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NEP 2020 वेबिनार: ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर ध्यान देने का विचार स्वागत योग्य है”

डायट सारनाथ, वाराणसी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर 14 दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है।

डायट सारनाथ, वाराणसी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (NEP) पर गहन चर्चा और कार्यनीति बनाने के लिए 14 दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। इसके तहत दूसरे दिन आयोजित होने वाली परिचर्चा का संचालन डायट प्रशिक्षु शिवांग पाण्डेय ने किया। इसमें डायट सारनाथ से रसायन शास्त्र विषय के प्रवक्ता नरसिंह मौर्य, राजीव गांधी विश्वविद्यालय, इटानगर, अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग से डॉ. सुमिन प्रकाश और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. सोमू सिंह ने अपने विचार व्यक्त किये। दूसरे दिन की परिचर्चा विशेषरूप से ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के दृष्टिकोण व सिद्धांत’ पर केंद्रित रही। यह 14 दिवसीय वेबिनार डायट सारनाथ, वाराणसी के प्राचार्य उमेश कुमार शुक्ल के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विज़न और सिद्धांत

डायट सारनाथ से रसायन शास्त्र विषय के प्रवक्ता नरसिंह मौर्य ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के विज़न और सिद्धांत की चर्चा पर आधार वक्तव्य दिया। उनके शब्दों में, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य भारतीय मूल्यों से अनुप्राणित शिक्षा प्रणाली का विकास करना है ताकि भारत को ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति बनाने के साथ ही जीवंत तथा न्याय संगत समाज का निर्माण किया जा सके। इसके तहत ऐसी पाठ्यचर्या और शिक्षाविधि का निर्माण करना है जो छात्रों में मौलिक कर्तव्य, संवैधानिक मूल्यों के प्रति सजगता और देश प्रेम की भावना विकसित करे। इसके साथ ही साथ निरंतर बदल रहे विश्व में एक विश्व नागरिक की भूमिका का निर्वाह करने और उसके उत्तरदायित्व बोध लिए भी तैयार कर सके। भारतीय होने के अहसास का गर्व लोगों के विचार, व्यवहार, बुद्धि, ज्ञान, कौशल और मूल्यों में प्रकट हो।“

प्रवक्ता नरसिंह मौर्य ने कहा, “मानवाधिकारों व विश्व कल्याण के लिए प्रतिबद्धता का विकास करना और ‘अच्छे इंसानों’ का निर्माण करने का विज़न भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शामिल किया गया। ऐसे इंसान जो तर्क संगत विचार और कार्य करने में सक्षम हों, जिनमें करुणा, सहानुभूति, तर्क, साहस, लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन की क्षमता, रचनात्मक कल्पनाशक्ति और नैतिक मूल्य हों, उनको अच्छे इंसान की संज्ञा दी गई है।“ सरल शब्दों में NEP-2020 का उद्देश्य ऐसे लोगों को तैयार करना है जो संविधान की मूल भावना के अनुरूप समावेशी और बहुलतावादी समाज के निर्माण में अपना योगदान कर सकें।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के मूलभूत सिद्धांत

प्रवक्ता नरसिंह मौर्य के शब्दों में, “हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति, पहचान और विकास के लिए प्रयास करने को सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके तहत बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जायेगी। सीखने के तौर-तरीकों और कार्यक्रमों के चयन में लचीलापन वाला नज़रिया अपनाने की बात कही गई है। विभिन्न विषयों के विभाजन को एक समन्वित नजरिये से देखना यानि कला, विज्ञान, शैक्षिक और व्यावसायिक धाराओं के स्पष्ट अलगाव को समाप्त करने यानि मनपसंद विषयों के चुनाव व अध्ययन की स्वतंत्रता को स्वाभाविक रूप से शिक्षा व्यवस्था में स्थान मिलेगा। तार्किक चिंतन, रचनात्मक सोच और नवाचारों को प्रोत्साहित करने और अध्ययन-अध्यापन में मातृभाषा को प्रमुखता देने के साथ-साथ बहुभाषिकता के महत्व को भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दस्तावेज़ में रेखांकित किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि जीवन कौशलों (जैसे संवाद, सहयोग, समूहकार्य और लचीलापन) के विकास को भी स्थान दिया गया है। शिक्षकों के पेशेवर विकास (प्रोफेशन डेवेलपमेंट) की निरंतरता, कार्य के लिए सकारात्मक वातावरण की उपलब्धता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शोध की उत्कृष्ठता पर जोर दिया गया है। भारत की विविधता व स्थानीय परिवेश को महत्व देने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में सिद्धांत के तौर पर स्वीकार की गई है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पाठ्यक्रम में एक तारतम्यता बनाये रखने की बात कही गई है। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के विविध अवसरों का इस्तेमाल करने को भी विशेष महत्व दिया गया है। सीखने की प्रक्रिया में सतत आकलन को भी शामिल करने की बात कही गई है, पूर्व में इसकी जगह सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का इस्तेमाल किया जा रहा थॉ। इसमें शिक्षा पर भारत की जीडीपी के 6 प्रतिशत तक का निवेश करने की बात भी कही गई है।

