शिक्षा दर्शन में शिक्षा के उद्देश्यों पर विचार किया जाता है। शिक्षा के उद्देश्यों का मानवीय जीवन के उद्देश्यों से क्या रिश्ता है, इसकी पड़ताल की जाती है। शिक्षा दर्शन की परिभाषा। शिक्षा और दर्शन। रूसो का शिक्षा दर्शन। टैगोर का शिक्षा दर्शन। गांधी का शिक्षा दर्शन।
विवेक नाथ त्रिपाठी लखनऊ के बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।
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जे. कृष्णमूर्ति के शब्दों में, "शिक्षा को जीवन के सवालों तथा मूल्यों को समझने में सहायता करनी चाहिए। "
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पढ़ने की प्रक्रिया का समझने और अर्थ निर्माण से सीधा रिश्ता है।
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आलोक कुमार मिश्र शिक्षा के अर्थ को लेकर क्या कहते हैं, पढ़िए इस पोस्ट में।
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"हमें बच्चे का मार्गदर्शन और मदद करना है"
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शिक्षा में प्रकृतिवाद के समर्थकों में रूसो का नाम सबसे प्रमुख है।
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किताबों में लिखी कहानियां, कविताएं और उपन्यास खोज रहे हैं, अपने प्रिय पाठकों को।
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इस पोस्ट में पढ़िए टैगोर के जीवन और दर्शन के बारे में।
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यथार्थवादी शिक्षा की विशेषताएं और उद्देश्य पढ़िए इस पोस्ट में।
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निर्माता, निर्देशक और लेखर मेहश भट्ट वर्तमान दौर के बारे में क्या कहते हैं? पढ़िए इस पोस्ट में।
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इस पोस्ट में पढ़िए प्रोढ़ साक्षरता पर दार्शनिक पाओलो फ्रेरे के विचार।
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गांधी की बुनियादी शिक्षा का विचार कितना प्रासंगिक है? पढ़िए इस पोस्ट में।
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मनुष्य स्थाई 'आज' में कैद नहीं होते; वे उबरते हैं और लौकिकता प्राप्त करते हैं।
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भारत को आज़ादी मिले 70 साल हो गये हैं। मगर शिक्षा से जुड़े तमाम सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।
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दार्शनिक जॉन डिवी के विचार पढ़िए इस पोस्ट में।
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इस पोस्ट में पढ़िए 'शिक्षा और लोकतंत्र' किताब का एक अंश।
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इस पोस्ट के लेखक नितेश वर्मा कहते हैं कि भविष्य के शिक्षा तंत्र में कोई एक केंद्र नहीं होना चाहिए।
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किसी बच्चे का सपना होता है कि वह सितारों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करना चाहता था। मगर माता-पिता चाहते हैं कि वह इंजीनियर बने। आखिर क्यों?
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इस पोस्ट में पढ़िए स्कूल में 'ब्रेन बेस्ड लर्निंग’ का माहौल बनाने की रणनीतियों के बारे में।
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"मनुष्य खुद को नियंत्रित करना सीख जाय तो दुनिया की अधिकांश सामाजिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।"
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शिक्षा दार्शनिक जॉन डिवी का विचार था कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोगशीलता और परिवर्तन की गुंजाशन बनी रहनी चाहिए।
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जे. कृष्णमूर्ति का कहना है कि शिक्षा का सबसे बड़ा कार्य एक ऐसे समग्र व्यक्ति का विकास है जो जीवन की समग्रता को पहचान सके।
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रूसो मनुष्य को मूलतः एक भावनाप्रधान और संवेदनशील प्राणी मानते थे, अतः उसके बौद्धिक विकास की बजाय भावनात्मक विकास पर उनका अधिक आग्रह रहा।
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रवींद्रनाथ टैगोर भारत के पहले दार्शनिक थे जिन्होंने बच्चों का सवाल उठाया और शिक्षा में व्यापक सुधार का सुझाव दिया। उन्होंने इस सच्चाई पर अफसोस जताया था कि तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था किताबों की गुलामी को प्रोत्साहन देती थी।
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दार्शनिक जॉन लॉक मानते थे कि भाषा का सही और सहज ज्ञान उसके प्रयोग के वातावरण में ही संभव है।
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गिजूभाई बधेका ने 'दिवास्वपन' समेत करीब 20 किताबें लिखीं। गिजूभाई के जीवन के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़िए यह पोस्ट।
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18वीं शताब्दी के महान दार्शनिक ज्यां जाक रूसो शिक्षा में उपदेश की परंपरा के पूर्णतः ख़िलाफ़ थे. उनका बच्चों की अच्छाई में गहरा विश्वास थी. 21वीं शताब्दी में भी उनके विचारों की प्रासंगिकता ज्यों की त्यों बरकरार है.
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