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अच्छी शिक्षिका बनने का ख़्वाब देखती ‘सपना’ और ज़िंदगी के सवाल

durga-sirvi“दीदी, एक बात बतानी है, तुम्हें बताऊँ?” स्कूल से आते ही मुकेश ने बस्ते को जोर से पटकर अपने गले से पहचान पत्र उतारते हुए यह प्रश्न अपनी बहन सपना से पूछा जो अभी-अभी खेत से चारा काटकर आई थी। उसके कपड़े अभी भी तरबतर थे, जो उसकी मेहनत की गवाही दे रहे थे। वह चिढ़कर अपने भाई से बोली – “क्या है? मेरे पास इतना टाइम नहीं है कि मैं तुम्हारी रोज़ की बकवास सुन सकूँ। पढ़ाई तो तुम करते हो नहीं। कम से कम घास काटो तो वो भी अच्छी तरह काटो ताकि घास काटने के लिए लोग तुम्हारा नाम पहले ले।”

छोटे भाई के सवाल

यह कहकर वह वापस खेत में चली गई चारा लेने के लिए। पीछे-पीछे उसका भाई भी आया मदद के लिए। सपना चारे की गठरी बाँधने लगी। तभी मुकेश बोला – “दीदी एक सवाल पुछूँ ?” हमेशा कि तरह सपना ने फिर अपने माथे पर लकीरें खीचीं और चारे की गठरी उठाने का संकेत देते हुए कहा कि – “ये हमेशा कि अपनी बकवास बंद कर दो।” दोनों भाई – बहन चारा उठाकर चलने लगे। रास्ते में मुकेश ने कहा – दीदी तुम मेरे सवालों का जवाब क्यों नहीं देती हो? मैं सिर्फ तुमसे सवाल पूछता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ बड़ी दीदी के पास मेरे सवालों के जवाब कभी नहीं होंगे। यह सुनकर सपना मौन रही।

घर आकर सपना अपने काम में लग गई। उसका भाई हमेशा कि तरह जब खेलने निकला तो सपना ने कहा – “थोड़ा पढ़ ले। जिंदगी सँवर जायेगी। कुछ नहीं तो कम से कम एक अच्छा इंसान तो जरूर बनना।” मुकेश ने हमेशा कि तरह बहन की बात को अनसुना कर दिया और खेलने चला गया। सूरज क्षितिज के आगोश में छिप गया था। पंछी बसेरों में लौट रहे थे। लोग खेतों में काम खत्म करके घरों की ओर लौट रहे थे। सपना के माता -पिता भी घर आ गए थे, तब तक मुकेश भी खेलकर आ गया। सभी ने मिलकर खाना खाया।

मुकेश तेरह वर्ष का आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। अपने गाँव में ही एक निजी विद्यालय में पढ़ता है लेकिन पढ़ाई में उसकी रुचि बिल्कुल नहीं है। जैसे किताबों से उसका कोई लेना-देना ही ना हो। इसके विपरीत उसकी बहन सपना है जो मुकेश से उम्र में तीन वर्ष बड़ी है। गाँव के निजी विद्यालय से बाहरवीं उत्तीर्ण करने के बाद वह नजदीकी गाँव के कॉलेज से बीए-बीएड (जिसे एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम कहते है।) कर रही है। पढ़ाई में उसकी विशेष रुचि है। लेकिन वह अपने देश कि शिक्षा व्यवस्था से अक्सर खफा रहती है।

हिन्दी की किताबों पर सपना का ‘पहला अधिकार’

बाहरवीं तक सपना शिक्षा व्यवस्था के नाम से ही अनभिज्ञ थी लेकिन बाहरवीं के बाद शिक्षक के उचित मार्गदर्शन ने उसकी आँखें खोल दी थी। इसके बाद वह कभी भी शांति से नहीं बैठ पाती थी उसका दिमाग हमेशा किसी न किसी विषय पर चिंतन कर रहा होता था। उसके मन में हमेशा संघर्ष होता था। वह हमेशा अपने भाई को पढ़ने के लिए कहती। इतना ही नहीं वह पाठ्यपुस्तकों से हटकर कुछ कहानियों की किताबें लाकर भी देती थी। जब वह खुद तीसरी कक्षा में थी तो अपने पिताजी द्वारा लाई हुई कृषि मार्गदर्शन की किताबें भी पढ़ लेती थी।

