स्कूल में ‘टाइम टेबल’ का हिस्सा क्यों बने पुस्तकालय?
पहली बार स्कूल आने वाले बच्चे को सबकुछ सीखना होता है। उदाहरण के तौर पर किताब को पकड़ना। उसके पन्ने पलटना। किताब का उल्टा-सीधा समझना। जब बच्चे के हाथ में किताब होती है तो बच्चे धीरे-धीरे बहुत सारी चीज़ें सीख लेते हैं। जो बच्चे पढ़ने का अभिनय करते हैं, वे भी जानते हैं कि किताब को किस दिशा में पढ़ा जाता है। हिंदी में बाएं से दाएं पढ़ा जाता है, जबकि उर्दू की स्क्रिप्ट में इसके विपरीत दिशा में पढ़ा और लिखा जाता है। बच्चे उपरोक्त परिस्थिति से अगर जल्दी ही रूबरू हों तो उसका लाभ आने वाले दिनों में मिलता है। बच्चे प्रिंट के सानिध्य में रहकर उसका इस्तेमाल करना सीखने लगते हैं। बस हमें प्रिंट के साथ उनके संवाद में मध्यस्थ या बतौर शिक्षक एक सुगमकर्ता की भूमिका निभानी होती है।
क्या बच्चों को किताब तब देनी चाहिए, जब वे पढ़ना सीख जाएं?
आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को किताब तब देनी चाहिए, जब बच्चे पढ़ना सीख जाएं। इस तरह की सोच में उपरोक्त परिस्थिति को समझने वाली संवेदनशीलता नहीं होती कि पढ़ना सीखने के लिए बच्चे का किताबों या लिखित सामग्री के साथ संवाद होना जरूरी है। इससे एक बच्चे को छपी हुई सामग्री या प्रिंट के साथ सार्थक रिश्ता बनाने में मदद मिलती है। वह जान पाता है कि जो चीज़ें उसने परिवेश में देखीं और जानी हैं, उन्हीं का जिक्र किताबों में भी है।
एक बार आदिवासी अंचल में पहली कक्षा के बच्चों को पहली बार पुस्तकालय में ले जाने का अवसर मिला, बच्चों ने पूरे पुस्तकालय की एक-एक किताब को बड़े ग़ौर से देखना और उसके बारे में आपस में चर्चा करना शुरू किया। एक बच्चा किताब लेकर मेरे पास आया और बोला कि ये ऑटो है। हमारे गाँव से शहर के लिए भी ऑटो जाती है। बच्चे को बताने की जिज्ञासा थी कि उसने अपने परिवेश की चीज़ को किताबों में खोज लिया है। बच्चों को अपनी बात कहने का अवसर मिले और यह अवसर सहज ही उनकी मातृभाषा या घर की भाषा में उपलब्ध हो, ऐसा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। ताकि विद्यालय के परिवेश में भी बच्चा घर जैसी सहजता का अनुभव कर सके।
टाइम टेबल का हिस्सा क्यों बने पुस्तकालय?
भारत में पढ़ने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने की जरूरत बहुत ज्यादा है। क्योंकि हमारे यहाँ पढ़ने का मुख्य उद्देश्य स्कूली और प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करना माना जाता है। बहुत सी किताबों का नाम केवल इसलिए रटा जाता है क्योंकि वे बहु-विकल्पीय सवालों के जवाब हैं। ऐसा बहुत विरले ही होता है कि इन किताबों के वास्तविक लेखकों की सामग्री से पाठकों की भेंट होती हो। कई बार तो ऐसा होता है कि बहुत सारे उपन्यास और किताबें इसलिए पढ़े जाते हैं क्योंकि वे पाठ्यक्रम का हिस्सा होते हैं। पाठ्यपुस्तकों के इर्द-गिर्द ही सारी पढ़ाई घूमती है। इसलिए बाकी सारी किताबों तक शिक्षकों की पहुंच नहीं बन पाती है, क्योंकि एक शिक्षक को पाठ्यक्रम के पूरा करने की चिंता पूरे साल लगी रहती है। हम पाठ्यक्रम को कम करने के बारे में नहीं सोचते ताकि बच्चों को उन पाठों की गहराई में उतरने का अवसर मिले। शिक्षकों को अन्य रचनात्मक माध्यमों का इस्तेमाल करके बच्चों को तरह-तरह का एक्सपोज़र देने का पर्याप्त समय मिल सके।
उपरोक्त परिस्थिति में यह अत्यंत आवश्यक बन जाता है कि पुस्तकालय को टाइम टेबल का हिस्सा बनाया जाए। बच्चों को कहानी सुनने, पढ़ने और उसके बारे में अपने विचार लिखने का अवसर दिया जाये और इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका एक सक्रिय सुगमकर्ता की हो जो बच्चों को सामने पठन गतविधियों को आदर्श रूप में करने की कोशिश करके पढ़ने के वास्तविक अनुभव से रूबरू कराते हैं। इसके साथ ही बच्चों को अन्य बच्चों के साथ जोड़ों में या स्वतंत्र रूप से पढ़ने का अवसर भी देते हैं। अगर पुस्तकालय टाइम टेबल का हिस्सा होगा तो बच्चों को सप्ताह में एक दिन किताबों के साथ पठन गतिविधि करने और किताबों के लेन-देन के लिए मिल पायेगा।
एक सक्रिय पुस्तकालय की जरूरत उन स्कूलों में भी है, जहाँ बच्चों को पढ़ना सीखने के लिए सपोर्ट की जरूरत है। ऐसे बच्चों को कहानी पढ़कर सुनाने और उस पर चर्चा करने से उनके सुनकर समझने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है जो भविष्य में बच्चों को समझकर पढ़ने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है। इसलिए पुस्तकालय कालांश को टाइम टेबल का हिस्सा जरूर बनाएं और शिक्षक साथियों को पठन गतिविधियों में नियमितता और खुद किताबें पढ़ने के लिए भी प्रधानाध्यापक की तरफ से सतत प्रोत्साहन मिलते रहने की जरूरत है। ऐसे माहौल में ही सही अर्थों में पुस्तक संस्कृति के विकास की दिशा में ठोस प्रयास संभव हो सकेंगे, जो आने वाले वर्षों में बड़े बदलाव के लिए पूर्व-तैयारी की तरह बेहद उपयोगी साबित होंगे।
बहुत-बहुत शुक्रिया आभा जी। पुस्तकालय में बच्चों को पढ़ने का समय देना निःसन्देह पढ़ने की आदत विकसित करने की दिशा में ले जायेगा।
पढ़ने की आदत के विकास के लिए