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बच्चों में ‘पढ़ने की आदत’ विकसित करने के 10 टिप्स

किसी लिखित सामग्री को समझ के साथ पढ़ने वाले बच्चों की एकाग्रता का स्तर अच्छा होता है। वे किसी सामग्री के साथ ज्यादा देर तक समय बिताते हैं। समय के साथ धीरे-धीरे उनकी उस विषय पर पकड़ अच्छी होती जाती है। वे अपने पूर्व-अनुभव व समझ का इस्तेमाल करके बाकी विषयों की सामग्री को भी इसी तरीके से समझने और पढ़ने की दिशा में तेज़ी से प्रगति करते हैं। यही कारण है कि कहानी की किताब पढ़ते-पढ़ते बच्चे कोर्स की किताबों को भी तल्लीनता से पढ़ना शुरू कर देते हैं। लेकिन बच्चों को यहाँ तक लाने के लिए धैर्य के साथ काम करने की जरूरत है।

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एक सरकारी स्कूल में एनसीईआरटी की रीडिंग सेल द्वारा छापी गयी किताबें पढ़ते बच्चे।

इसके साथ ही साथ हमें ध्यान रखना होता है कि हम बच्चों के मन में ऐसा कोई पूर्वाग्रह न भरें कि कहानी की किताबें ही रोचक होती हैं। उनको ही पढ़ने में मन लगता है। कोर्स की किताबें तो बोरिंग होती हैं। क्योंकि यह बातें बच्चे बड़ों से सुनकर सीधे-सीधे आत्मसात कर लेते हैं। उनको लगता है कि बड़े अगर यह बात कह रहे हैं तो सच ही कह रहे होंगे। अगर यह बात शिक्षक की तरफ से कही जाए तो बच्चों के भरोसे को तोड़ना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि बच्चे अपने शिक्षकों की बात पर अभिभावकों की बात से भी ज्यादा भरोसा करते हैं। यह बात आप किसी अभिभावक से या फिर किसी शिक्षक से पूछ कर देख सकते हैं तो अभिभावक वाली भूमिका भी सक्रियता के साथ निभा रहे हैं।

दस बातें जो ‘रीडिंग हैबिट’ के विकास में मदद करती हैं

1. बच्चों को किताबों के साथ समय बिताने का मौका दें। ताकि बच्चे किताबों की दुनिया से एक अच्छा परिचय हासिल कर सकें। बच्चों को किताबों के चित्र। मुख्य पृष्ठ का अवलोकन करने दें। उसके बारे में दोस्तों से बात करने दें। फलों वाली किताबों से आम, अमरूद, सेब खाने का अभिनय करने दें। रेलगाड़ी वाले चित्र को देखकर छुकछुक करने का अनुभव करने दें। ऐसे सहज अनुभव में ही भविष्य के ‘स्वतंत्र पाठक’ बनने के रहस्य छिपे हुए हैं। इस प्रक्रिया को फैसिलिटेट करें, बच्चों के ऊपर बहुत ज्यादा नियम न थोपें। जब किसी बच्चे को जरूरत हो तभी मदद करें, खुद से बच्चे अपनी मदद करते हैं। यह भी आप अवलोकन कर सकतें हैं।

2. बच्चों की क्षमता के ऊपर 100 फीसदी भरोसा करें कि छोटे बच्चे भी किताबों को जिम्मेदारी के साथ संभाल सकते हैं। बच्चों को भी किताब देखने में आनंद आता है। बच्चों के लिए किताबों का आनंद केवल किताब फाड़ने तक ही सीमित नहीं है। कोई भी बच्चा चित्रों वाली किसी अच्छी किताब के पन्नों का नाव बनाने में या हवाई जहाज बनाने में इस्तेमाल करते हुए मैंने आजतक नहीं देखा। किताबों के चित्रों व कहानी से प्रभावित होकर ऐसे बच्चों को तितली और गाड़ी का चित्र बनाते हुए देखा है, जिन बच्चों के बारे में शिक्षक साथियों की राय थी कि इन बच्चों की उम्र है, ये बच्चे लिख नहीं सकते। इस बदलाव को कहानी सुनाने व किताबों के चित्र दिखाने का जादू भी कह सकते हैं आप।

3. बच्चों को सोने से पहले कहानी सुनाएं। कहानी के बारे में बच्चों को अपनी राय बताने का भी मौका दें।

4. बच्चों को किताब से पढ़कर भी कहानी सुनाएं। इस दौरान बच्चे से पूछ सकते हैं कि कल हमने कौन सी कहानी सुनी थी। बच्चों की अपनी पसंद भी होगी, वे कहेंगे कि हमें आज वही वाली कहानी सुननी है।

केवल चित्रों वाली किताब से भी बच्चों को रूबरू होने दें। इससे बच्चे अपने आसपास के परिवेश के प्रति सजग होंगे। उनकी संज्ञानात्मक क्षमता का विकास भी होगा। वे चित्रों पर खुद से संवाद करेंगे और जिन चीज़ों को उन्होंने देखा है, उनको भी व्यक्त करने की कोशिश करेंगे।

  1. किताबों के साथ बच्चों को खुद से समय बिताने का मौका दें।

  2. दो बच्चों को एकसाथ बैठकर किताब पर बात करने का मौका दें।

  3. किताबों की विविधता का ध्यान रखें। कभी कहानी, कभी चित्रकथा, कभी बिग बुक तो कभी थीम आधारित किताबों का इस्तेमाल करें (जैसे पत्र, नदी, जंगल, फल, फूल इत्यादि।)

9.बच्चों पर कहानी को रटने का दबाव न बनाएं। उनसे सहज ही सवाल पूछें कि कहानी में कौन-कौन था। वे लोग क्या कर रहे थे। किसी पात्र के साथ क्या हुआ? इस कहानी में कब-कब मजा आया।

10. आखिर में एक सबसे जरूरी बात, “बच्चों की भाषा का स्तर जैसे जैसे बेहतर होता जाए, उनको उच्च स्तर की किताबें भी पढ़ने के लिए दें। उनके सामने रीडिंग का चैलेंज रखें, इससे बच्चों के पठन स्तर का तो विकास होगा ही, इसके साथ ही साथ बच्चे उच्च स्तर का टेक्सट भी पढञकर अच्छे से समझ पाएंगे। यह तैयारी उको पाठ्यक्रम और कक्षा के अनुसार तेज़ी से बढ़ते रीडिंग के कठिनाई स्तर को सुगमता के साथ मैच करने के लिए तैयार करेगी।”

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