पुस्तक चर्चाः ‘शिक्षा के सवाल हमारे जीवन के सवाल हैं’
लोकोदय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और महेश पुनेठा जी द्वारा रचित यह पुस्तक उन तमाम सवालों, मतों व अनुभवों का संकलन है जो आज की शिक्षा प्रणाली को प्रतिबिंबित करते हैं। पुस्तक में 124 पृष्ठों में 29 आलेख है। इन आलेखों में सृजनशीलता,बदलाव के लिए शिक्षा, समान शिक्षा, वाउचर प्रणाली के खतरे, लोकतांत्रिक,धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक चेतना का विकास, बच्चे स्वभाव से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के होते हैं, भयमुक्त वातावरण और शिक्षण का माध्यम परिवेशीय भाषा आदि शामिल हैं।
इनमें से एक आलेख “पाठ्य पुस्तकों के बोझ के तले सिसकती रचनात्मकता” में लेखक लिखते हैं, “भयग्रस्त मन कभी भी सृजनशील नहीं हो सकता है”। मैंने यह बात अपने जीवन में महसूस भी करी है। जब भी मैं कोई चीज डर के पढ़ती हूं तो ना तो वह मुझे याद रहता है, ना ही समझ आता है और ना ही मैं उस समय कुछ सोच पाती हूं। इसी आलेख में आगे वह कहते हैं कि-“आज हमारी शिक्षा व्यवस्था में स्वतंत्रता, अवसर की उपलब्धता और चुनौती का घोर अभाव है।” जो कि एक चिंता का विषय है।
‘शिक्षा के सवाल हमारे जीवन के सवाल हैं’
उनका कहना है कि शिक्षा अपने पथ से भटक गई है और मुनाफा कमाने का जरिया बनकर रह गई है।उन्होंने शिक्षा को “जीवनोन्मुखी बनाने के ऊपर भी अपने मत प्रकट किए हैं”। पुस्तक में कई जगह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के शोध भी इस्तेमाल में लाए गए हैं। लेखक का मानना है कि शिक्षा ऐसी हो जो वैश्विक परिदृश्य पर बात करते हुए बच्चों को उनके स्थानीय परिदृश्य से जोड़ा जाए ताकि वह अपने आसपास के संसार से अंतः क्रिया कर सकें।

शिक्षा के मुद्दों पर सतत लेखने और चिंतन में सक्रिय हैं महेश पुनेठा।
भाषाई दक्षता के विकास में दीवार पत्रिका की भूमिकाएं भी आलेखित है। इयका अनुभव मैंने भी किया है,क्योंकि हमारे विद्यालय में दीवार पत्रिका शुरू होने के बाद बच्चों की और खुद मेरी ही लेखन शैली में बहुत अंतर आया है। महेश पुनेठा जी की साहित्यिक पकड़ तो है ही मजबूत।
पुस्तक में भी उन्होंने बेहद सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है जिस वजह से इसे समझना बहुत आसान हो जाता है। इस पुस्तक की एक और खासियत यह है कि इसका सरोकार सीधा हमारे वास्तविक जीवन से है। इसमें उल्लेखित ज्यादातर बातों को मैं अपने जीवन से जोड़ पाई। इसलिए हम कह सकते हैं कि -” शिक्षा हमारे जीवन का मूल है और शिक्षा के सवाल हमारे जीवन के सवाल”।
मुझे लगता है यह पुस्तक हर उस व्यक्ति को पढ़नी ही चाहिए जो पढ़ने लिखने की संस्कृति को बचाए रखने व बच्चों में और समाज में रचनात्मकता लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
(दीपिका उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में 10वीं कक्षा में अध्ययनरत हैं। शिक्षा के सवाल किताब का उन्होंने अध्ययन किया और इस किताब को पढ़ते हुए उन्होंने जो महसूस किया है, उसे पुस्तक चर्चा के रूप में साझा किया है।)
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