आया है?” मां ने कहा। रामू बोल उठा, “मां आज सोनू की कोई गलती नहीं है। आम की बगिया में गांव के बच्चे पिट्ठू खेल रहे थे। हम तो बस खेत की मेड़ पर बैठ खेल देख रहे थे। तभी किशन चाचा के बेटे जगिया ने कहा की तुम लोग भी आकर खेलो। मैं तो मना कर ही रहा था पर सोनू ने कहा कि ददा जब वह हमें खुद बुला रहे है तो हम क्यों भाव खाएं। खेल लेते हैं ना। मां में भी इसकी बातो में आ गया।
फिर क्या था तेरा लाडला सोनू बाहुबली की तरह निशाना लगाने जा रहा था। जगिया ने भी सोनू के हाथ में गेंद थमा दी। लेकिन इसकी गेंद पिठ्टू टॉवर पर नहीं बल्कि दूसरी ही दिशा में गई। फिर क्या था पकड़-पकड़ कर मारा उन्होंने इसे। इसके चक्कर में मैं भी फँस गया। बेवकूफ़ कहीं का! चुपचाप बैठे थे पर इस लड़के को चैन कहाँ मिलता है।” गुस्से से लाल सोनू ने कहा “तू मेरा दा है या उन सब का। तू तो मुझे ही खलनायक बता रहा है। ख़ैर छोड़ो मां, आज मै बदला लेकर रहूंगा। आज मैं इन्हें नहीं छोडूंगा। आज तो मै इनसे बदला लेकर रहूंगा।”
घर के आगे आंगन में चूल्हे पर ढेर सारी लकड़ियां पड़ी हुई थी। ढेर में से एक मोटा और लंबा सा डंडा सोनू ने और कुछ कंकड़ भी बटोरे। सोनू से बोला “ले तू भी पकड़ आज तो सर फोड़ देंगे उन सभी का। समझते क्या हैं वो खुद को।” पीछे से मां ने टोका ” रामू और सोनू दोनों के दोनों थम जाओ। बहुत हो गया तुम्हारा ड्रामा। जैसा वो करेंगे वैसा ही तुम भी करोगे क्या। अरे तुम में और उन में क्या फर्क रहा जाएगा रे। चुपचाप खाना खाओ और पढ़ने बैठ जाओ। वरना तुम्हारे पिताजी को तुम्हारी सारी हरकतें बता दूंगी। सोच लो फिर तुम्हारा क्या हस्र होगा।”
रामू झट से बोल उठा “गुस्सा क्यों होती है जा तो रहे है।” रामू तो शांत हो गया। पर आज नन्हे सोनू के मन में गुस्से की आग पल रही थी। ना उसने खाना खाया और ना भी उसके मन से वह बात निकली। बस बिस्तर पर तकिया दबाए बैठा हुआ था मानो वो तकिया ही वह शख़्स हो जिससे उसे बदला लेना है। सोनू को देख मां को लगा की अब इसे समझाना ही पड़ेगा। माँ जमीन पर बीछी दरी पर जाकर बैठ गई। सूखे कपड़े वहां पर रख कर उन्हें तय करने लगी। उन्होंने आवाज लगाई ” अरे ओ, सोनू रामू आओ तो दोनों। मदद करो मेरी।”
मां की एक आवाज में दोनों झट से मां की मदद करने पहुंच गए। कपड़ों को तय करते हुए मां बोली “तुम्हे बहुत गुस्सा आ रहा है रे और तुम्हे बदला भी लेना है। चलो मैं करूंगी तुम्हारी मदद।” दोनों ही बड़े खुश हो गए, गुस्से की आग को मानो हवा मिल गई हो। उत्सुकता से भरे स्वर में रामू बोला “मां क्या तुम हमारे साथ उन्हें मज़ा चखाने आओगी? मां क्या तू उन्हें डांटेगी कि उन्होंने क्यों मारा हमें, आख़िर हम खेलने ही तो गए थे उन के साथ।” मां ने कहा “नहीं बेटा! मै तुम्हे निशाना लगाना सिखाऊंगी और फिर तुम उन्हें खेल में हराकर अपना बदला पूरा करना।”
सोनू ने आव देखा न ताव लग गया झट से बोल पड़ा “देर क्यों करनी है चलो मुझे निशाना लगाना सिखाओ।” मां उसे आंगन में ले गई पिट्ठू का टॉवर बनाया और सोनू के हाथ में गेंद थमा दी। सामने खड़ा अनुभवी आम का पेड़ और उसमे बैठी चिड़िया दोनों ही सोनू को देख रहे थे मानो उसे सांतना दे रहे हो। मां ने कहा “बेटा तुझे क्या क्या दिख रहा है?” सोनू बोला “नीला आसमान और उसमे तरह तरह के आकार बना रहे पंछी। ये हरे भरे खेत इनमें चार चांद लगा रहे पेड़। आस पास के घर और घरों में बंधे जानवर।” मां ने कहा “बेटा अब तू अपना ध्यान केवल इस पिट्ठू टॉवर पर लगा और जब तक तुझे केवल ये पिट्ठू टॉवर ना दिखे निशाना मत लगाना।”