‘शिक्षक-शिक्षा बहुविषयक संस्थानो के अंतर्गत आयोजित होगी’

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. सोमू सिंह ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षकों को केंद्र में रखने की बात कही गई है। शिक्षक-शिक्षा के अधिगम-शिक्षण केंद्रों को बहुविषयक बनाने की बात कही गई है। इसके साथ ही साथ शिक्षक-शिक्षा बहुविषयक संस्थानो के अंतर्गत आयोजित की जायेगी। भविष्य में शिक्षक-शिक्षा एकीकृत होगी यानि बीए-बीएड, बीएससी-बीएड जैसे इंटीग्रेटेड स्वरूप को अपनाया जा सकता है जो वर्तमान में भी सफलता के साथ संचालित हो रहा है। इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम (ITEP) को अपनाने की चर्चा हो रही है। इसके अलावा अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है जो ड्यूअल डिग्री वाले कोर्स के साथ शिक्षक-शिक्षा को भी शामिल किया जायेगा। चार वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम की पढ़ाई मल्टी-डिसीप्लीनरी सेटअप में होगी, जहाँ से किसी विषय में ग्रेजुएशन के साथ-साथ शिक्षा की डिग्री भी मिलेगी। ताकि भविष्य उच्च शिक्षा के अवसर भी छात्र-छात्राओं के सामने खुले रहें ताकि अगर विद्यार्थी एमए, एमएससी या अन्य विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहें तो आसान से कर सकें।

डॉ. सोमू सिंह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “शेष शिक्षण संस्थान जहाँ केवल डीएलएड या बीएड जैसे कोर्स संचालित हो रहे हैं, उनके संचालन में बदलाव होंगे। बहुविषयक संस्थान के रूप में इनका परिवर्तन होगा। भविष्य में बीएड चार वर्षीय, दो वर्षीय और एक वर्षीय कोर्स का संचालन होगा। अगर किसी स्नातक के विद्यार्थी को शिक्षक बनना है तो वे दो वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकते हैं। वहीं परास्नातक की पढ़ाई कर चुके विद्यार्थी एक वर्षीय पाठ्यक्रम में दाख़िला लेकर बीएड की पढ़ाई कर सकते हैं। आगामी दस वर्षों में जब शेष संस्थान बहुविषयक संस्थान के रूप में विकसित हो रहे होंगे, तबतक यह स्थिति बनी रहने की संभावना है।”

शिक्षण प्रोफ़ेशन को आकर्षक बनाने का प्रस्ताव

डॉ. सोमू सिंह के अनुसार, “जो लोग एकेडमिक लीडर बनना चाहते हैं, उनके लिए सर्टिफिकेट कोर्सेज़ का संचालन होगा। बीएड के बाद वे विशेष कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। शिक्षण के पेशे को आकर्षक बनाने के लिए मेरिट आधारित स्कालरशिप देने का भी जिक्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में किया गया है। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली परीक्षा पास करनी होगी। ऐसे छात्रों को जॉब में वरीयता देते हुए स्थानीय स्तर पर या ऐसे क्षेत्रों में नियुक्ति की जायेगी जहाँ पर शिक्षकों की संख्या काफी कम है। शिक्षकों के लोकल एरिया में रोल मॉडल के रूप में काम करने के लिए स्थानीय स्तर पर आवास जैसी सुविधाएं देने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में कही गई है। इसके लिए टीईटी की परीक्षा भी अलग-अलग आयोजित की जायेगी, ऐसा प्रतीत होता है।”

