शिक्षा विमर्शः प्रतियोगी परीक्षाओं से प्रभावित हो रही बच्चों की पढ़ाई
राजस्थान में आरपीएससी की तरफ से सीनियर स्कूलों में व्याख्याता पद के लिए 13 हज़ार 98 पदों के लिए भर्ती निकाली है। नये साल यानी 2016 में परीक्षाएम फरवरी के महीने में होनी हैं। इसका असर सरकारी स्कूलों में होने वाली पढ़ाई पर अभी से दिखाई दे रहा है।
एक ग़ैर सरकारी संस्था में काम करने वाले शिक्षक प्रशिक्षक कहते हैं, ” सरकार को क़ाबिल शिक्षा सलाहकारों की जरूरत हैं. अभी जो लोग भी यह काम कर रहे हैं, वे निहायत ही नाक़ाबिल लोग हैं, उन्होंने इस सत्र 2015-16 को पूरी तरह चौपट कर दिया है. सरकार ने शिक्षकों की भर्ती निकाली है और भर्ती के लिए परीक्षा की तारीख अगले फरवरी महिने में तय की है, साथ में आएएस की परीक्षा भी है और उसी समय मार्च के शुरू में बच्चों की बोर्ड परिक्षाएँ होती हैं.”
भर्ती परीक्षा का टाइम बदलना चाहिए
उनका कहना है, “माट्साहब के सामने दिक्कत यह है कि वे अपनी परीक्षा की तैयारी करें या बच्चों के साथ काम करें. जाहिर सी बात है माट्साहब अपना ख्याल रखेंगे. उनकी जगह कोई भी होता वो यहीं करता. अपने काम में और सपनों में बैलेंस साधने का गुण सबमें नहीं होता. सरकार को तुरंत प्रभाव से शिक्षक भर्ती और आरएएस भर्ती का टाइम बदल देना चाहिए क्योंकि किसी भी मासूम बच्चे के की जिंदगी में एक साल का वक्त बहुत लंबा वक्त होता है.”
किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए जाहिर सी बात है कि समय और तैयारी में एक निरंतरता होनी चाहिए। अपने पढ़ाई की निरंतरता बनाए रखने के लिए बहुत से प्रायमरी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक परीक्षा की तैयारी के लिए मेडिकल लीव पर हैं। लंबी छुट्टी का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है। हाल-फिलहाल 24 दिसंबर से 10 जनवरी तक स्कूलों की छुट्टियां हैं। इसके बाद स्कूल खुलने पर फिर से शिक्षकों के छुट्टी पर चले जाने या नियमित स्कूल न आने से बच्चों की पढ़ाई निश्चित तौर पर प्रभावित होगी। एक पूरा सत्र प्रभावित होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी? इस सवाल के बारे में शिक्षा विभाग और सरकार के जिम्मेदार लोगों को जरूर सोचना चाहिए। मगर जिस हड़बड़ी के साथ फ़ैसले लिये जा रहे हैं, उससे लगता है कि ऐसे सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। या फिर ऐसे सवालों के बारे में सोचने की फुरसत किसी के पास नहीं है।
पहली-दूसरी कक्षाओं की अनदेखी
परीक्षाओं के अलावा इसी सत्र में शिक्षकों के स्थानांतरण की बात भी चल रही है। शिक्षक पढ़ाना छोड़कर अपने स्थानांतरण की सूची का इंतज़ार कर रहे हैं। प्रायमरी स्कूलों के सीनियर स्कूलों में मर्ज किये जाने के बाद बहुत से प्रायमरी स्कूलों से शिक्षकों को सीनियर स्कूलों में लगाया जा रहा है। यानी बोर्ड परीक्षाओं और ऊंची क्लासेज को मिलने वाली प्राथमिकता के कारण पहली से पांचवीं तक के बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। विशेषकर पहली-दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के पढ़ाई की निरंतरता पर असर पड़ रहा है।
किसी भी बच्चे के लिए स्कूल का पहला साल बहुत मायने रखता है। यह वह साल होता है जब वह पढ़ना-लिखना सीखता है या फिर पढ़ाई के लिए बुनियाद बना रहा होता है। ऐसे में छोटे बच्चों की अनदेखी न हो,. इसकी जिम्मेदारी व्यक्तिगततौर पर शिक्षकों को लेनी चाहिए। सरकार यह भर्ती कभी भी निकालती तो शिक्षकों का ध्यान बंटना ही था। अगर यह परीक्षाएं मई-जून में होतीं तो शायद स्कूलों की पढ़ाई को प्रभावित होने से कुछ हद तक तो बचाया जा सकता था।
ब्रजेश जी मैं आप से मिलना चाहता हूं