और फिर क्या था सोनू के नेतृत्व मिल गया था वह चल पड़ा मां कि दिखाई राह पर। लगातार दो दिन के अभ्यास के बाद अब वह बच्चो के बीच अर्जुन कहलाने योग्य हो गया था। अगले ही दिन सोनू रामू के साथ बगिया पर गया। सुबह की हल्की धूप में सभी बच्चे खेल रहे थे। उन्हें देख कर खेल रहे बच्चों ने उन्हें और उकसाते हुए कहा “क्या तुम्हारा उस दिन की मार से मन नहीं भरा जो फिर मुंह उठाए आ गए।” मौके पर मौजूद सभी बच्चों को छेड़ते हुए सोनू बोला “आज हम खेलेंगे भी और जीतेंगे भी।” तभी पीछे से आवाज आई, “लेकिन अगर तुम्हारा निशाना चूका तो आज तो हम सब तुम्हे बोरे में भर के मारेंगे।”
आज सोनू का निशाना नहीं चूका गेंद सही जगह पर जाकर लगी एक बार नहीं बार-बार निशाना सही जगह पर लगा। सोनू के निशाने से खुश होकर सभी बच्चों ने उससे दोस्ती कर ली और सोनू का गुस्सा भी शांत हो गया। अब सोनू-मोनू खुशी से खिल खिलाते हुए घर पहुंचे। राह पर जितने लोग मिले सोनू ने सभी को चिल्ला चिल्ला कर बताया कि ” काका-काकी, दादा-दीदी, मैं तो निशाना लगाने में निपुण हो गया हूं। मुझे शायद ही इस गांव में कोई हरा पाए।” उसकी बाते सुनकर रामू को भी अपने ही चिते भाई से जलन होने लगी थी उसने सोनू से कहा भी कि “तू इतना उछल क्यों रहा है रे, जैसे कोई जंग जीत ली हो। निशाना ही तो सही जगह पर लगा है।
“पर सोनू कहां किसी की सुनने वाला था, वो तो सातवें आसमान पर था। मां को भी बताया कि मां आज तेरे लाल सफल हो कर आए हैं। सोनू बड़े ही विश्वास के साथ अपनी दीदी से बोला की मै तुझे भी निशाना लगा कर दिखाता हूं पास पड़ी मेज पर आलू रख कर बोला “दीदी मै तुझे इस आलू पर निशाना लगा कर दिखाऊंगा”। पर यह क्या यह बाजी तो उल्टी पड़ गई पीछे रखा कांच का गिलास गेंद लगने से टूट गया। अरे पिताजी भी घर आ गए यह तो नहले पर देहला हो गया। टकटकी लगाए पिताजी सोनू को घूरने लगे। अब तो सोनू गया। गुस्से में पिताजी ने पूछा “जिसने यह किया है सामने आए और इसे साफ करे।”
सहमा हुआ सोनू कुछ क्षण बाद आगे आया।उसकी आंखे भर आई थी। पिताजी ने कहा ” साफ करो इसे”। मां ने सोनू की सिफारिश लगाते हुए कहा “अरे रहने दो ना। सोनू अभी छोटा है। हो गई उससे गलती। कांच चुभ जाएगा उसे। मैं कर देती हूं ना।” पिताजी ने कहा ” जब गलती करना आता है तो उसे सुधारना भी आना चाहिए। करने दो सोनू को।” पिताजी के डर से सोनू भी काम पर लग गया। ओहो! सोनू के हाथ में कांच चूब गया और खून बहने लगा। दिन भर की खुशी एक क्षण में तबाह हो गई। यह देख पिताजी सोनू के पास बैठे और उसकी मदद करते हुए पूछने लगे “कैसे टूटा यह गिलास?” सोनू बोला “पिताजी मैंने तो बहुत अभ्यास किया था निशाना लगाने का और मै सफल भी हुआ पर न जाने कैसे अभी मेरा निशाना चूक गया।” पिताजी ने कहा “तेरे अभ्यास का फल तुझे मिला और तू सफल भी हुआ। लेकिन इस सफलता के बाद तुझे लगने लगा की अब तूने महारथ हासिल कर ली है। बेटा यह सिर्फ तुम्हारे घमंड के कारण हुआ। तुम्हे अपनी सफलता पर घमंड होने लग गया था। जो बिल्कुल भी सही नहीं है।” सोनू पिताजी की बात समझ गया। और फिर पिताजी और सोनू ने मिलकर टूटे हुए कांच को समेटा।
(कृति अटवाल उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल मे अध्ययनरत हैं। अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका के सम्पादक मंडल से भी जुड़ी हैं। अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ मिलकर एक मासिक अखबार भी निकालती हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले।)
आडंबरहीन नेतृत्व 👌👌
बिना किसी तामझाम के सटीक नेतृत्व
Achha prayas hai…aise hi karyon se bachcho ki pratibha nikhar or samne ayegi… Sudhar hoga..ve or adhik istrh k karyo k liy prerit honge