नया साल शुरू होने पर अपने भाई-बहनों की हिन्दी की किताबें सबसे पहले सपना ही पढ़ती थी। वह जो निर्देश अपने भाई को देती थी, वह उसे अपने गुरू के अलावा और किसी से नहीं मिले। सपना का बीए-बीएड का यह प्रथम वर्ष है इसमें वह बहुत कुछ चीजें जान रही है। सोशल मीडिया का सदुपयोग करना, दुनिया को देखने का नया नजरिया, सरकारों की छवि, अपने अधिकार, मूल्य, स्वयं को पहचानने की शक्ति, अच्छे विचारों को व्यवहार में लाना, पाठ्यपुस्तकों से बाहर की दुनिया और भी बहुत कुछ। सोशल मीडिया से भी बहुत सारे आर्टिकल पढ़ती थी।

img_20200509_1519302865045390977453900.jpgएक दिन अपने परिवार के साथ खाना खाते हुए सपना ने अपने पिताजी से कहा, “पिताजी। मैंने जो पुस्तक की समीक्षा लिखी थी वह नवज्योती पत्रिका द्वारा प्रकाशित की गई है।” यह कहते हुए उसकी आँखें चमक रही थी और चेहरे पर थोड़ी मुस्कुराहट थी। लेकिन जब उसके पिता ने वापस कोई जवाब नहीं दिया तो उसने फिर से कहा, “पिताजी! मैंने कुछ कहा है।” तब उसके पिता ने खाते-खाते अपना सिर हिलाया और कहा कि – हाँ! मैंने सुन लिया। सपना ने आश्चर्य से अपने पिता से कहा – “क्या पिताजी! आपको यह सुनकर खुशी नहीं हुई ?”

शिक्षा का लक्ष्य और सरकारी नौकरी

उसके पिता ने नीरस भाव से उत्तर दिया – “यह सब फालतू काम है, तुम्हारे जीवन में यह कही काम नहीं आयेगा। इससे अच्छा तो तुम प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करो और एक बात सुन लो, तुमने जो समीक्षा की है वह बकवास है। सरकारी कर्मचारी बनना इतना आसान काम नहीं है। अभी से उसकी तैयारी शुरू कर दो और तुम्हारे जीवन का भी यही लक्ष्य होना चाहिए।”

यह सुनकर सपना के चेहरे पर निराशा कि लकीरें खीच गई, आँखें नम हो गई। उसके बाद अपने पिता से बोली, “नहीं पिताजी! शिक्षा का अंतिम उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना नहीं है। मैं शिक्षक प्रशिक्षण ले रही हूँ और अब मैं किताबें नहीं पढूँगी तो फिर कब पढूंगी? शिक्षा का विद्यार्थी होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि मैं शिक्षा संबंधी किताबें पढूँ।”

गुस्से में आकर सपना के पिताजी ने उससे पूछा – “कौन पढ़ाते है तुझे?”
सपना ने डर के मारे धीरे से कहा – “चाणक्य”
यह सुनकर सपना की बड़ी बहन ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया, “जो सिलेबस में है वो तो तुमसे पढ़ा नहीं जाता और दुसरी फालतू की किताबें पढ़ती रहती है। क्या करना है दुसरी किताबें पढ़कर? बीएड की डिग्री तो तुझे मिल ही जायेगी।”

इस पर सपना ने कहीं से सुनी हुई एक बात कही-

“डिग्रियां तो तालीम के खर्चों की रसीदें है,
इल्म वही है जो किरदार में झलकता है।”
(हालाँकि सबने इसे अनसुना कर दिया।)

इसके बाद उसने फिर अपनी बहन से कहा – तुम क्या कर रही हो अब तक? बीए के बाद अब हिन्दी में मास्टर डिग्री ले रही हो लेकिन अब तक तुमने अपनी एक कविता भी नहीं लिखी है। पाठ्यपुस्तकों को छोड़कर तुमने कितनी किताबें और पढ़ी है? सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने के अलावा तुम करती क्या हो?

‘किताबों के लिए पैसे माँगे तो मत देना’

गुस्से में आकर सपना यह सब बिना रुके बोल गई लेकिन जब उसने सोचा कि अब स्थिति बिगड़ रही है और उसका पक्ष लेने वाला कोई नहीं है तो वह उठकर जाने लगी और जाते – जाते उसने कहा – “सबके दिमाग पर जंग लगी हुई है।” दुसरे दिन सपना ने दीवार के पीछे अपनी बड़ी बहन को पिताजी से यह कहते हुए सुना, “सपना आपसे किताबों के लिए पैसे माँगें तो मत देना। उसे पाठ्यपुस्तकें मैं लाकर दूँगी। मैं तो कहती हूँ कि उसके सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दीजिए। पता नहीं क्या-क्या पढ़ती रहती है। कल मैंने उसे सरकार के बारे में लिखा एक आलोचनात्मक लेख पढ़ते हुए देखा था।”

यह सब सुनकर सपना को बहुत दु:ख हुआ। लेकिन फिर भी उसने किसी के प्रति घृणा का भाव अपने मन में नहीं लाया। विकट परिस्थितियों में भी हताश नहीं होना यह उसने अपने गुरू से सीखा था। उसने अपनी बहन और पिता को इस बारे में कुछ नहीं कहा। वह यह सोचकर खुद को दिलासा देती थी कि पिताजी को पढ़ाने वाले अध्यापक जरूर किसी ‘विष-विद्यालय’ में पढ़े होंगे।

