गणित विषय की शिक्षिका होना: काँटों की सेज या फूलों का बिस्तर!
हम अपनी चर्चा की शुरुआत अक्सर सुनी जाने वाली कुछ दृष्टांतों से करेंगे: जब कहीं लोगों को मेरे मैथ्स टीचर होने के बारे में पता चलता है तो अक्सर ही मुझे एक खास तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिलती है :अरे बाप रे! आप मैथ्स टीचर हैं या ओह! वाह! मैथ्स टीचर! और अगला ही लाइन ट्यूशन पढ़ा देंगी इत्यादि! उस वक़्त सच बताऊ, तो वाकई में खुद को बड़ा ख़ास समझने की खुशफ़हमी सी होने लगती है.
वाह या वॉव प्रतिक्रिया अभी मुझे ख़ास बनने के पालने में हिलोरें भी नहीं लेने देती की तभी इनके साथ-साथ यह भी झट से सुनने को मिलती है कि मुझे तो भाई मैथ्स से आज भी बड़ा डर लगता है या फिर मुझे गणित तो आज भी पल्ले नहीं पड़ती है या इससे कुछ बेहतर यह की मेरी तो मैथ्स अच्छी थी लेकिन मुझे तो मैथ्स टीचर ही ढंग की नहीं मिली.इत्यादि !! मेरी खुशफहमी को तब दो गज जमीं भी नहीं मिलती जब हरेक साल स्कूल में रिजल्ट के दिन हम मैथ्स टीचर ही सबसे ज्यादा अवसादग्रस्त, तनावपूर्ण व् चिंतित नजर आती हैं.
एक घटना आज भी मुझे दुखी कर जाती है जब कक्षा नवीं का एक बालक मेरा दुपट्टा पकड़ कर रोते हुए यह कहने लगा कि इस साल मुझे पास कर दीजिये! मैथ्स के रिजल्ट तुलनात्मक तौर पर अन्य विषयों से अक्सर ही कमतर हुआ करता है’ असफल बच्चों की संख्या भी अन्य विषयों की अपेक्षा ज्यादा हुआ करती हैं! स्थिति तब और भी ख़राब हो जाती है जब बात सेकेंडरी कक्षाओं की होती हो।
बतौर गणित शिक्षक मेरे अनुभव
इस तरह के दृष्टान्त हम मैथ्स टीचर के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं जहाँ वाह या वॉव के विस्मयादि बोधक शब्द समाज में आपका स्थान दिखाता है, वहीं ट्यूशन एक प्रतीक है मदद की दरकार की जो आपसे समाज करने लगता है. ये दोनों ही भाव में जहाँ आप मदद देने वाले की श्रेणी में रख दिए जाते हैं स्वभावतः आप प्रभावशाली पोजीशन में आने लगते हैं. बात तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब यह वॉव या वाह इस बात का सूचक है कि कही न कही आप किसी ऐसे विषय से जुड़े हैं जिसे I.Q.( INTELLIGENCE QUOTIENT) से सम्बंधित करके देखा जाता रहा है.
गणित औपचारिक या अनौपचारिक तौर पर हमारे देश में एक बेहद महत्वपूर्ण विषय माना जाता रहा है. इसके पीछे के आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक कारणों पर हम फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे , मगर अपने 15 सालों के लम्बे पठन-पाठन के अनुभवों से हम इतना तो बता ही सकते हैं गणित अपने आप में एक भाषा है जिसे सीखने व आत्मसात करने के लिए एक ख़ास तरह की चिंतन प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है जिसे गणितीकरण कहते हैं.
दूसरे दृष्टान्त का संबंध उस वाह- वॉव स्थिति के उलट ओहदे व् सम्मान-प्रतिष्ठा के साथ साथ आने वाली उस जिम्मेदारी की ओर इंगित करती है जो किसी भी तथाकथित पद के साथ साथ आती है। गणित में असफलता या सफलता बहुत सारे कारणों पर सोचने को मजबूर करती है मगर कारण चाहे जो भी हो ज़मीनी स्तर पर इम्प्लीमेंटर तो हम टीचर्स ही होते हैं ना ! एक तरफ समाज द्वारा दिया गया सम्मान और दूसरी तरफ सफलता-असफलता की सम्पूर्ण जिम्मेदारी ये दोनों ही मुझे यह सोचने को विवश कर देती है की गणित शिक्षिका का पद फूलों की सेज़ है या काँटों का बिस्तर।
अमूर्त्त से मूर्त का सफर
मैथ्स टीचर होने का सबसे बड़ा फायदा यह बताया जाता है कि हमें कभी रोजगार की चिंता नहीं हो सकती है लेकिन हमें यह हमारे प्रोफेशन पर एक व्यंग्य सा ही जन पड़ता है। पठन-पाठन के मेरे लंबे अनुभव से हमें उस ‘पेडागोजिकल हेरिटेज’ का हिस्सा बनने का मौका मिलता है जिसमें हम एक खास तरह की चिंतन-प्रक्रिया के विकास या उस प्रक्रिया के उद्भव होने में भूमिका अदा कर सकते हैं.
