वतन के नाम एक चिट्ठी आई है, जरा पढ़िए तो
ठीक याद है ,तुम भारत के नाम पत्र लिखना चाह रहे थे ,यह बात ठीक वैलेंटाइनडे के एक दिन पूर्व फ़रवरी 2016 की रही । उफ़ उस समय बड़ी सर्दी पड़ रही थी गुलाबी सर्दी रजाई ओढ़कर पूरी तरह शरीर को ढककर सिर्फ तुम्हारी आवाज सुन रही थी सब सुखद लग रहा था ये जानकर बड़ी खुश हो रही थी।
आज उस पल को याद कर समझ गई क्यों लिखना चाह रहे ये पत्र ,खैर भारत के लिए अमन,चैन, शांति, उन्नति, एकता, विश्व -बन्धुत्व की भावना पुनः स्थापित हो सके। ये सभी नई पौध नहीं थे परिचित रहे है सभी ऐतिहासिक हैं।
गांधी जी ने अहिंसा ,प्रेम ,त्याग ,सहयोग आदि भावनाये लेकर दांडी यात्रा ,असहयोग आंदोलन हुआ नेतृत्व का गठन करना बड़ा कठिन है ठीक पत्र लिखना भी । उस दौर में बात भारत की आजादी की रही ,आज गुलाम मानसिकता की । भारत को आजाद कराना एकमात्र भारतीयो का स्वप्न था ।
स्वतंत्रता सबको सुखद लगती है
आज भारत स्वतन्त्र हैं स्वतन्त्रता सबको सुखद लगती है एक छोटे से बच्चे के मुख से ‘नन्हा मुन्हा राही हूँ देश का सिपाही हूँ’ गीत को सुनकर शान से सीना तानकर चलते है । हमारी मूल में बसती आजादी हमे अच्छी लगती है परन्तु ये विचार मौलिक रहे तुम्हारे पत्र लिखना है ,इस मौलिकता में अपनत्व दिखा मानवीकरण का रूप देकर जहाँ तुम्हारा मनोबल प्रबल होकर भारत के जनमानस में बसे सभी के हितार्थ में मंगल कामना होगी।
ज्यादा जिक्र नही कर सकती विराम देना उचित है ,भारत एक ऐसा देश है ,जहाँ प्रातः काल मन्दिर की घण्टियों से ,अजानो से आर्तनाद से सूरज का स्वागत करते है। प्रत्येक बच्चा-बच्चा नतमस्तक है जिनकी भुजाये अविरल धारा से स्नेहिल करती हुई सुखद लगती है। अचानक तुम्हे ‘भारत के नाम खुला पत्र’ लिखने की जरूरत क्यों पड़ गई ? हैरत में डालती है ,अपितु मुझे चौकन्ना करती रही फिर भी सुखद लग रहा इस क्षण जब कोशिश कर रही यह मेरी एक कोशिश मात्र होगी।
भारत के नामकरण भरत के नाम से है शकुंतला -दुष्यंत पुत्र भरत की कहानी खींच लाई कही तुम दोहराना तो नहीं चाह रहे दुष्यंत श्राप से ग्रसित अपनी पत्नी शकुंतला को नही पहचान सके उस क्षण शकुंतला की स्थिति कैसी रही होगी स्त्री से ज्यादा कोई नही समझ सकेगा । प्रेम के मार्ग में शकुन्तला का अनुसरण स्त्री के लिए अनिवार्य बन पड़ा स्त्री की पूजा सदा कामना ,प्रेम की भावना निहित रही है ये शाश्वत है नदी की प्रवाह की तरह ।
अपने देश की सुरक्षा हमारी फर्ज है
भारत अपना देश है ,हमारा देश ,हम सबका देश है इसकी हिफाजत सबका पहला फर्ज है । दुर्भाग्य की स्थिति अब देखिये वर्तमान स्थिति न जाने कितने युवा पीढ़ी तीस सालों तक सर्फ अपने और भविष्य को सवांरने में जुटे है कुछ सफल कुछ असफल ,विडम्बना तुम्हे असफलता से चिढ़ है मुझे प्रेम है। साहित्य में सम्पूर्णता है कभी ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ‘पर साहित्य फलित लगती है । मानती हूँ प्रमाण भी है। चलिए खतों का सिलसिला शुरू करते है ,भारत के नाम का पत्र कौन पढ़ना चाहेगा ? प्रश्न जटिल है ।
इस जटिल प्रश्न का जबाब एक हँसी में बदल गई सभी पढ़ना चाहेंगे भारत से प्रेम है । तकनीकि दौर में पत्र का पढ़ना बड़ी हैरत की बात किसी पत्रिका में आना हैरानी की बात । यह दौर आभासी संसार की है । पौराणिक दौर में पत्रों के माध्यम से सन्देश भेजे गए महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूत ‘में बादल के माध्यम से सन्देश भिजवाये है । भारत के लोकनायक व् समन्वय विराट चेतना के कवि तुलसीदास ने ‘विनय के पद ‘ में सीता जी से विनवत करते हुए राम के पास अपनी बात कहते है । भारत के नाम पत्र लिखा जाना मुमकिन है। गौरव की बात है ‘विनय के पद’पढ़े भी गाये भी जाते है ।
दुःखों का समाधान हो तो पत्र सार्थक होगा
इस पत्र का रूप कैसा होगा ? किसी विवाद को दोहराना नही है सभी में एकता के भाव स्थापित करना ,हर व्यक्ति के दुःखो का समाधान करना पत्र की विशेषता होगी । मुझे तो पहले से भान रहा हर व्यक्ति के दुःखों की अपनी एक सीमा है ,बुध्द ने बड़े ही निकट से देखा अब कोई देखना नही चाहता।
आखिर बुध्द ने राज्य -कार्य त्याग कर एक वृक्ष का आश्रय लिया । ये कहना उचित है रूसों का प्रासंगिक भी ‘ प्रकृति की ओर लौटो ‘ आजका मनुष्य भौतिकवादी है ,विडम्बना कहा जा सकता है । त्याग की भावना दिखाई नही पड़ती दुर्लभ संयोग । किसी प्रतिरोध नही ,न ही प्रतिशोध में महज प्रेम की भावना से आप सब विचार करें । पूर्व कोई सम्बोधन नही बाँधना चाह रही निजता होगी ।तुम्हें विवश भी नहीं करना चाह रही।
एक मंगल कामना हेतु भारत भूमि पर सदैव निकट रहना चाहूँगी ।।
– आकांक्षा मिश्रा, ज़िला गोण्डा, उत्तर प्रदेश
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