Trending

आलेखः राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, कोडिंग सिखाने के जादुई दावे और ऑनलाइन शिक्षा की ज़मीनी हक़ीक़त

भारत के जयपुर शहर में बतौर शिक्षक प्रशिक्षक, पाठ्यचर्या विकसित करने और एससीईआरटी छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान के लिए गणित की पाठ्यपुस्तक लेखन करने वाली टीम का सदस्य होने के कारण मुझे प्रारंभिक शिक्षा से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों, ग़ैर-सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले प्रोफेशनल्स और छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में प्राथमिक कक्षाओं में गणित विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ काम करने का पर्याप्त अवसर मिला। इन राज्यों में शिक्षकों के साथ होने वाली बातचीत में मैंने अनुभव किया कि आमतौर पर शिक्षक गणित विषय के शिक्षण के दौरान बच्चों के सीखने में आ रही चुनौतियों का अवलोकन साझा करते हैं और इसके साथ ही साथ इन चुनौतियों के पीछे के संभावित कारणों का भी जिक्र करते हैं। उन शिक्षक प्रशिक्षणों में शिक्षक मेरे साथ बातचीत किया करते थे कि कैसे उन्होंने फॉर्मेटिव और समेटिव असेसमेंट का इस्तेमाल बच्चों के अधिगम को बेहतर बनाने और अपने गणित विषय के पढ़ाने के तरीकों में सुधार के लिए करते हैं।

इस लेख के पहले भाग में ऑनलाइन पढ़ाना और पढ़ने को लेकर बात की गई है क्योंकि यह आज महत्वपूर्ण प्रश्न बन गया है, हर कोई ऑनलाइन टीचिंग, लर्निंग की बात कर रहा है. लेकिन इसमें काफी समस्याए निर्माण हो रही है? क्या छोटे बच्चे भी बड़ो की तरह ऑनलाइन सीख सकते है? क्या एक वयस्क जैसे सीखता है वैसे ही छोटे बच्चे सीखते है? सीखना-सिखाना चाहे ऑनलाइन हो या ऑफ़लाइन, इफेक्टिव नहीं हो सकता अगर सिखनेवाले की समझ में इजाफा नहीं होता है, पढ़ाना मतलब सिर्फ बताना नहीं होता और सीखने का मतलब सिर्फ बताया हुआ सुनना. तो फिर क्या होता है “सीखने” का मतलब? पढ़िए इस लेख में।

गणित सीखने को लेकर बनी धारणाएं क्या वास्तविक हैं?

प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक किस तरह के आकलन और मूल्यांकन की रणनीति का इस्तेमाल करते हैं इसको ज्यादा गहराई से जानने-समझने की मेरी रुचि को बढ़ाने में इन अनुभवों की भूमिका है। मैंने सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ होने वाली कार्यशालाओं व सेवा-कालीन शिक्षक प्रशिक्षणों के दौरान शैक्षणिक और ज्ञानमीमांसीय पहलुओं के साथ-साथ गणितीय अवधारणाओं को सीखने से संबंधित चुनौतियों पर भी चर्चा की है। इन अनुभवों के दौरान मैंने पाया कि बच्चे गणित कैसे सीखते हैं, गणित सीखने में बच्चों को कठिनाई क्यों होती है और इन कठिनाइयों का समाधान कैसे किया जा सकता है, इसको लेकर शिक्षकों की कुछ निश्चित धारणाएं हैं। ये धारणाएं हमेशा मजबूत शैक्षणिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं होती थीं।

उदाहरण के लिए कुछ शिक्षकों का मानना था कि ज्यादा से ज्यादा सवालों को हल करने से बच्चों को गणितिय अवधारणाओं को सीखने में मदद मिलेगी और शिक्षकों के इस विश्वास के कारण बच्चों को एक ही अभ्यास या सवाल को बार-बार दोहराने के लिए कहा जाता था। वहीं कुछ शिक्षकों का यह भी मानना था कि बच्चे गणित तब सीखते हैं जब उनको छोटी-छोटी ट्रिक्स और शॉर्ट कट वाले तौर-तरीके बताए जाते हैं और इसलिए उन्होंने अपने पढ़ाने के तरीकों में ऐसे ट्रिक्स खोजने पर ज्यादा ध्यान दिया। उनकी बच्चों से अपेक्षा थी कि वे ऐसी ट्रिक्स सीख लें और गणित विषय में अच्छे नंबर हासिल करें।

