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भाषा शिक्षणः ‘शब्द’ को शब्द की तरह पढ़ने की जरूरत क्यों है?

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प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा शिक्षण की सबसे बुनियादी जरूरत है बच्चों को क्लासरूम में अपनी बात बेझिझक कहने का अवसर देना। उको कक्षा में अपने घर की भाषा इस्तेमाल करने का अवसर देना। उनको क्लासरूम में सहज होकर और आत्मविश्वास के साथ सहज होकर सवाल पूछने और अफनी जिज्ञासाओं व उलझनों को अभिव्यक्त करने का अवसर देना।

इसके लिए हमें विद्यार्थियों के साथ सतत संवाद करने और उनको उनके नाम से बुलाने की जरूरत होगी ताकि हर विद्यार्थी को महसूस हो कि कक्षा में उसकी उपस्थिति मायने रखती है और उनके सीखने की प्रगति का संक्षिप्त रिपोर्ट शिक्षक के पास होना चाहिए ताकि हर बच्चे की कॉपी से गुजरते समय या उनके साथ संवाद के अवसरों में विशिष्ट फीडबैक देकर उनके सीखने की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करना।

अक्षर सिखने पर ज़ोर देने की कोशिश भी है महत्वपूर्ण

हिंदी भाषा के शिक्षण में बहुत सारा जोर अक्षरों को सिखाने पर होता है। कई बार एक साथ पूरी वर्णमाला लिखकर रटवाने की कोशिश होती है जो अंततः कई बार निरर्थक सिद्ध होती है। इसलिए यह रणनीति अपनाई जाती है कि बच्चों को एक ही वर्ण दो दिनों तक सिखाया जाये और तीसरे दिन से उसकी पुनरावृत्ति करते हुए, दूसरा नया वर्ण सिखाया जाये। वर्णों को सिखाने की प्रक्रिया ऐसे शब्दों पर चर्चा के साथ शुरू करनी चाहिए जिसकी पहली ध्वनि उस वर्ण से मिलती हुई हो।

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इससे बच्चों को अमुक ध्वनि के साथ एक संदर्भ मिलता है जो सार्थक शब्दों व चित्रों के माध्यम से किसी ख़ास वर्ण को सीखने का अवसर देता है। इस प्रक्रिया में भी किसी ख़ास वर्ण को सिखाते समय उसकी आकृति बच्चों को साफ-साफ देखने और उसकी ध्वनि को सुनने का अवसर विद्यार्थियों को देना चाहिए। इसके लिए फ्लैश कार्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर बोर्ड पर उस वर्ण को बड़े आकार में लिखा जा सकता है ताकि सारे बच्चे आसानी से देख सके।

ध्वनियों को जोड़ना सिखाएं

वर्ण पहचान की स्थिति में विद्यार्थियों के एक आत्मविश्वास हासिल कर लेने के बाद अगली बड़ी चुनौती विद्यार्थियों को ध्वनियों को जोड़ने का कौशल सिखाने की होती है ताकि बच्चे वर्णों को आपस में मिलाना सीख सकें। यह प्रक्रिया सार्थक शब्दों की टूटी हुई ध्वनियों को आपस में जोड़कर सिखाने से भी की जा सकती है जैसे का, का, ना, ना, चा, चा, पा, पा और इनसे मिलकर बनने वाली ध्वनि काका, चाचा, नाना, पापा बच्चों को आसानी से चीज़ों को समझने में मदद करती है। वे तेज़ी से यह कांसेप्ट पकड़ लेते हैं कि दो ध्वनियां मिलकर एक नया शब्द बनाती हैं। इस कड़ी में दो वर्णों को मिलाकर शब्द की तरह पढ़ना सिखाया जाता है।

शब्दों को शब्द की तरह पढ़ना सिखाएं

इस तरह के अभ्यास के बाद भी प्रायः विद्यार्थी शब्दों में अक्षरों की अलग-अलग ध्वनियों को पढ़ते हैं, इस अभ्यास को सही तरीके से पढ़ने के दौरान सुनने का अनुभव देने और साथ-साथ किसी शब्द को पढ़ने और फिर अलग-अलग बच्चों को बोर्ड पर आकर पढ़ने का अवसर देना और प्रत्येक बच्चे को जरूरत के अनुसार सपोर्ट करना एक कारगर रणनीति के रूप में बेहद मददगार साबित होती है। इससे विद्यार्थी शब्द को शब्द की तरह पढ़ना और शब्दों का अर्थ होता है यह जानने लगते हैं। बच्चों के संदर्भ से जुड़ने वाले शब्दों का इस्तेमाल शब्द पठन की तैयारी और अभ्यास के लिए बेहद उपयोगी साबित होता है।

आप भी अपनी कक्षा में इस रणनीति को अपनाकर देखिए। अगर यह तरीका काम करता है तो अपने अनुभव शेयर करें। इससे मिलते-जुलते अनुभव जो क्लासरूम के संदर्भ में उपयोगी हों, आप पोस्ट पढ़ने के बाद टिप्पणी के रूप में लिख सकते हैं। इससे अन्य शिक्षक साथियों को भी मदद मिलेगी। आखिर में एक सबसे जरूरी बात कि प्राथमिक स्तर पर भाषा के कालांश में कविताओं व गीतों के इस्तेमाल के साथ-साथ कहानी सुनाने व कहानी पर चर्चा करने को ख़ास महत्व देना चाहिए। इसके अभाव में हमारी पूरी तैयारी अधूरी रह जायेगी, क्योंकि डिकोडिंग से आगे बढ़ने के लिए यह सारे प्रयास समझ की अहम रणनीतियों के रूप में काम करते हैं।

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