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हिंदी शिक्षणः क्यों होती है मात्राओं की ग़लती?

"हिंदी भाषा में शुद्ध-शुद्ध लिखना बहुत से लोगों को नहीं आता।" बहुत से शिक्षक और प्रोफ़ेसर इस शुद्धता की वकालत करते दिखायी देते हैं। हिंदी भाषा का प्राथमिक स्तर पर जैसा शिक्षण होता है। पढ़ने की आदत का विकास करने के प्रति जैसी उदासीनता दिखाई जाती है। उसका भी कुछ असर हिंदी लिखने-पढ़ने-समझने की क्षमता पर पड़ता है। इस पोस्ट में पढ़िए कैसे हिंदी बोलने और लिखने के बीच का फ़ासला मात्राओं की ग़लतियों के रूप में सामने आता है। और न पढ़ने की आदत से यह स्थिति सालों साल बनी रहती है। उसमें कोई बदलाव नहीं होता।

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हिंदी भाषा में वर्णों और मात्राओं का आपसी तालमेल समझना मात्राओं की ग़लती से बचने का सबसे अचूक उपाय माना जाता है।

हिंदी लिखने के दौरान मात्राओं की ग़लती बहुत से लोगों से होती है। मुझसे भी होती है। इसे सुधारने का क्या फॉर्मूला हो सकता है? बहुत से लोग यह सवाल पूछते हैं। मगर इसका कोई एक निश्चित जवाब नहीं है। हर किसी से हिंदी भाषा में लिखते हुए अलग-अलग तरह के मात्राओं की ग़लती होती है, उसे सुधारने के लिए उसी के अनुरूप ही कोई सुझाव दिया जा सकता है।

आमतौर पर हिंदी के बारे में दावा किया जाता है और ऐसा कहा जाता है कि यह जैसी बोली जाती है। वैसी ही लिखी जाती है। मगर लंबे समय बाद जबसे यह वाक्य पता चला है, अब जाकर इसकी एक सच्चाई पता चली है कि हिंदी बोली तो स्थानीय संस्कृति और परिवेश के अनुरूप है। जिसके ऊपर आसपास की भाषाओं और बोलियों का व्यापक प्रभाव होता है। मगर वह लिखी केवल अपने मानक रूप में जाती है।

लिखित में तो मानक रूप ही चलता है

मानक रूप में लिखे जाने के कारण ही हिंदी भाषा के साथ भारत की बहुत सी भाषाओं या बोलियों का अपनेपन वाला संबंध स्थापित नहीं हो पाता है। क्योंकि बागड़ी में चाँद को सांद कहते हैं। गरासिया में सौ को हो कहते हैं। इसी तरीके से अवधी, भोजपुरी और उत्तराखंड में बोली जाने वाली पहाड़ी भाषाओं के साथ भी हिंदी घुलने-मिलने की बजाय एक अलग रूप में अपनी मौजूदगी बनाये रखने की कोशिश करती है। इसको बहुत से भाषाविद सही नहीं मानते हैं तो हिंदी वाले मानक हिंदी के बचाव में अपने तर्क पेश करते हैं कि लिखित भाषा की एकरूपता बनाये रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है।

हिंदी जैसी बोली जाती है वाली बात में भी बहुत से जगहों पर उच्चारण की स्पष्टता का अभाव भी ग़लत लिखे जाने या लिखे हुए को ग़लत समझने की ज़मीन तैयार करता है। अगर वास्तव में बात करें कि मात्राओं की ग़लती को कैसे सुधारा जा सकता है तो बेहतर होगा कि एक बार फिर से मात्राओं पर ग़ौर किया जाये। स्वरों की मात्राओं के प्रतीकों को समझने का प्रयास किया जाये। और किसी वर्ण में उसके लगने के बाद आवाज़ में होने वाले बदलाव को समझा जाये। और उसी के अनुसार अपने लिखे हुए को एक बार सरसरी निगाह से देखा जाये।

मात्राओं की ग़लती कम करने में मददगार है पढ़ना

मात्राओं की ग़लतियों को कम करने में सबसे ज्यादा मदद ऐसी पत्र-पत्रिकाओं और लेखों को पढ़ने से मिल सकती है तो अच्छी हिंदी में लिखे जाते हैं। यानी जिनमें हिंदी भाषा के वर्तनी और व्याकरण संबंधी ग़लतियां कम होती है। अपने लिखे हुए को दो-तीन बार पढ़ना। किसी और से पढ़वाकर देख लेना मात्राओं की ग़लतियों को पहचानने और उसे सुधारने में मदद करता है। हालांकि वास्तविकता तो यही है कि विचारों को मात्राओं वाली ग़लती से ज्यादा महत्व दिया जाता है। अगर आपका लेखन गुणवत्ता के मामले में बेहतर है तो मात्राओं वाली ग़लती को बहुत आसानी से सुधारा जा सकता है।

मगर राइटिंग के अभाव में तो क्या सुधारना और किसलिए सुधारना वाली बात ही नज़र आती है। इसलिए हमारा ध्यान लेखन के ऊपर होना चाहिए और अपने लिखे तो एक-दो बार पढ़ने से बुनियादी चीज़ें समझ में आ जाती है। इसके साथ-साथ पढ़ने के माध्यम से अपनी मात्राओं वाली ग़लतियों को प्रभावशाली ढंग से सुधारा जा सकता है। इस पोस्ट में फिलहाल इतना ही। अगली पोस्ट में मिलते हैं, इसी विषय के माइक्रो या विशिष्ट पहलुओं पर पर चर्चा के साथ।

5 Comments on हिंदी शिक्षणः क्यों होती है मात्राओं की ग़लती?

  1. Apne Bahut Achi Post Likhi Hai Jo Ki Useful Hai

  2. प्रणाम महोदय,
    मेरा सवाल है, की मेरे को छोटा e बड़ा e
    तथा छोटा बु बू में कठिनाई होती है
    इसके लिए क्या किया जाना चाहिए तथा आप के यह जानकारी कैसे प्राप्त किया जाना चाहिए
    कृपया आप बताने का कष्ट करें

    सादर प्रणाम

    उमेश साहू

  3. मयंक सोनी जी, आपके सुंदर सवाल के बहुत-बहुत शुक्रिया। आपके सवालों को ध्यान में रखकर हम एजुकेशन मिरर पर शीघ्र रही मात्रा शिक्षण के ऊपर केंद्रित एक सीरीज़ शुरू करने जा रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि आपके सवालों का जवाब जरूर मिलेगा। अगर आप बता सकें कि किस तरह की समस्या मात्राओं के सिलसिले में होती है तो हम आपकी ज्यादा अच्छे से मदद कर पाएंगे।

  4. Sir aap ke lekh me mtrao ko thodh aur vistar se shmjhane ka kast kar

  5. mayank soni // January 14, 2017 at 3:42 am //

    Sir me Hindi likhate samay matra me bahut galatiya karta hu aur matra lagate samay matrao ko pahchane me dikkt hoti hai sir koi sujhao de

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