इस तरीके से शिक्षकों ने अपनी धारणा का इस्तेमाल अपने पाठों को तैयार करने और यह निर्धारित करने के लिए किया कि अवधारणाओं को कैसे प्रस्तुत करना है और बच्चों का मूल्यांकन कैसे करना है ताकि यह जान सकें कि बच्चों ने सीखा या नहीं सीखा। शिक्षकों के साथ होने वाली अंतर्क्रिया से मुझे यह भी पता चला कि शिक्षक आकलन का इस्तेमाल अपने पढ़ाने के तरीके को बदलने और बच्चों के सीखने की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नहीं कर रहे थे। इस तरीके से धारणा ने शैक्षणिक अभ्यासों को तय किया और इसका असर बच्चों के सीखने के अनुभवों और गणित विषय में उनकी उपलब्धियों पर पड़ा।

अपनी धारणाओं को लेकर सजग बने शिक्षक

शिक्षकों के साथ लगातार बातचीत के परिणाम स्वरूप मैं दो बातों के लिए काफी सजग हो गया कि शिक्षकों को अपनी धारणाओं को लेकर जागरूक होना चाहिए और उसमें समझ को लेकर भी कि बच्चे गणित कैसे सीखते हैं और एक हद तक मूल्यांकन को लेकर भी जिससे उन्हें अपने शिक्षण को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। इसीलिए जब मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन को ज्वाइन किया तो मैं प्राथमिक गणित के संदर्भ में शिक्षकों की मूल्यांकन को लेकर क्या समझ है इस पर शोध करने का फैसला किया। इसी का नतीजा ये आलेख है। इसके उपरांत भी मेरी अलग-अलग राज्यों के शिक्षकों के साथ इस विषय पर बातचीत होती रही। इस विषय को लेकर मेरी समझ बढ़ती गयी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) – 2020 भारत के शिक्षा सुधारों में से एक प्रमुख मील का पत्थर है, जिसमें शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने से आगे की बात की गयी जो की है शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना। शिक्षा नीति में कहा गया है गवर्नमेंट फॉउण्डेशनल लिटरेसी एवं न्युमरसि मिशन का गठन करेगा जिसका मुख्य उद्देश्य होगा 2025 तक सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (समझ के साथ पढ़ना और बुनियादी गणित) को प्राप्त करना। यह आलेख मिशन में योगदान करने के लिए विशिष्ट रूप से लिखा गया है और अंत में कुछ सुझाव भी दिए गए हैं।

परिदृश्य-1 ऑनलाइन शिक्षण को लेकर अभिभावकों की राय क्या है?

यह संवाद है मेरे और एक पालक के बीच में जिनका बच्चा कक्षा चौथी में पढ़ता है
मैं : कैसे चल रही आपके बच्चे की पढ़ाई ?
पालक : ऑनलाइन क्लास चल रही है
मैं : क्या होता है ऑनलाइन क्लास में ?
पालक : शिक्षक अपने मोबाइल से या लैपटॉप से पढ़ाते हैं और ढेर सारा होम वर्क देते हैं
मैं : क्या बच्चे शिक्षकों के साथ संवाद करते है?
पालक : नहीं , शिक्षक बताते है और बच्चे सुनते हैं।
मैं: बच्चा सीखा है या नहीं इसका आकलन कैसे करते हैं?
पालक: खूब सारी एक्सरसाइज देते है करने के लिए और चैप्टर खत्म कर देते हैं
मैं: क्या बच्चे इससे सीख रहे हैं?
पालक : स्कुल में शिक्षक सामने होते हुए भी बच्चों को सीखने में समस्याएं आती हैं, ऑनलाइन क्लास में तो शिक्षक बताते रहते हैं और बच्चे सुनते रहते है , हमारे यहाँ एक ही मोबाइल है, जो बहुत अच्छा नहीं है, कई बार रेंज में न होने या नेटवर्क ठीक न आने की समस्या आती है , कुल मिलाकर शिक्षक अपना काम कर रहे है और बच्चे अपना। बच्चे कितना सीख रहे हैं भगवान जाने।

परिदृश्य-2 शिक्षा क्षेत्र में किस तरह सजा है कोडिंग का बाज़ार?

