एजुकेशन मिरर: #NEP-2020 को लेकर हमारे शिक्षक क्या सोच रहे हैं?
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन को लेकर काफी सारी कोशिशें राष्ट्रीय स्तर से लेकर, राज्य, जिला और ब्लाक स्तर के साथ-साथ विद्यालय स्तर तक हो रही हैं। इसी के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लेकर विभिन्न चर्चा सत्रों का आयोजन किया गया और इसके निष्कर्षों को लेकर आपसी सहमति का प्रयास किया गया।
जरूरत पढ़ें: ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान’ को व्यापक अर्थ में देखना है जरूरी’
वर्तमान में इसके क्रियान्वयन को लेकर निपुण और सार्थक जैसे डॉक्युमेंट्स पर काफी फोकस किया जा रहा है ताकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (#NEP-2020) के क्रियान्वयन को एक सही दिशा दी जा सके। लेकिन यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि इन डॉक्युमेंट्स की रणनीतियों को राज्य, ब्लाक और विद्यालय के संदर्भ में समायोजित करने व प्रभावशाली ढंग से लागू करने हेतु नये विचारों पर काम करने की आवश्यकता है।
#FLN बनाम शिक्षा के व्यापक उद्देश्य
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में समझ के साथ पढ़ने या फाउण्डेशनल लिट्रेसी (#FL) और बुनियादी संख्या ज्ञान (#FN) को काफी महत्व दिया गया है। इसके लिए पहली से पाँचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया गया है। बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर ध्यान देने की प्रक्रिया में शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों पर भी हमारी नज़र बनी रहे। इस संदर्भ में एक सवाल बेहद महत्वपूर्ण है, “भारत में शिक्षा के क्षेत्र में ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान’ यानि #FLN को सर्वोच्च प्राथमिकता घोषित करने के फ़ायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं?” फायदे पर तो हमारी नज़र है। लेकिन ज्यादा फोकस के नुकसान भी हो सकते हैं, इसको भी व्यापक नज़रिये से देखने समझने की जरूरत है। इसी मुद्दे पर चर्चा का सिलसिला सतत जारी रहेगा एजुकेशन मिरर पर।
#FLN को प्राथमिकता वर्तमान समय की जरूरत

ऋचा ओझा #FLN को महत्व देने को इस समय की जरूरत के रूप में रेखांकित करती हैं।
इस मुद्दे पर अपनी राय साझा करते हुए उत्तर प्रदेश के जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान सोनभद्र की डायट प्रवक्ता ऋचा ओझा कहती हैं, “साक्षरता औपचारिक शिक्षा की पहली सीढ़ी है, जिसकी शुरुआत ही संख्या ज्ञान और शब्द पहचान से होती है। उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता घोषित किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है। जैसे पहले किसी कक्षा में उत्तीर्ण हो जाना ही इस बात का प्रमाण हो जाता था कि उस कक्षा से संबंधित अधिगम प्रतिफलों की प्राप्ति हो चुकी है। ऐसा होने की तमाम संभावनाएं थीं मसलन बच्चे का संख्या ज्ञान औसत तथा शब्द ज्ञान निम्न हो सकता था, शब्दज्ञान बहुत अच्छा पर संख्या ज्ञान से किसी किस्म का फोबिया होने के कारण आजीवन गणित से डर पैदा हो सकता था।”
सह-शैक्षिक गतिविधियों को भी मिले प्राथमिकता
डायट प्रवक्ता ऋचा ओझा आगे कहती हैं, “लेकिन इन बिंदुओं को स्पेसिफिकली एड्रेस करने से भाषा व गणित विषयों में होने वाली बड़ी समस्याओं को बुनियादी तौर पर ही कम किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ हम उन बिंदुओं की पहचान करके (पिन पॉइंटेड होकर) यह बता सकते हैं की कहां कमी रह गई, कहां पर अधिक काम करने की आवश्यकता है। इसका एक नुकसान यह समझ आता है कि कई अध्यापक इन पूर्व निर्धारित लक्ष्यों तथा प्रविधियों को अपनी रचनात्मकता के ह्रास से जोड़ सकते हैं। ऐसा होने की भी तमाम संभावनाएं हैं कि शिक्षा अन्य पहलुओं जैसे मोटर स्किल्स, फिजिकल एजुकेशन, सह-शैक्षिक गतिविधियों को कम समय और विशेषज्ञता वाला सहयोग मिल पाए।”
#FLN को सर्वोच्च प्राथमिकता के फायदे क्या हैं?
उत्तर प्रदेश के अभिनव प्राथमिक विद्यालय ककोरगहना, जौनपुर की प्रधानाध्यापक रागिनी गुप्ता कहती हैं, “भारत में शिक्षा की क्षेत्र में बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वोच्च प्राथमिकता घोषित करने के बहुत सारे लाभ हैं क्योंकि अभी तक ऐसा देखा गया है कि बहुत सारे स्कूलों में बच्चे अपनी स्तर की चीजों को ही नहीं समझ पाते हैं, पढ़ नहीं पाते हैं, लिख नहीं पाते हैं। बुनियादी साक्षरता पर कार्य करने से बच्चों को शुरूआती दौर में ही सुनियोजित तरीके से कार्य करने और सीखने पर महारत हासिल होगी। इसके लिए खेल खेल के माध्यम से बहुत सारी गतिविधियां, टी एल एम आदि के माध्यम से धैर्य पूर्वक सीखाना आवश्यक है।”

