पहली क्लासः आधी ऊर्जा तो बच्चों को संभालने में चली जाती है
पहली क्लास के बच्चों को पढ़ाना आसान काम नहीं है। एक शिक्षक कहते हैं, “आधी ऊर्जा तो बच्चों को व्यवस्थित ढंग से बैठाने में खर्च हो जाती है। क्योंकि इस कक्षा के बच्चे ऊर्जा से भरे होते हैं। जिज्ञासा उनकी रग-रग में दौड़ रही होती है। ऐसे में वे किसी भी चीज़ को हर एंगल से उलट-पलटकर देखने की कोशिश करते हैं।”
वहीं एक अन्य शिक्षक कहते हैं, “अगर हम क्लास में बच्चों को थोड़ी आज़ादी दें और बच्चों को खुद पहल करने के लिए प्रोत्साहित करें तो हमारा काम आसान हो जाता है। ऐसे में हम नियंत्रक वाली भूमिका से निकलकर एक सुगमकर्ता के रोल में आ जाते हैं, जहाँ हम बच्चों को केवल निर्देश देने की बजाय उनके साथ संवाद करते हैं। बातचीत के माध्यम से क्लास के लिए कुछ नियमों का निर्धारण करते हैं, जिसका ध्यान सभी बच्चों को रखना होता है। इसके बारे में बच्चों से नियमित अंतराल पर बात होती रहती है। ताकि ये बातें उनके ध्यान में रहें।”
किताबों से दोस्ती
आज पहली क्लास के बच्चों के लिए ‘लायब्रेरी इमर्जन’ का मौका मिला। यानी उनको पूरी आज़ादी थी कि वे लायब्रेरी वाले कमरे में रखी कोई भी किताब उठा सकते हैं। उसके चित्र देख सकते हैं। उसके ऊपर बच्चों से बात कर सकते हैं। अपने शिक्षक से उससे जुड़े अनुभवों पर बात कर सकते हैं। सबसे ख़ास बात कि जब पहली कक्षा के ज्यादातर बच्चे भाषा के कालांश में मौजूद थे, एक बच्चा छठीं-सातवीं क्लास में बैठा हुआ था। उस क्लास में जाने पर पता चला कि यह बच्चा तो यहीं बैठता है। उस क्लास के बच्चों से बात हुई कि वे उस बच्चे को उसकी क्लास में जाने दें।
मगर जब भी कोई बच्चा उसको हाथ लगाता वह उसे दाँत से काटने या फिर चिकोटी काटने की कोशिश करता। आख़िर में सातवीं के दो-तीन बच्चे उसे बैग के साथ पहली कक्षा में पहुंचा आए। अपनी क्लास में जाते समय यह बच्चा जोर-जोर से रो रहा था। लेकिन लायब्रेरी वाले कमरे में जाने के बाद वह शांत हो गया था। हालांकि उसका गुस्सा अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ था। पहली क्लास के बच्चे अपनी किताब से कॉपी में चित्र बना रहे थे। मैंने भी उस बच्चे को एक किताब दी, लेकिन उसने गुस्से से उसे किनारे रख दिया। थोड़ी देर तक वह किताब बच्चे के पास में ही उपेक्षित पड़ी रही। थोड़ी देर बाद वह बच्चा ख़ुद से किताब के पन्नों को पलटकर देख रहा था।
मनपसंद किताबों का चुनाव
लिखने वाला काम पूरा करने के बाद पहली क्लास के सभी बच्चों से कहा गया कि वे लायब्रेरी में रखी किताबें देख सकते हैं। कोई भी किताब उठाकर ला सकते हैं। बस ध्यान रखना है कि कोई किताब फटे नहीं। बच्चों ने किताबों को लाने का जो सिलसिला शुरू किया। वह लगातार जारी रहा। लायब्रेरी का हर कोना बच्चों की पहुंच में था। वे पुस्तकालय की आलमारी में रखी किताबें देखने के बाद, स्लाइडर वाली किताबें मांग रहे थे। वे क्लास के कोने में टंगी किताबों को भी उलट-पुलटकर देख रहे थे।