जैसे ही एनईपी-2020 घोषित हुई, टीवी पर विज्ञापनों की भरमार सी लगी हुई है। 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) ने तो शिक्षा क्षेत्र को बाजार के लिए पूरा ही खोल दिया है। हर कोई इसे प्रोडक्ट की तरह पेश करने लगा है। चूँकि ये प्रोडक्ट बन ही गया तो इसके विज्ञापन भी आएंगे ही। इस तरह के कुछ विज्ञापन हैं जो, कोडिंग सीखने के लिए प्रेरित कर रहे है, और कोडिंग सीखने से क्या क्या होगा इस पर अपनी राय दे रहे है। इन विज्ञापनों को देखकर लगने लगता है की कोडिंग सीखने से शिक्षा की सभी समस्याओ का हल मिल जायेगा, बच्चे वो सभी कौशल हासिल कर लेंगे जो परंपरागत पाठ्यचर्या से हासिल करने में मुश्किल हो रही है। ये दावे कुछ इस तरह के है –

6 से 14 साल के बच्चे को कोडिंग सीखने से रचनात्मकता आएगी (आइंस्टाइन ने कहा कि क्रिएटिविटी के लिए स्कुल में ऐसा माहौल होना चाहिए, जहाँ बच्चे अपनी बात खुलकर कर सके, उन्हें अपनी बात रखने में परेशानी ना हो। क्या स्क्रीन के सामने बैठने भर से और डिजिटल स्क्रीन पर पढ़ने भर से बच्चे क्रिएटिव बनेंगे? यह एक जरूरी सवाल है। इसी तरह कोडिंग सीखने के लिए पहले आधारभूत सुविधाएं जैसे लैपटॉप या कम्प्यूटर, बिजली, डाटा इन सब की जरुरत होगी, ऐसे बदलाव हम क्यों लाना चाहते है जिससे सीखने की खाई (लर्निंग गैप) और बढ़ेगी। जिनके पास संसाधन है वे लोग ऑनलाइन पढाई को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिनके पास नहीं वो पीछे छूटते जा रहे हैं)।

तर्क में 75 प्रतिशत की वृद्धि जैसे दावों का आधार क्या है?

अमूर्त चिंतन में 23 प्रतिशत की वृद्धि जैसे दावे किये जा रहे हैं। मैं, खुद पाठ्यचर्या, शिक्षाशास्त्र और मूल्यांकन के कोर्स का विद्यार्थी रहा हूँ। लेकिन इस तरह का गजब अविष्कार मैंने सुना या देखा नहीं। 23% निकालने के लिए आपको १०० प्रतिशत पता होना चाहिए, तब तो आप पता लगा पाएंगे ना वृद्धि का।

तर्क करने में 75 प्रतिशत की वृद्धि का दावा किया जा रहा है। यह तो पहले वाले दावे से भी ज्यादा गजब अविष्कार है। इतनी वृध्दि, अगर इससे विद्यार्थी की तर्क शक्ति में इतना इजाफा होता है, तो इसे सारी जनता को सिखाया जाना चाहिए। आजकल तर्क करने वालों की वैसे ही कमी है। 75% निकालने के लिए आपको 100 प्रतिशत पता होना चाहिए, तब तो आप पता लगा पाएंगे ना वृद्धि का। वहीं एकाग्रता करने में ३०० प्रतिशत की वृद्धि (यह मेरे सोच से परे है की कैसे किसी की एकाग्रता ३०० % बढ़ेगी, इसके लिए हमारे पास १०० % एकाग्रता क्या होती है, इसका पैमाना होना जरुरी है)।

