‘इंट्रोवर्ट’ बच्चे स्कूल में कैसी स्थितियों का सामना करते हैं?
अंतर्मुखी बच्चों से भी स्कूल में वही अपेक्षाएं होती हैं जो एक बहिर्मुखी बच्चे से होती हैं। क्योंकि शिक्षक हर बच्चे को एक जैसा बनाना चाहते हैं। यानि एक ऐसा होनहार छात्र जो हर मामले में अव्वल हो। चाहें सुबह की असेंबली हो, स्कूल की परीक्षाएं हों, फिर स्पोर्ट का पीरियड या फिर गाने की प्रतियोगिता। मगर हर बच्चे तो एक जैसे नहीं होते। ऐसी अपेक्षाओं का इंट्रोवर्ट छात्रों के ऊपर क्या असर होता है? पढ़िए इस पोस्ट में।
आमतौर पर स्कूल का माहौल बहिर्मुखी बच्चों के लिए ज्यादा अनुकूल होता है। मगर कुछ शिक्षक अपनी क्लास को हर तरह के बच्चों के अनूकूल बनाते हैं। इसके लिए वे शिक्षण की विभिन्न शैलियों को अपनाते हैं, ताकि हर तरह के व्यक्तित्व वाले बच्चों की भागीदारी हासिल की जा सकें।
अगर हम स्कूल के पूरे दिन को ग़ौर से देखें तो पाएंगे कि स्कूल का माहौल अंतर्मुखी बच्चों के स्वभाव के विपरीत होता है।
स्कूल की दिनचर्या
हर दिन बच्चे पाँच-छह घंटे स्कूल में बिताते हैं। बच्चे एक सबजेक्ट से दूसरे सबजेक्ट, एक एक्टिविटी से दूसरी एक्टिविटी, सीखने और बातचीत करने की प्रक्रियाओं से गुजरते हैं। हर दिन असेंबली से पहले और खाने की छुट्टी के दौरान उनको आपस में बातचीत करने और दोस्तों के साथ खेलने का मौका मिलता है। जहाँ वे अपनी कक्षा के दोस्तों के साथ ढेर सारी वक्त बिताते हैं। बच्चों के कमरे में काफी शोर होता है। कई बार तो शिक्षक भी ऐसे बच्चों के क्लास में जाने से घबराते हैं।
कई बार तो बच्चों के शोर से परेशान होकर बच्चे अपने काम बंद कर लेते हैं ताकि क्लास में उठने वाले तेज़ शोर से निजात पा सकें। हम वास्तव में एक बहिर्मुखी दुनिया में रह रहे हैं। जहाँ लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाने वाले। हो-हल्ले में आनंद लेने वाले बच्चे हमेशा अव्वल रहते हैं। ऐसे में अंतर्मुखी स्वभाव वाले बच्चे पीछे छूटने लगते हैं। क्लासरूम का ऐसा माहौल उनके लिए भावनात्मक रूप से थका देने वाला होता है। खाने की छुट्टी या क्लास में किसी शिक्षक की अनुपस्थिति में छोटे इंट्रोवर्ट बच्चों के लिए किसी बड़े और बहिर्मुखी बच्चों की उपस्थिति आत्मरक्षा की तरफ धकेलने वाली होती है।
इंट्रोवर्ट बच्चों का डर
स्कूल में लायब्रेरी की मौजूदगी इंट्रोवर्ट बच्चों के लिए एक सुकून वाली जगह साबित होती है। जहाँ, वे चुपचाप किताबें पढ़ सकतें। वहां शोर करने वाला कोई नहीं होता। मगर ऐसा उसी स्थिति में संभव है, जब लायब्रेरी में चुपचाप किताबें पढ़ने वाले नियम से सारे बच्चे अवगत हों। स्कूल में इंट्रोवर्ट बच्चों का भी एक समूह होता है, जो चुपचाप एक किनारे पर बैठकर खेल का आनंद लेता है। चीज़ों को देखने-समझने की कोशिश करता है। मगर हर इंट्रोवर्ट के लिए यह जर्नी इतनी आसान नहीं होती क्योंकि लोगों की भीड़ का सामना करना, उनके स्वभाव का हिस्सा नहीं होता।
वे लोगों के सामने आने से घबराते हैं। ऐसे बच्चों के बारे में शिक्षकों की राय बहुत अलग होती है। आमतौर पर वे मानते हैं कि यह लड़का या लड़की तो सवालों का जवाब ही नहीं देती। एक स्कूल में गणित के शिक्षक पहली क्लास की एक बच्ची से सवाल पूछ रहे थे। उसे डांट रहे थे कि वह सवालों का जवाब क्यों नही दे रही है। उस बच्ची के बारे में भाषा शिक्षक ने कुछ दिन पहले बताया था कि एक बार उन्होंने इस बच्ची को डांट दिया था। उसके बाद वह काफी डर गई थी। धीरे-धीरे वह फिर से सहज हुई है। अब वह अपनी बात आसानी से कह पा रही है।
क्या जवाब दें?
एक दिन उसी बच्ची को रोता हुआ देखकर लगा कि शिक्षकों के निशाने पर हर बार ऐसे ही बच्चे क्यों होते हैं, जो इंट्रोवर्ट होते हैं। ऐसे बच्चों की ख़ामोशी शायद उनको लोगों की नज़रों में दोषी साबित करती है। जबकि उनकी ख़ामोशी उनकी मासूमियत ही होती है। अगर वे किसी सवाल का जवाब नहीं जानते तो क्या जवाब दें?
बहिर्मुखी बच्चों के लिए तो ऐसी स्थितियों का सामना करना और उससे बाहर निकलना बड़ा आसान होता है। मगर इंट्रोवर्ट बच्चों के लिए तो ऐसी स्थितियों से बाहर आने में कभी-कभी लंबा वक्त लग जाता है। ऐसे में जरूरी है कि शिक्षक क्लास में ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान दें तो इंट्रोवर्ट हैं। अपनी दुनिया में खोये रहते हैं। ऐसे बच्चों को डांटने की बजाय प्यार से समझने और समझाने की जरूरत है ताकि ऐसे बच्चों को भी कक्षा में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
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