‘कब फिर से गूंजेगा स्कूल बच्चों की खिलखिलाहटों से’ – ऋतु आर्य
ऋतु आर्य लिखती हैं, “मेरा कार्य मुझे बहुत सुकून देता है। बच्चों के बीच रहना और उनसे बातें करना। दिनभर बच्चों की मैम जी, मैम जी कहना कितना अच्छा लगता था। जिन बच्चों के पास फोन है, उनसे तो कभी-कभी बात हो जाती है पर जिनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है पता नहीं वे बच्चे किस परिस्थिति में होंगे।” उनकी यह चिंता भारत के विभिन्न राज्यों में रहने वाले शिक्षकों की भी हैं। उन्होंने अपनी इन पंक्तियों में बाकी शिक्षकों की साझी चिंताओं को शब्द दे दे दिए हैं। आगे की कहानी उन्हीं के शब्दों में विस्तार से पढ़िए।
मेरे स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता मजदूरी ही करते हैं और आजकल सभी का काम भी बंद है। बच्चों के घर न तो टीवी है, न फ़ोन दिनभर घर में कैसे एक कमरे के घरों में खुद को कैद रख पाते होंगे। इन बच्चों का तो ज्यादातर समय तो घर के बाहर ही खेलने में बीतता था।
मेरा घर विद्यालय के पास ही है, मैं यूँ ही एक दिन विद्यालय में चली गयी कि देखूं मेरा स्कूल कैसा है? स्कूल का ताला खोल कर में अन्दर गयी तो आँखें भर आयीं। वहां न बच्चों का शोर था न मेरे करने को कुछ। गुड मॉर्निंग बोलने में भी बच्चों में होड़ रहती थी कि मैडम के पास पहले कौन जायेगा और बोलेगा गुड मॉर्निंग। बच्चों को हर समय पढ़ो-पढ़ो कहकर हम थक जाते थे, पर बच्चे अपना बचपना कहाँ छोड़ने वाले थे।
वो तो उसे भरपूर जीना चाहते थे, शायद इस बंधन का एहसास उन्हें हो रहा था। फिर मैं क्लास के अन्दर गयी जहाँ मेरे बच्चे बैठकर पढ़ते थे अपने हाथों से उन्होंने चार्ट बनाकर कक्षा-कक्ष को सुसज्जित किया हुआ था। अपनी बेंच में वे अपनी पुस्तकें छोड़ कर जाया करते थे, कहते थे कि मैडम बहुत भारी होती हैं ये पुस्तकें।
बच्चों के क़दमों की आहट का इंतज़ार
उन किताबों में, चार्ट में, बेंच में सिर्फ धूल ही धूल थीI जिन बच्चों के पास मेरा फ़ोन नंबर था उनके अब फ़ोन भी आने शुरू हो गए हैं कि मैडम स्कूल कब खुलेंगें। कई बच्चे तो छुट्टी पसंद भी नहीं करते थे, छुट्टी के बाद भी वो हमारे पास आ जाते थे, कहते थे मैडम ये छुट्टियाँ क्यूँ होती हैं?
हमें घर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता तो अब कैसे रह रहे होंगें वे घर के भीतर बच्चों ने बड़े प्यार से जो क्यारियाँ सजायी थी,उनमें जो सब्जियों के बीज बोये थे वो उग तो आये हैं पर बच्चों के बिना मानो बढ़ना भूल गए होंI उन क्यारियों में जंगली घास भी उग आई है मानो वो भी बच्चों के क़दमों की आहट सुनना चाहती हो। आठवीं के बच्चों की विदाई पार्टी भी थी 14 मार्च 2020 की।
‘मैडम अब क्या हमारी विदाई नहीं होगी’

ऋतु आर्य, लेखिका अपने बच्चों को लॉकडाउन में याद कर रही हैं।
13 मार्च से ही विद्यालय बंद हो गया, बच्चे 1 मार्च पहले से ही तैयारी करते हैं,कि हम क्या पहनेंगें, लडकियां साड़ी पहनती हैं और पार्लर से तैयार होकर आती हैं, छोटी-छोटी से वो बच्चियां कितनी सुन्दर होती हैंI कक्षा-8 के बच्चे पूछते हैं कि मैडम अब क्या हमारी विदाई नहीं होगी, अब हम नवीं कक्षा में कब और कहाँ प्रवेश लेंगें?
और भी कई प्रश्नों से जूझ रहे होंगे वे इस वक्त,जो वो फ़ोन पर नही कह पा रहे हैंI मैं दुआ करती हूँ कि शीघ्र ही ये महामारी ख़त्म हो, सभी लोग स्वस्थ और निरोगी रहे, सभी पृथ्वीवासी अपनी पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो, सुखी हो, प्रसन्न हो और जिन्दगी फिर से पहले की तरह गुनगुनाने लगे।
(लेखक परिचयः ऋतु आर्य उत्तराखंड के देहरादून ज़िले में स्थिति एक
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बहुत सुंदर लेख मैम|
भावुक कर देने वाला लेख हैं मैंम ।
कुछ ऐसी ही हालत हम शिक्षकों और हमारे बच्चों की भी हैं । ईश्वर करें जल्द ही बच्चों के कलरव में स्कूल पहुंचे हम सभी । 🙏🙏🙏
आज ठहरे हुए हैं तो क्या हुआ
इसके बाद भी
जीवन में नवीन चेतनाओं का आगाज़ होगा…!
प्रकृति माँ है
जब भी कुछ देगी वो अविश्वसनीय और लाजवाब होगा…!!