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कहानीः बिस्कुट

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वर्तमान में बच्चों को ‘ऑनलाइन पढ़ाई’ में शामिल करने की कोशिश हो रही है। ऐसे ही समय जश्न-ए-बचपन व्हाट्सएप्प ग्रुप का निर्माण इस उम्मीद के साथ किया गया है ताकि बच्चा दिन में थोड़े ही समय सही संगीत, सिनेमा, पेंटिंग, साहित्य और रंगमंच से जुड़ अपनी भीतर मौजूद रचनात्मकता को प्रकट करे। वह मजे-मजे में अपनी रुचि के अनुरूप कुछ मस्ती करते हुए सीख भी ले। इसमें साहित्य का पन्ना महेश पुनेठा, सिनेमा संजय जोशी, ओरेगामी सुदर्शन जुयाल, पेंटिंग सुरेश लाल और कल्लोल चक्रवर्ती, रंगमंच जहूर आलम और कपिल शर्मा मुख्य रूप से इससे जुड़े हुए हैं।

साहित्य की गतिविधियों को देखने वाले महेश पुनेठा जी कहते हैं, “इन दिनों ‘जश्न-ए-बचपन’ व्हट्सप ग्रुप में नवयुवकों से साप्ताहिक रूप से साहित्य पर संवाद करने का अवसर मिल रहा है। साहित्य की अलग-अलग विधाओं को गतिविधियों के माध्यम से समझने की कोशिश की जा रही है। प्रतिभागी अपनी रचनाएँ ग्रुप में पोस्ट कर रहे हैं। इसी क्रम में जीवन की रोचक घटनाओं को कहानी में बदलने की गतिविधि की गयी। यह कहानी भी उन्ही रचनाओं में से एक है।”

इस कहानी को 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले संदीप कौर ने लिखा है। वे उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं।

कहानी

अरे ……नीलू, जल्दी कर अभी बहुत सारे कूड़ेदानों से सामान निकालना है। हां-हां बस हो ही गया कुछ देर और, इस कूड़ेदान में बहुत सारा सामान एक साथ डाल दिया है जिससे सारा सामान मिल गया है और कुछ पता ही नहीं चल रहा। पॉलिथीन, पुराने कपड़े ,सब्जी और फल के छिलके और फटे हुए जूते सब डाल दिए हैं। जूते….दिखा तो। ( नीलू मां की तरफ जूते फेंकते हुए) लो देखो, पर करोगी क्या इनसे? अरे नीलू इतने अच्छे हैं अभी, पता नहीं क्यों फेंक दिए और भी समय चल सकते हैं, यह इतनी खराब नहीं है, बस अंगूठी से ही तो फटे हैं। इस अलग रखती हूं ,तू पहन लेगा ना वैसे भी तेरे पास पैरों में पहनने को कुछ नहीं है।

सही है माँ । अरे… अरे ये गंदा है, इन्हें नीचे फेंक और दुबारा मत उठाना, ऐसे गंदे बिस्कुट खाएगा। मां भूख लगी है खाने दो ना, इन बिस्किट में क्या है अच्छे खासे तो हैं बस नीचे गिर गए होंगे इसलिए किसी ने इस कूड़ेदान में डाल दिए होगें। नहीं, हीं तू यह बिस्किट नहीं खाएगा, फेंक कूड़ेदान में ही। अच्छा ठीक है मां। नीलू मन ही मन सोचता है कब मां का ध्यान हटे और कब फिर से वह बिस्कुट उठाएं। मां का ध्यान हटते ही नीलू ने झट से बिस्कुट उठाकर अपनी जेब में डाल लिए, और मन में सोचता है कि अगर उस घर के लोगों ने हमें खाने को कुछ दे दिया होता तो मुझे ऐसे कूड़े से उठाकर नहीं खाना पडता। यही सोचते हुए अपनी माँ की तरफ देखता है और कहता है, माँ उन लोगों ने हमें खाने को क्यों नहीं दिया, और वो हमें ऐसा क्यों कह रहे थे कि दूर से ही बात करो।

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नीलू तुझे बताया था न कि कोरोना बीमारी आई है। तो शायद उन लोगों ने सोचा होगा की कहीं हमें ये बीमारी तो नहीं । मां इस बीमारी से क्या होता है, इंसान मर जाता है क्या? चुप कर नीलू बहुत बोलने लग गया है। जल्दी काम निपटा कितनी देर और लगाएगा धूप बढ़ती जा रही है। नीलू कूड़ेदान से बाहर आ जाता है ,और कहता है चलो मां हो गया अब। चल कुछ देर सामने वाले पेड़ के नीचे बैठते हैं, खड़े-खड़े बहुत थक चुके हैं। ठीक है चलो मां।

दोनों पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं। तभी कोई चीज नीलू के पैर को स्पर्श करती है, बहुत ही कोमल सी, नीलू ने अपना मुंह घुमाकर देखा तो छोटा सा कुत्ते का बच्चा उसके पैर चाट रहा था। कुत्ते का बच्चा बहुत कमजोर सा ऐसा लग रहा था। ऐसा काफी दिनों से भूखा हो। नीलू भगा इसे देख जरा कैसे तेरे पैर चाट रहा है। अगर अभी नहीं भगाएगा इसे तो तेरे साथ ही आ जाएगा। खुद के खाने के लिए बड़ी मुश्किल से मिलता है, इसे कहां से खिलाएगा। मां नहीं आएगा यह मेरे साथ, बिचारा भूखा है तभी मेरे पैर चाट रहा है। उसे भी तो किसी का सहारा चाहिए ना।

नीलू उस कुत्ते के बच्चे के साथ खेलने लग जाता है। तभी उसे याद आता है कि उसने कूड़ेदान से बिस्कुट उठाए थे। क्या वे बिस्कुट इस कुत्ते को दे दे, नहीं यह तो मैंने अपने लिए उठाए थे वो भी मां से छुपते-छुपाते। अगर इसे दूंगा तो मैं क्या करूंगा उसके दिमाग में यही चल रहा था। पर आखिर में जब नीलू उसकी तरफ देखता है तो उसे उसकी आंखों में बहुत ही उदासीनता और अपने लिए प्यार दिखता है। उसका दिल पिघल जाता है और वह अपनी जेब में हाथ डालकर बिस्कुट कुत्ते को दे देता है और वह कुत्ते का बच्चा यह देखकर बहुत खुश हो जाता है और जल्दी से बिस्कुट खाने लग जाता है।

(संदीप कौर उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल मे अध्ययनरत हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले। इसी दौरान कहानी लेखन के सत्र में उन्होंने यह कहानी लिखी है। इस कहानी में उन्होंने एक कूड़ा बीनने वाले बच्चे के मन में चलने वाले द्वंद को कोरोना वायर से जूझती दुनिया में जीवंत तरीके से प्रस्तुत किया है।)

2 Comments on कहानीः बिस्कुट

  1. Virjesh Singh // May 3, 2020 at 4:34 pm //

    बिल्कुल दुरुस्त बात कही प्रतिभा। संदीप ने सराहनीय प्रयास किया है। यह कोशिश भावी संभावनाओं के द्वारा खोलती है। पढ़ने और लिखने का यह सिलसिला जारी रहे यही शुभकामानएं हैं।

  2. Pratibha // May 3, 2020 at 10:20 am //

    Very heart touching story..bachche Ka prayas sarahniya h 10th class me hote hue bhi bda sambedanshil bachcha h. Apne vartman paristhiyo k prati sajak or jagrook h.

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