2010 में स्टीव जॉब्स आईपैड को जारी करने वाले ऐप्पल इवेंट के मंच पर थे और उन्होंने इसे एक अद्भुत उपकरण के रूप में वर्णित किया। दो साल बाद जब उनसे पूछा गया कि “आपके बच्चों को आईपैड तो बहुत अच्छा लगता होगा ना?” उन्होंने कहा “वास्तव में हम घर में आईपैड की अनुमति नहीं देते हैं।” “हमें लगता है कि यह उनके लिए बहुत खतरनाक है” (ठीक १० साल बाद हमारे यहाँ तो होड़ लगी है की कैसे बच्चो को स्क्रीन के साथ एक्सपोज़ करे, KG , नर्सरी , प्राथमिक के बच्चो को भी धड़ल्ले से स्क्रीन के साथ एक्सपोज़ किया जा रहा है ।

क्या इनकी वास्तविक पहचान कोडिंग सीखने से है?

हम सबने देश का नाम ऊँचा किया है – मैरी कॉम, इंडियन बॉक्सर , 6 बार वर्ल्ड चैंपियन ,
अपने अपने अंदाज में, अपने अपने तरीके से – विजेंदर सिंह, इंडियन प्रोफेशनल बॉक्सर, ओलिंपिक मेडलिस्ट
कुछ के जश्न मनाये, कुछ के नहीं – अंजुम मुदगल , इंडियन शूटर , वर्ल्ड कप मेडलिस्ट
जश्न हो ना हो ,अपने अंदर गर्व हमेशा रहेगा – डॉ दीपा मालिक, पॅरा ओलिंपियन , पद्मश्री और खेल रत्न अवार्ड,
अब नई पीढ़ी की बारी है – कॅप्टन शालिनी सिंह , इंडियन आर्मी वेटेरन , मिसेस इंडिया २०१७
आने वाली जंग ,स्पोर्ट्स में, या बॉर्डर पर नहीं लड़ी जाएगी – मैरी कॉम, इंडियन बॉक्सर , ६ बार वर्ल्ड चैंपियन
अब हम दुनिया से लड़ेंगे अपनी टेक्नोलॉजी से – शिखर धवन , इंडियन क्रिकेटर
अंतरप्रनरशिप से -अंजुम मुदगल, इंडियन शूटर, वर्ल्ड कप मेडलिस्ट
और हमारे आइडियाज से – विजेंदर सिंह, इंडियन प्रोफेशनल बॉक्सर, ओलिंपिक मेडलिस्ट
इस इंडिपेंडेन्स डे, हमारी जेनरेशन चुनौती देती है – डॉ दीपा मालिक, पॅरा ओलिंपियन
भारत के हर बच्चे को -शिखर धवन , इंडियन क्रिकेटर
आत्मनिर्भर बनो – अंजुम मुदगल , इंडियन शूटर , वर्ल्ड कप मेडलिस्ट
मज़बूत बनो – कॅप्टन शालिनी सिंह , इंडियन आर्मी वेटेरन , मिसेस इंडिया २०१७
काबिल बनो – डॉ दीपा मालिक, पॅरा ओलिंपियन
कोडिंग सीखो – मैरी कॉम
इसलिए मै अपने बेटे को व्हाइट हैट जूनियर पर कोडिंग सीखा रहा हु – शिखर धवन , इंडियन क्रिकेटर
कोडिंग सीखोगे तो देश की प्रोब्लेम्स सॉल्व करोगे – डॉ दीपा मालिक, पॅरा ओलिंपियन
देश के, और अपने सपने पुरे करेंगे – विजेंदर सिंह, इंडियन प्रोफेशनल बॉक्सर
जो हम इम्पॉसिबल मानते है , वो भी कर दिखाओगे – कॅप्टन शालिनी सिंह
इसलिए मै अपने बच्चों को भी व्हाइट हैट जूनियर डॉट कॉम पर कोडिंग सिखा रही हु – मैरी कॉम
कोडिंग सीखो, क्योंकि अगर नॉलेज शक्ति है – शिखर धवन , इंडियन क्रिकेटर
तो कोडिंग सीखना आत्मनिर्भरता – अंजुम मुदगल , इंडियन शूटर , वर्ल्ड कप मेडलिस्ट