डॉ. सोमू सिंह ने स्कूल कॉम्पलेक्स की अवधारणा पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “स्कूल कॉम्पलेक्स की अवधारणा, स्थानीय ज्ञान को संरक्षित करने और स्थानीय कला व क्राफ्ट, कृषि व पेशों से जुड़े हुनरमंद लोगों को योगदान देने के लिए अवसर उपलब्ध कराया जायेगा। इनको डायट या ब्लॉक के स्तर पर प्रशिक्षित करके मास्टर इंस्ट्रक्टर के रूप में स्कूल से जोड़ा जा सकता है। इससे श्रम का महत्व स्थापित करने में सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से मदद मिलेगी। एन.सी.टी.ई. (NCTE) अब किसी भी संस्था को मान्यता देने और निरीक्षण करने की बजाय शिक्षकों के लिए प्रोफ़ेशनल स्टैंडर्ड निर्धारित करने का काम करेगी। ‘नेशनल प्रोफ़ेशनल स्टैंडर्ड ऑफ टीचर’ को स्थापित करने की जिम्मेदारी एन.सी.टी.ई भविष्य में करेगी और विभिन्न राज्यों के एससीईआरटी के साथ कंसलटेशन करके इस काम को आगे बढ़ाएगी।”

राजीव गांधी विश्वविद्यालय, इटानगर, अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में असिसटेंट प्रोफ़ेसर डॉ. सुमिन प्रकाश ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के सिद्धांतों का समीक्षात्मक आकलन प्रस्तुत किया। उनके शब्दों में, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का पहला सिद्धांत है कि हर छात्र की विशिष्ट क्षमताओं व प्रतिभाओं को पहचानने और प्रोत्साहित करने का काम किया जायेगा। यहाँ एक स्वाभाविक सा सवाल आता है कि हम बच्चों की विशेष प्रतिभाओं को कैसे पहचानेंगे। अभी तक शिक्षा शैक्षिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार थी, लेकिन नयी शिक्षा नीति सह-शैक्षिक क्षेत्रों में क्षमताओं को पहचानने की बात करती है, यह एक चुनौती है। उन्होंने कहा कि बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर विशेष ध्यान देने की पहल स्वागत योग्य है, जो ज़मीनी स्तर की चुनौती को स्वीकार करते हुए समाधान पर ध्यान देता है।”

‘विषयों के अनुशासन का अति सरलीकरण फलदायी विकल्प नहीं’

डॉ. सुमिन प्रकाश के अनुसार, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रवाधानों के अनुसार भविष्य में छात्र/छात्राओं द्वारा किसी भी विषय का चुनाव दिये गये विकल्पों में अपनी रुचि व इच्छा के अनुसार कर सकेंगे यह भी अच्छी बात है। विभिन्न विषयों की जो श्रेणियां बना दी गई हैं इसको खत्म करने की बात कही गई है, मेरे विचार से यह एक छोटा बदलाव है। लेकिन विभिन्न विषयों के अनुशासन का अत्यंत सरलीकरण बहुत ज्यादा फलदायी विकल्प नहीं है। प्रोफ़ेशनल और वोकेशनल कोर्सेस की तरफ छात्रों का ज्यादा रुझान था, ख़ासतौर पर साइंस के क्षेत्र में। पारंपरिक पेशे से जुड़े परिवार के अभिभावकों व बच्चों में भी उच्च शिक्षा हासिल करने की आकांक्षा है। इसका एक कारण पारिवारिक पेशों से होने वाली आय का कम होना भी है।”

डॉ. सुमिन प्रकाश ने कहा, “शिक्षा को बहु-विषयक बनाने की बात जैसे साइंस के विषय के साथ बच्चा म्युजिक, पेंटिंग, ड्रामा का भी एक विषय लेने की स्वतंत्रता एक सुयोग्य क़दम है। लेकिन अति-सरलीकरण की चुनौती फिर भी बनी रहती है। कोठारी आयोग और 1986 की नई शिक्षा नीति, एनसीएफ-2005 में भी रंटत प्रणाली पर रोक लगाने और अवधारणात्मक समझ विकसित करने पर जोर देने की बात कही थी। इसका फिर से उल्लेख करना एक स्वागत योग्य क़दम है। विचारों में मौलिकता व कल्पनाशीलता को प्रोत्साहित करने का विचार स्वागत योग्य है, लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन को बहुत ज्यादा बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ रचनात्मकता व कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं दोनों स्वभाव में विरोधाभाषी हैं।”