सपना अपने शिक्षकों द्वारा बताई गई जानकारी पर हमेशा चिंतन करती रहती। चिंतन से हमेशा सम्यक निष्कर्ष निकलता है और सम्यक निष्कर्ष को वह हमेशा व्यवहार में लाने की कोशिश करती है। इसी सिलसिले में उसने सोचा कि उसके गुरूजी ने बताया था कि बच्चों की जिज्ञासा को कभी शांत नहीं करना चाहिए, उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर अवश्य देना चाहिए। तब सपना की संवेदना जागी और उसे याद आया कि वह अपने भाई द्वारा किए गए प्रश्नों को हमेशा नकार देती थी।

अच्छी शिक्षिका बनने का ‘सपना’

दूसरे दिन दोनों भाई – बहन जब चारा लेने गए तो हमेशा कि तरह मुकेश ने कहा – “दीदी मुझे कुछ कहना है।” इस बार सपना ने हमेशा कि तरह मुकेश को नहीं डाँटा और पूछा कि क्या कहना चाहते हो? तब मुकेश ने अत्यंत उत्तेजना से कहा कि दीदी हमारे स्कूल में हमारे साथ बहुत अन्याय होता है। कल एक छोटे बच्चे को मास्टर जी ने छड़ी से बहुत पीटा। वो भी इसलिए कि वो अपनी किताब लाना भूल गया था। यह सुनकर सपना ने कहा और क्या-क्या होता है तुम्हारी स्कूल में? तब मुकेश ने कहा कि गुरूवार के दिन जिस दिन हम लोग स्कूल के कपड़े नहीं पहनते है। एक बाहरवीं कक्षा का लड़का प्रार्थना सभा में सुविचार बोलने आया तो एक अध्यापक ने उससे कहा कि ये चप्पल यहाँ नहीं चलेगी और पिछली साल हमारी स्कूल से बाहरवीं पास लड़की इस साल बाहरवीं तक पढ़ा रही है।

मुकेश और भी बहुत कुछ बताता गया और सुनते-सुनते सपना की आँखें भर आई। उसने अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को धिक्कारा। वह यह अच्छी तरह समझ रही थी कि किस तरह बच्चों का आर्थिक आधार पर शोषण किया जाता है भरी प्रार्थना सभा में बच्चों को अपमानित करके किस तरह उसकी प्रतिभा पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाया जाता है। एक बाहरवीं पास लड़की किस तरह बाहरवीं तक के बच्चों का भविष्य अंधकारमय बना रही है। सपना ने डॉ. कोठारी जी कि पंक्ति को याद किया – भारत के भविष्य का निर्माण इस समय कक्षाओं में हो रहा है। यह सोचते हुए उसने एक लम्बी आह भरी।

इसके बाद सपना ने एक सपना देखा जिसमें उसने स्वयं को एक शिक्षिका के रूप में देखा और ठान लिया कि वह एक अच्छी शिक्षिका बनेगी और भारत के भविष्य का निर्माण करेगी। इसके बाद दोनों भाई-बहन चारा लाते वक्त कभी चुप नहीं रहते।

(एजुकेश मिरर के लिए यह अनुभव दुर्गा सिर्वी ने लिखा है। वर्तमान में वे एलडीपीएस कॉलेज से बीए-बीएड की पढ़ाई कर रही हैं। शिक्षा से संबंधित लेख, विश्लेषण और समसामयिक चर्चा के लिए आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। एजुकेशन मिरर अब टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)

3 Comments on अच्छी शिक्षिका बनने का ख़्वाब देखती ‘सपना’ और ज़िंदगी के सवाल

  1. अनित कुकरेजा // June 25, 2020 at 8:14 pm //

    शब्दों से शिक्षा की वर्तमान हकीकत से वाकिफ़ करवाने का एक सुंदर सफल प्रयास । बधाई और शुभकामनाएं आप एक सफल शिक्षिका बनें ।।

  2. Durga thakre // June 25, 2020 at 10:16 am //

    बेहतरीन लेख और सन्देश
    शिक्षा ही हमारे पंखों में नई उड़ान का हौसला भरती हैं। बहुत- बहुत धन्यवाद अपने विचार ,अनुभव साँझा करने के लिए ।

  3. Anonymous // June 25, 2020 at 8:17 am //

    स्पष्ट भाषा
    डर तक देखती आंखे
    सपनो की उड़ान कभी थमने ना दें।
    लेख के माध्यम से जो दर्द आपने बयां किये है वो एक हकीकत है।
    साधुवाद
    डॉ राजेश ठाकुर

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