ग़ौर करने वाली ख़ास बातें

ऑनलाइन पढ़ाना और पढ़ना आज महत्वपूर्ण बन गया है, हर कोई ऑनलाइन टीचिंग, लर्निंग की बात कर रहा है. लेकिन इसमें काफी प्रश्न निर्माण हो रहे है ? क्या छोटे बच्चे भी बड़ो की तरह ऑनलाइन सीख सकते है? क्या एक वयस्क जैसे सीखता है वैसे ही छोटे बच्चे सीखते है? ऑनलाइन टीचिंग लर्निंग इक्वीटी के सवाल निर्माण कर रही है, बच्चों में लर्निंग गैप बढ़ाने में मदत कर रही है तमाम बच्चों के घरों में इस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, सीखना-सिखाना चाहे ऑनलाइन हो या ऑफ़लाइन, इफेक्टिव नहीं हो सकता अगर सीखने वाले की समझ में इजाफा नहीं होता है, पढ़ाना मतलब सिर्फ बताना नहीं होता और सीखने का मतलब सिर्फ बताया हुआ सुनना. मेरे पास तमाम नामी गिरामी स्कूलों के बच्चे आते है, उनका एक ही कहना है उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। पढ़ाने का मीडियम बदल गया है लेकिन सिखाने के तौर तरीके वही है, रोज तीन से चार घंटे स्क्रीन के सामने हाजिरी लगाओ, स्कुल ड्रेस पहन के बैठो, वीडियो को हमेशा ऑन रखो। अब तो बच्चे भी सीख गए कब वीडियो ऑन करे ,कब ऑफ करे। ऐसे लगता है सभी अपना अपना कर्तव्य निभा रहे है। क्या इससे सीखने में वृद्धि हो रही है?

इसके लिए हमें “समझ के साथ सीखना” क्या होता है इसको समझना होगा. सीखना होता क्या है इसको लेकर हमारी समझ में काफी इजाफा हुआ है, कोई कैसे सिखता है यही हमें मदद करता है की हम कैसे पढ़ाये, हम कैसे टीचिंग प्लान बनाये। कैसे सीखे हुए का आकलन करे और अगर गैप है तो उसे कैसे कम करे। इन सवालों पर हम विस्तृत चर्चा अगले लेख में करेंगे।

(लेखक गजेन्द्र राउत शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 14 सालों से काम कर रहे हैं। ‘जिज्ञासा इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग एण्ड डेवेलपमेंट’ जो महाराष्ट्र के अमरावती जिले में स्थित है, उसके संस्थापक हैं। एजुकेशन मिरर की ‘कोर टीम’ का हिस्सा हैं। आपने दिगंतर, रूम टू रीड, टाटा ट्रस्ट्स के पराग इनीशिएटिव (प्रोग्राम मैनेजर लाइब्रेरीज़) जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में काम किया है। इसके साथ ही साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों के लिए गणित विषय की पाठ्यपुस्तकों को लिखने में भी योगदान दिया है। लंदन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूटऑफ एजुकेशन से एमए (करिकुलम, पेडागॉडी एण्ड असेसमेंट) किया है। इस लेख को पढ़िए और अपने सुझाव व विचारों को टिप्पणी के रूप में जरूर लिखें।)

13 Comments on आलेखः राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, कोडिंग सिखाने के जादुई दावे और ऑनलाइन शिक्षा की ज़मीनी हक़ीक़त

  1. Well said

    जैसे ही एनईपी-2020 घोषित हुई, टीवी पर विज्ञापनों की भरमार सी लगी हुई है। 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) ने तो शिक्षा क्षेत्र को बाजार के लिए पूरा ही खोल दिया है। हर कोई इसे प्रोडक्ट की तरह पेश करने लगा है। चूँकि ये प्रोडक्ट बन ही गया तो इसके विज्ञापन भी आएंगे ही। इस तरह के कुछ विज्ञापन हैं जो, कोडिंग सीखने के लिए प्रेरित कर रहे है, और कोडिंग सीखने से क्या क्या होगा इस पर अपनी राय दे रहे है। इन विज्ञापनों को देखकर लगने लगता है की कोडिंग सीखने से शिक्षा की सभी समस्याओ का हल मिल जायेगा, बच्चे वो सभी कौशल हासिल कर लेंगे जो परंपरागत पाठ्यचर्या से हासिल करने में मुश्किल हो रही है। ये दावे कुछ इस तरह के है –

