फोन कॉल मुफ्त हो सकती है, इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ाई नहीं
अपने देश में कुछ भी संभव है। फोन कॉल मुफ्त हो सकती है। मगर इंटरनेशल स्कूलों में पढ़ाई मुफ्त नहीं हो सकती है। 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश देने में ऐसे स्कूलों को पसीने छूट रहे हैं।
कुल मिलाकर सरकारी उपेक्षा का असर हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। टेलीकॉम सेक्टर का नया हो-हल्ला इसी तैयारी का हिस्सा है कि आने वाले दिनों में बाकी क्षेत्रों में निजी क्षेत्रों को आमंत्रित करने और ज़मीन पर कब्जा करने का न्योता बांटा जा रहा है।
‘….निजीकरण ही है भविष्य’
आदिवासी इलाक़ों और गाँवों में स्कूलों की जो स्थिति है उसका भविष्य निजीकरण ही है। ऐसे स्कूल जहां बच्चे हैं, वहां शिक्षक नहीं है। बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही है, शिक्षकों की प्राथमिकता में खाने का बहाना है।
दरअसल पढ़ाई या शिक्षा हमारी प्राथमिकता में कभी थी ही नहीं। जिन क्षेत्रों के लिए बजट मिल रहा था, विश्वबैंक से या बजट से कोशिश की गई है। आत्मनिर्भर और लंबे समय की योजना को ध्यान में रखकर प्रयास करने वाली सारी योजनाओं, परियोजनाओं और सुझावों को आज की तारीख तक दरकिनार किया गया है। आगे भी किया जाएगा।
क्योंकि शिक्षा मिली तो सवाल भी होंगे। जवाब देना पड़ेगा। जवाबदेही तय करनी पड़ेगी। जियो की तरह से विदेशी विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों के विज्ञापन पत्रिकाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। सबकुछ अकारण नहीं है, सबके पीछे एक व्यवस्था काम कर रही है। खेल जारी है। बस इसे समझने की जरूरत है
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