शिक्षक दिवसः पढ़िए ऐसी खबरें जो चर्चा में हैं
भारत में हर साल पाँच सितंबर का दिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा कुछ शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। अखबारों व पत्रिकाओं में शिक्षकों के योगदान से जुड़ी खबरें ऐसी प्रकाशित होती हैं जो जरा हटकर होती हैं। ‘शिक्षक दिवस’ के मौके पर मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर एजुकेशन मिरर की एक नज़र।
इस मौके पर सबसे पहले जिक्र एक साक्षात्कार का जो हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है। इसका शीर्षक कहता है कि इस देश में ‘शिक्षक’ के पेशे, स्थान और सम्मान पर गहरा आघात हुआ हुआ है।
‘शिक्षक और आईएएस दोनों सिविल सर्वेंट हैं’
नमिता कोहली के इस साक्षात्कार में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर कृष्ण कुमार कहते हैं, “शिक्षकों की नियुक्ति में काफी देरी होती है। दिल्ली में जिन शिक्षकों का चयन साल 2012 में हुआ था, उनकी इस साल नियुक्ति मिली है। आप केवल कल्पना कर सकते हैं कि इस देरी का एक प्रत्याशी के लिए क्या मायने हो सकता है? आप कल्पना कीजिए अगर ऐसा ही सिविल सेवा में चयनित अधिकारी के साथ ऐसा होता। तो क्या उसके काम करने की प्रेरणा उतनी ही होती। आखिरकार शिक्षक और आईएएस दोनों सिविल सर्वेंट ही हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि शिक्षकों के खाली पद अगले पाँच सालों में भरे जाएंगे तो क्या पहली कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा जिसको पढ़ाने के लिए गणित के शिक्षक नहीं है, उसे तबतक इंतज़ार करना होगा जबतक कि वह पाँचवीं कक्षा में न पहुंच जाए। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस देरी का बच्चे के लिए क्या मायने है?”
इसी साक्षात्कार में प्रोफेसर कृष्ण कुमार कहते हैं कि शिक्षण 80 और 90 के दशक के आखिर तक एक करियर हुआ करता था, लेकिन अब होनहार युवा इस पेशे में आने से बचना चाहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि यह पेशा कितना असुरक्षित है। (हिंदुस्तान टाइम्स पर पढ़ें)
‘हैप्पी एडहॉक डे’
दूसरी सबसे रोचक खबर इंडियन एक्सप्रेस की वेबसाइट पर छपी एक चिट्ठी की है, जिसे एक एडहॉक शिक्षक ने लिखा है। राष्ट्रपति के नाम लिखी इस खुली चिट्ठी में विश्वविद्यालयों में संविदा पर पढ़ाने वाले शिक्षकों के दर्द का बयान है।
इसकी शुरुआत कुछ यों होती है, “श्रीमान, आप मुझे नहीं जानते। आप कभी भी मुझे या मेरा नाम या मेरे जैसे उन लाखों लोगों का नाम नहीं जान सकते जो अपने विश्वविद्यालयों में ‘एडहॉक’ के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आपको क्यों जानना चाहिए कि आपके ज्यादातर विश्वविद्यालयों में हम अब बहुमत वाली स्थिति में हैं? क्या आप कभी कुलपतियों से हमारे बारे में पूछते हैं? क्या आपको कभी हैरानी हुई है कि हम कौन हैं, हम क्या सोचते हैं और हम कैसे ‘एडहॉक’ बन जाते हैं भले ही हम शिक्षक बनना चाहते हैं। इस ‘शिक्षक दिवस’ पर जब आप शिक्षकों को पुरस्कार वितरित कर रहे होंगे, हमारे बारे में तनिक भी नहीं सोचेंगे। (पूरी चिट्ठी पढ़ें)
40 साल, टीन शेड में चल रहा स्कूल
तीसरी खबर छपी है ‘द हिंदू’ में। इसका शीर्षक है, “40 साल हुए, टीन शेड में चल रहा है विद्यालय’। इस खबर की प्राथमिक स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं के सवाल की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने की है। दिल्ली के सदर बाज़ार में स्थित क़ौमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल का निर्माण आजादी के बाद किया गया था। चालीस साल पहले इस स्कूल की पांच मंजिल इमारत को ‘जनता फ्लैट्स’ बनाने के लिए ढहा दिया गया था। इस स्कूल को दोबारा बनाने का दिल्ली सरकार का वादा बस वादा बनकर रह गया। 1960 में यह प्राथमिक विद्यालय बना और 1975 में क्रमोन्नत होकर सीनियर सेकेंडरी बना। अभी इस विद्यालय में 715 छात्र अध्ययनरत हैं, जिनकी कक्षाएं क़ुरेश नगर में ईदगाह की ज़मीन पर बने टीन शेड्स में लग रही हैं। अब ईदगाह प्रबंधन जिसने अपनी ज़मीन पर विद्यालय चलाने की अनुमति दी थी, अब विद्यालय से ज़मीन वापस देने की मांग रहा है। (पूरी खबर विस्तार से पढ़ें)
इन खबरों के अलावा बाकी खबरों के लिए पढ़िए आज का अखबार। शिक्षक दिवस के खास मौके पर इस पोस्ट में बस इतना ही। फिर मिलते हैं किसी नए मुद्दे के साथ अगली पोस्ट में।
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