ऐसा करने में हमें कई बार अमूर्त्त से मूर्त के सफर को बच्चों के लिए आसान बनाना पड़ता है क्योंकि मैथ्स टीचर की भूमिका थ्योरी को प्रैक्टिकल जीवन में लाने में अहम होती है. परंतु कई बार यही अमूर्त से मूर्त का सफर दुर्गम भी बन जाता है जो कि इस प्रोफेशन के महत्वपूर्ण चुनौती में से एक माना जाता है.
जब हम यह कहते हैं कि गणित दिखाई दे सकता है तो कई अन्य मैथ्स टीचर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि अच्छा! रियल एनालिसिस(Real Analysis) को जरा रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़कर दिखाइए बात हर एक टाइम अवधारणाओं के मूर्तकरण की नहीं होती है बल्कि उस भाषा के कौशलों की समझ व विकास की भी होती है जिसके तहत अमूर्त अवधारणा का मेंटल–इमेज (Mental Image)) कोई भी बच्चा बना सके या खुद ही बना ले तो हम उसे सराह सकें. इसीलिए हमें यह भी तो देखना ही पड़ेगा कि हम टीचर्स का खुद का माइंड कितना गणितीकरण की प्रक्रिया से गुजरा हुआ है कारण कि हम भी उसी बने बनाए सिस्टम की पैदाइश है!
सबके लिए गणित
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा( NCF-2005) में कक्षा दसवीं तक गणित अनिवार्य विषय की तरह माना गया है. इसका सीधा मतलब है कि हमें गणित कक्षा10वीं तक के सभी बच्चों के सीखने के हक में शामिल है. हमें इस अधिकार से कोई समस्या नहीं परंतु इस अधिकारों को उन तक कैसे पहुंचाया जाए यह हमारे लिए एक ज्वलंत समस्या है, इसका कारण कि हर एक बच्चा अलग है ना केवल सीखने की प्रवृत्ति में बल्कि सीखने के तरीकों से भी. यह व्यक्तिगत अंतर केवल मनोवैज्ञानिक ही नहीं बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक यहां तक कि जेंडर से भी प्रभावित होती है.
यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है तब जबकि हम यह जानते हैं कि हमारे यहां शिक्षक -छात्र अनुपात किस तरह का है (60/80:1). इसके अलावा गणित के अनोखे- अलग स्वरूप की वजह से यह बहुत जरूरी होता है कि इसमें निरंतर मूल्यांकन वह भी तुरंत फीडबैक के साथ बच्चों को मिलता रहे ताकि बच्चे गणित में प्रैक्टिस के महत्व को समझ सके. इसी लगातार साथ में लगे रहना ,हर कदम पर स्टूडेंट का सहायक बनना एक अलग तरह के जुनून(Passion) की मांग करती है जो शायद उपर्युक्त सम्मान व प्रतिष्ठा के पीछे की वजह बनती है.
या तो गणित से प्रेम होता है या नफरत होती है….
यह विषय सबसे ज्यादा ध्रुवीकृत विषय के तौर पर देखा जाता है या तो छात्र इसे बहुत पसंद करते हैं या फिर इसे बिल्कुल ही नकार देते हैं. बीच की कोई स्थिति ही नहीं दिखाई देती है. गणित के प्रति प्रेम को सीखना और सिखाना एक गणित शिक्षिका के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है, खासकर उस समाज में जहां गणित को IQ से जोड़कर देखा जाता रहा है. जिसमें गणित के अमूर्त प्रकृति को ना सीखने या सिखाने के लिए जरूरी हथियार के रूप में लगातार इस्तेमाल किया जाता रहा है. गणित के प्रति प्रेम को सीखना तभी मुमकिन हो सकता है जब गणित के प्रति नफरत कैसे सीखी और सिखाई गई इसके पीछे के सच को जाना जा सके.