रागिनी गुप्ता का कहना है कि बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।
रागिनी गुप्ता आगे कहती हैं, “शिक्षक अपनी रणनीति को बच्चों के सीखने की आधार पर बदलते रहें तो निश्चित रूप से बुनियादी साक्षरता को हासिल करना कठिन कार्य नहीं होगा। बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित उनके घर परिवार से संबंधित , उनकी अनुभव को लेते हुए बच्चों से खूब बात चीत करके उन्हें सीखने का माहौल प्रदान करना उचित होगा। बुनियादी साक्षरता ही आगे चलकर पढ़ने लिखने का आधार बनती है। उन्हें दुनिया को समझने और वे जो भी सीखना चाहते हैं उसे प्राप्त करने में मदद करती है अतः बुनियादी साक्षरता बहुत ही लाभकारी होगी, ऐसा मेरा मानना है।”
#FLN पर फोकस विभिन्न शोध व अध्ययन पर आधारित

#FLN तो पहली सीढ़ी है, मंज़िल तो शिक्षा के व्यापक उद्देश्य हैं।
इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए पूर्व पत्रकार और शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे नितेश वर्मा कहते हैं, “NEP-2020 में बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को दी जा रही प्राथमिकता दरअसल वर्तमान में बच्चों के सीख स्तर को लेकर हुए विभिन्न शोधों के चिंताजनक परिणामों के कारण है। ये परिणाम हमारे अनुभवों से भी मेल खाते हैं। आदर्श रूप में देखें तो शिक्षा नीति का इन आरंभिक कामों पर इतना अधिक ज़ोर अटपटा लगता है। लेकिन बच्चों का स्तर देखें तो यह प्राथमिकता वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए ज़रूरी हो जाती है। मूल विचार यह है कि बुनियादी पढ़ने-लिखने का कौशल, संख्या-ज्ञान और संक्रियाओं की समझ व दक्षताएँ विभिन्न विषयों व क्षेत्रों में आगे सीखने के लिए नींव जैसा है, सो अनिवार्य है।”
‘#FLN पहला पायदान है, शिक्षा के व्यापक उद्देश्य इसकी मंज़िल’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नितेश वर्मा कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि NEP-2020 शिक्षा के आदर्शों व लक्ष्यों की ओर नहीं देख रही। लेकिन वह यह भी मान रही है कि इन बुनियादी समझ व दक्षताओं के पूरा हुए बिना शिक्षा के वृहद उद्देश्यों को हासिल करना कठिन होगा। एक आशंका यह ज़रूर है कि सरकारें व पूरा शिक्षा तंत्र इन बुनियादी कामों में इतना उलझ जाए कि उनकी नज़रें और प्रयास इस दायरे में ही सिमट कर रह जाए।”
अपनी बात पूरी करते हुए नितेश कहते हैं, ” कुल मिलाकर शिक्षा नीति की समझ तो स्पष्ट है और वर्तमान व्यावहारिक आवश्यकता के अनुरूप है। वह वास्तविकता और आदर्श के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रही है। नुकसान तब होगा जब शिक्षा तंत्र नासमझी कर पहले पायदान को ही मंज़िल मानकर काम करने लगे। शिक्षा नीति और शिक्षा तंत्र दोनों की समझ एक हो, इस ओर हमें प्रयास करने चाहिए।”
‘स्कूली शिक्षा के मूल लक्ष्य की तरफ ध्यान देना होगा’
इस मुद्दे पर अपनी राय साझा करते हुए उत्तराखंड से शिक्षक और साहित्यकार दिनेश कर्नाटक लिखते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से प्रथम व असर की हर वर्ष आने वाली रिपोर्ट हम सभी को बताती थी कि पांचवी व आठवीं के बच्चे तीसरी कक्षा के स्तर की भाषा नहीं पढ़ पाते तथा सामान्य गणितीय योग्यता नहीं रखते। शायद इसने योजनाकारों को इस दिशा में सोचने को विवश किया और नई शिक्षा नीति में तीसरी कक्षा तक बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को प्राप्त करने के लक्ष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में रखा गया।”
“यह बात लगती तो आकर्षक है कि सभी बच्चे तीसरी कक्षा तक भाषा व गणित की बुनियादी दक्षता प्राप्त कर लेंगे, लेकिन इसके साथ स्कूली शिक्षा के मूल लक्ष्य की ओर ध्यान देना होगा। स्कूली शिक्षा का मूल लक्ष्य तो बेहतर इंसान बनाना है। कहीं बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वोच्च प्राथमिकता देने से हमारी शिक्षा यांत्रिक तो नहीं हो जाएगी।” – दिनेश कर्नाटक, शिक्षक और साहित्यकार, उत्तराखंड
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए दिनेश कर्नाटक कहते हैं, “बाल मनोविज्ञान के सिद्धांत बताते हैं कि हर बच्चे के सीखने की गति अलग-अलग होती है। सीखने में उसके परिवेश तथा घर की परिस्थितियों का भी योगदान होता है। भोजन व रोजी-रोटी की समस्याओं से जूझ रहे परिवारों के बच्चों को पढ़ना-लिखना व गणित सिखाने के बजाय उनके परिवारों की आजीविका व जीवन स्तर को बेहतर बनाना पहली चुनौती है। उनके घर की स्थितियां ठीक हो जाएंगी तो बच्चों का सीखना अपने आप ठीक हो जायेगा। सीखना-सिखाना यांत्रिक व अभियान के तरीके से नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता तो सर्व शिक्षा अभियान से अब तक सभी शिक्षित हो चुके होते।”
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