डॉ. सुमिन प्रकाश ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की समीक्षा करते हुए कहा, “रचनात्मकता व समालोचनात्मक चिंतन के लिए अनुभव आधारित सीखने और रियल टाइम में प्रयास करने की जरूरत होती है। टेक्नोलॉजी से पहुंच का विस्तार होगा, लेकिन शिक्षक-छात्र के बीच जो संबंध आमने-सामने की मौजूदगी से बनता है वह ऑनलाइन शिक्षा से संभव नहीं होगा यह बात भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। इमोशनल डिसकनेक्ट के कारण शिक्षक व छात्रों के बीच आपसी भरोसा नहीं विकसित होगा, इसके बिना क्रियेटिव व क्रिटिकल थिंकिंग का विकास नहीं हो सकेगा। शिक्षा नीति के अन्य सिद्धांत संवैधानिक मूल्यों व मानव मूल्यों की बात करते हैं, यह एक अच्छा विचार है। 9वां सिद्धांत बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करने की बात करता है, लेकिन इसको लेकर कई सारे प्रश्न भी हमारे सामने हैं जैसे मातृभाषा में शिक्षण के सबके अपने निजी अनुभव हैं। इसके कारण छात्र-शिक्षक संबंध सहज होते हैं। लेकिन हमारे देश की विविधता जिसको विकसित करने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 करती है उसमें अगर हम देखें तो भाषायी विविधता के लिहाज से विश्व के सबसे संपन्न देशों में से एक है। किस मातृभाषा का चुनाव शिक्षण के लिए होगा और उसमें पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता कैसे सुनिश्चित होगी, यह एक बेहद अहम सवाल है।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के ‘प्लान ऑफ एक्शन’ का इंतज़ार

डॉ. सुमिन प्रकाश के अनुसार, “आवासीय व ग़ैर-आवासीय स्थिति में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए जीवन कौशल का विकास करने के लिए अलग-अलग रणनीति चुननी होगी। ऐसा करके हम शिक्षा पर अतिरिक्त भार तो नहीं डाल रहे हैं, यह बात भी हमें ध्यान में रखनी होगी। 11वां सिद्धांत फॉर्मेटिव असेसमेंट की बात करता है। इसके पूर्व में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के कारण शिक्षकों क पेपर वर्क व अन्य काम बढ़ गये थे। इसके कारण उसकी आलोचना हो रही थी, अब मूल्यांकन की जगह आकलन शब्द का इस्तेमाल हो रहा है यानि हम परिणाम को लेकर वैल्यू जजमेंट नहीं करेंगे। यानि कैसे हम सुधार करेंगे अगर हम वैल्यू जजमेंट नहीं करेंगे। शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन नहीं हो सकता, हम किस सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आ रहे हैं, इन सारी चीज़ों का असर शिक्षा पर पड़ता है।“ भारत के 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में होने वाली नियुक्तियों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि शिक्षकों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं। इसको भरने के लिए किसी नीतिगत बदलाव की जरूरत नहीं है। जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का ‘प्लान ऑफ एक्शन’ आयेगा तब शायद कुछ प्रश्नों के जवाब मिलें।”

डॉ. सुमिन प्रकाश ने विश्लेषण को आगे बढ़ाते हुए कहा, “प्राथमिक स्तर से मिलता-जुलता पाठ्यक्रम माध्यम व स्नातक स्तर पर होगा, इससे विद्यार्थियों के सीखने में आसानी होगी। शिक्षक, शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया के केंद्र में होंगे। अगर इस वाक्य का विश्लेषण करें तो छात्र केंद्रित, अध्यापक केंद्रित जैसे विकल्पों की बात करते हैं। लेकिन शिक्षक को सम्मान मिले और शिक्षक मानवीय रूप में काम करें यह बात सहज रूप से स्वीकार्य और स्वागत योग्य क़दम है। योजनाओं का लगातार रिव्यू होना चाहिए, यह विचार भी स्वागत योग्य है। स्कूल बनाने से लेकर अन्य क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को अवसर मिलेंगे। लेकिन निजी क्षेत्र लाभ कमाने के उद्देश्य से लेकर आएंगे या फिर शिक्षकों का सम्मान बहाल करने के लिए काम करेंगे। यह देखने वाली बात होगी। विदेश से आने वाले विश्वविद्यालय तक्षशिला, नालंदा बनाने के लिए आएंगी, देश की परिस्थिति ठीक करने आएंगी या किसी अन्य हित को साधेंगी यह समय के साथ ज्यादा साफ होगा।”

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