वे ऊपर-नीचे रखी किताबों के ढेर से अपनी मनपसंद किताब तलाश रहे थे। अपनी-अपनी पसंद को निर्धारित कर रहे थे। आख़िर में सबके पास में कई सारी किताब थी, जिसे वे घर ले जाना चाहते थे। चूंकि आज लायब्रेरी के प्रभारी शिक्षक मौजूद नहीं थे और पहली क्लास को थोड़े दिन पहले ही किताबें मिली थीं, इसलिए उनसे केवल किताबें देखने के लिए कहा गया। जो बच्चा पहली क्लास में आने के लिए रो रहा था। उसके बैग में पांच-छह किताबें थीं। वह कह रहा था कि उसे ये किताबें घर ले जानी है।
ऐसी ही बात बाकी बच्चों की तरफ से भी सुनाई दे रही थी। किताबों की उनकी पसंद में आकर्षक चित्रों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किसी को कजरी गाय फिसलपट्टी पर वाली किताब चाहिए थी, तो किसी को भालू ने खेली फुटबॉल वाली किताब पसंद आई। तो कुछ बच्चों को छोटी-छोटी किताबें बेहद पसंद आईं। वे चाहते थे कि यह किताब तो कम से कम घर ले जाने के लिए मिल ही जानी चाहिए। उनसे बात हुई कि आपको जो भी किताब पसंद है। उसे घर ले जा सकते हैं। मगर आज का दिन सिर्फ किताबें देखने और क्लास में बैठकर पढ़ने के लिए है।
लायब्रेरी की किताबों के साथ बच्चों के परिचय के इस सिलसिले के दौरान बच्चों के चेहरे पर हैरानी, ख़ुशी और जिज्ञासा वाले भावों की आवाजाही देखने लायक थी। एक बच्चे ने मुझे किताब लाकर दी। उसने कहा, “यह किताब पढ़ो। यह किताब बहुत अच्छी है।” एक दूसरे बच्चे ने कहा, “ये देखो ऑटो।” उसने किताब में शहर के बीच में दौड़ती ऑटो को दिखाया। उनके गाँव में ऑटो चलती है। इससे लगा कि बच्चे अपने परिवेश वाले अनुभवों से चीज़ों को जोड़कर देख पा रहे थे।
पहली क्लास में सफलता का मूलमंत्र
हालांकि इन बच्चों में से ज्यादातर बच्चों की उम्र पहली क्लास की अपेक्षित उम्र की तुलना में कम है। मगर किताबों के साथ उनका जो कनेक्शन इस एक घंटे के सिलसिले के बाद दिखाई दे रहा था। वह इस बात का संकेत था कि लायब्रेरी रूम में आना, अब उनके लिए पहले जैसी बात नहीं होगी। उन्होंने किताबों की दुनिया में दाखिल होने वाली खिड़की में घुसकर सैर कर ली है। वे जानते हैं कि इन किताबों में क्या-क्या है? इस जानने ने उनके किताबों के प्रति प्यार को और गहरा कर दिया है।
पहली क्लास में सफलता का मूलमंत्र है कि शिक्षक बच्चों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आएं। बच्चों के साथ नियमित रूप से काम करें। समय-समय पर अनौपचारिक आकलन से उनके प्रगति की समीक्षा करते रहें। जिस बच्चे को जहां पर दिक्कत आ रही है, उसे उसी बिंदु पर सुधार के लिए सही फीडबैक दें और सही अभ्यास का मौका दें ताकि बच्चा चीज़ों को अच्छे से समझ सके। साथ ही साथ सीखने के रास्त में आने वाली बाधाओं को ख़ुद से दूर करने की दिशा में लगातार प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित महसूस करे। इस पोस्ट में इतना ही। बाकी के मुद्दों पर चर्चा अगले पोस्ट में।
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