दिल्ली विश्वविद्यालय में एक बार मैं “गणित में लड़कियों की स्थिति” पर चर्चा कर रही थी. चर्चा के बाद वहां उपस्थित बीएड में पढ़ने वाले बच्चों से मुझे जो सबसे ज्यादा टिप्पणी मिली वह यह था कि आपके जैसी भी टीचर होती है मेरे यह पूछने पर कि “मेरे जैसी?? तो उनमें से एक ने कहा कि हां ! आपके जैसी कोमल व भावुक भी गणित टीचर हो सकती तो हमें भी आज गणित से प्यार होता. गणित अध्यापक के बारे में इस तरह का स्टीरियोटाइप हमारे समाज में कोई असामान्य बात नहीं है.
साथ ही कई बार हमारे अन्य विषय अध्यापक क्लास में यह कहते हुए पाए जाते हैं कि मुझे तो गणित में बड़ा ही डर लगता था या फिर मेरी भी गणित अच्छी नहीं थी या मुझे तो सरल सा प्रतिशत निकालने में भी मुश्किल आती है इत्यादि इत्यादि! इस तरह के स्टीरियोटाइप व्यंग्य विद्यार्थियों को यह बताने के लिए काफी है कि जब हमारे बड़े (टीचर्स या अभिभावक) ही गणित को कर नहीं पा रहे हैं तो हमें कैसे आएगा इस तरह के स्व-अवधारणा या आत्मविश्वास पर चोट टीचर्स के व्यवसाय की चुनौती है क्योंकि यह राह में सीखने-सिखाने में बड़ी मुश्किल खड़ी कर देता है.
ज्यूडी विल्स ने अपनी किताब ‘ (Learning to love Maths) में सुझाव दिया कि गणित शिक्षकों को अपने छात्रों के आत्मविश्वास वर्धन के लिए कई तरह की रणनीतियां अपनानी चाहिए जैसे कि (Error-less Maths). यहाँ मेरे कहने का आशय यह है कि टीचर को अगर गणित के स्वरूप की स्पष्टता हो और उसका खुद का गणितीकरण हुआ हो या उसकी समझ भी हो तो कई रणनीतियां लगाकर वह अपने छात्रों के टूटे हुए आत्मविश्वास को फिर से जोड़ सकता है और जब एक बार यह जुड़ता है तो वह गणित के प्रेम करने वालों की श्रेणी में पहुंच जाता है और यह तो हम सभी जानते हैं कि गणित से प्यार ही हम गणित टीचर्स की ताकत होती है.
गणित में सफलता या असफलता
गणित अध्यापकों की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रहा है गणित में असफल होने की समस्या. कई राजनीतिक व शिक्षणशास्त्रीय प्रयासों के बाद भी हर साल गणित में असफल बच्चों की संख्या ‘निल बटे सन्नाटा’ की ओर ही इशारा करने लगती है. ऊपर बताए गए उदाहरणों (परीक्षाफल के) से सच में हम कई बार वेदना के उस स्तर तक पहुंच जाते हैं कि क्या गणित टीचर बनकर हमने एक सही निर्णय अपने जीवन के साथ किया. अभिभावक ,प्रशासक व व्यवस्था का दबाव परीक्षाफल को लेकर हम शिक्षकों पर हमेशा ही रहता है. गणित में असफल छात्रों की वास्तविकता के पीछे खुद को दोषी मानते हुए जब आत्मचिंतन करने लगती हुँ तो पाती हुँ कि उस बच्चे की जीरो से 20% तक तो हम ले आए थे लेकिन सफल की श्रेणी में लाने के लिए 33% लाना होगा.
शून्य से 20 तक का जो सफर मेरे लिए न जाने कितने ही उतार-चढ़ाव से होकर गुजरने पर मंजिल तक शायद पहुंचा हुआ नहीं माना गया. और तो और, इसके उपाय के तौर पर जब भी नवाचार का सहारा लेने लगती हुँ तो ले-देकर केवल प्राथमिक कक्षाओं में दैनंदिन जीवन के उदाहरणों से जोड़कर गणित को Mystify से Simplify का दावा किया जाता है और सिस्टम उस दावे की सराहना करती हुई पाई जाती है लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा है गणित एक विशेष भाषा है जो गणितीकरण पर निर्भर करती है .गणितीकरण एक तरह की चिंतन प्रक्रिया है जो केवल अवधारणाओं को दैनंदिन जीवन से जोड़कर ही नहीं पाया जा सकता.
अतः यह देखना जरूरी है कि हमारे मूल्यांकन की प्रणाली कितनी संरचनाकृत है और कितनी लचीली! मतलब कि 0 से 20 तक का सफर सम्पूर्ण प्रणाली मूल्यांकन प्रणाली पर सवाल उठाती है। इसके साथ ही विकास को भी एक नए सिरे से देखने की मांग करती है जिसमें गणित सीखना केवल अंक लाना नहीं बल्कि सीखने के विकास की प्रक्रिया को समझना और गणितीकरण होता है.
(लेखक परिचयः पूजा प्रतिहस्ता वर्तमान में केंद्रीय विद्यालय ग्रेटर नोयडा में बतौर गणित शिक्षक काम कर रही हैं। बच्चों के लिए गणित विषय को रोचक तरीके से प्रस्तुत करना और इस विषयसे जुड़ी बच्चों की समस्याओं का समाधान करना उनकी रुचियों में शामिल हैं। गणित शिक्षण के 15 वर्ष के लंबे अनुभव की झलक आपको इस लेख को पढ़ते हुए भी महसूस होती है। इस लेख को पढ़ने के बाद अपनी टिप्पणी जरूर लिखें।)
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I love math. There, I said it. You can judge me all you want, but believe it or not, I’m a relatively normal guy. All subjects, from science to history, music to philosophy, fascinate me. Math, however, has a special place in my heart. How could this be? How is it that this totally boring and bizarre subject has captivated my mind for so long? Let me break it down…teachers / Mentors like you ma’am have potential to guide pupils to understand…it’s not a subject only…Math is the language of our universe, and as we plow forward in our understanding of this vast landscape, we move closer to unlocking more and more incredible technological secrets…so Dear don’t fear…enjoy math not as a subject but as a part of life….thnx ma’am for your great work…keep doing…keep motivating.
Amazing article for all those who love or feel fear for math. It made me remember my school days. Fortunately I found teachers who made it an interesting subject to study. Mam…..your views on math shows your dedication towards this subject. Keep inspiring more and more students to love it.
Very well said “Maths is language” and only teacher like you can make easy and fun. I must say every parents should read this article and understand the depth of writer. It is a wow factor and only a great teacher can take away any fear within you about the number game.Numbers are fun game if we learn how to play nicely and orderly. Keep writing…
Thank you very much Priyanka P for this comment. This will encourage Pooja Mam to keep this writing journey going.
Maths has always been difficult yet interesting.
A subject which is conventionally perceived to be theoretical in nature , you have shown the pragmatic side of it and making it interesting for students.
Mathematics teaching in itself is a big challenge compared to other subjects. I having learnt mathematics and being extremely close to the subject agree in totality with the author’s views. Well done.
Wow
Very expressive illustration. It reminds me of a movie “a beautiful mind “. Numbers speaks and as we always hear in engineering “numbers never lies”.
गणित का ज्ञान हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं , इसकी महत्ता को और एक गणित शिक्षक की भूमिका को आपने बखूबी दर्शाया हैं मैंम ।
nice article. being a maths teacher myself i can relate to the topic. nicely presented the situations faced by a maths teacher. kudos n best wishes.
Very nicely analysed the different views of maths .
Excellent , Sahi likha hai Pooja . Tumare lekhan ki to main pahle hi kayal thi . As a maths teacher bahut mahnat kerni hoti hai her ek bacche ke saath . Examination ke time mujhe maloom hai hai kaise (tumko hi dekha hai) maths teacher hi bachhon ko extra padati hi rahti hain . Bas ye sab acche number le ayain ya pass ho jayain .
बहुत खूब पूजा जी , बहुत ही सुंदर और सटीक शब्दो में गणित की सुंदरता और उसके गणितीकरण तथा एक शिक्षक के गणितीकरण को समझाया है ।
Its indeed a reality…being a Maths teacher is not a easy job..since I also sometimes struggle to teach Maths to my daughter.
But I always wish to have u as my daughters Maths teacher…
To be a teacher in Mathematics subject is itself matter of pride for anyone else . Thanks to the writer of this article for presenting heartfelt experience.