  2. Nikita Pramod Hambarde // March 6, 2021 at 10:01 am //

    Excellent Article Sir ! You laid out the real situation of online learning and coding. I’m a student and I also faces all this issues about online learning which you have explained by the article. I felt this article shows your efforts and deep research. I really agree with this article and curious for next part. Thank you Sir.

  3. ऑनलाइन सीखने की वास्तविकता को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है। सिर्फ सूचनाओं का आदान-प्रदान करना शिक्षा नहीं है। सीखने की अवधारणा बहुत अलग है। आपके और पालक के बीच की बातचीत आपको दिखाती है कि ऑनलाइन शिक्षा का वास्तव क्या है। कुछ ही लोगों के लिए सुविधाएं हैं। लेकिन उन बच्चों का क्या जिनके पास सुविधाएं नहीं हैं? यह प्रश्न सभी को आत्मनिरीक्षण करने के लिए मजबूर करता है। बहुत सारी मुद्दो को आपणे सामने लाने का प्रयास किया है.

  4. Anonymous // March 1, 2021 at 6:41 pm //

    Very Nice Article 👌👌👌👌👌

  5. ऑनलाइन शिक्षा अब प्रक्रिया का अविभाज्य अंग हो चुका हैं। शिक्षकों के समक्ष अब इस माध्यम को सृजनशीलता के साथ उपयोग में लाना एक चुनौती हैं। इस लेख में आपने कुछ महत्वपूर्ण एवं विचार करने योग्य मुद्दोंको प्रस्तुत किया हैं।
    वास्तविकता यह हैं की हर व्यक्ति/विद्यार्थी की अपनी एक अलग रुचि या क्षमता होती हैं….कोई गणित में तो कोई भाषा में…कोई कला में तो कोई कोडिंग में….पालकों का यह दायित्व बनता हैं की वे अपने पाल्य में इस क्षमता को पहचाने और उसके अनुसार ही आगे बढ़ावा दे…शृंखला के अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।

  6. Very well written sir…
    The actual insight of the education system especially during the pandemic has been explained beautifully.
    Curious to read more about the same …

  7. Satish Pawar // February 27, 2021 at 8:34 am //

    सबसे पहले मै श्री गजेंद्र जी को धन्यवाद देना चाहुंगा।
    क्योंकी आज के इस covid pandemic मे बच्चोंकी पढाई को लेकर शिक्षक, बच्चोंके माता पिता, और शिक्षा क्षेत्र मे काम करनेवाले सभी लोगोंकी उलझने और भी बडी है, जो उससे (covid pandemic) पहले ही बडी हुई थी। और ही और कुछ विज्ञापन इसमे और ही उलझने बढाने का काम कर रही है। असल मे बहुत सारे लोग बच्चोंकी पढाई को लेकर हमेशा एक तणाव मे रहते है और आज चल रही इस आँनलाइन पढाई, कोडिंग जैसे चीजोने लोगोंके बीच और तनाव बढा दिया है, जो गजेंद्र जी ने ‘असल मे शिक्षा क्या है और कैसी होनी चाहिए’ इसके बारे मे सष्ट रूप मे लिखा है। ज्यादातर बच्चोंके माता पिता अपने बच्चोंके अनुसार नही, आसपास के लोग क्या कर रहे है इसके अनुसार खुद के बच्चोंको पढाई देते है, जो की इसमे बच्चोकी रुची, उनकी क्षमता, और साथही उनका बचपन इस पर बहुत बडा असर पडता है। मै श्री गजेंद्र जी को उनके आगे के कार्य को बधाई देते हुए यही कहना चाहुंगा की अपना यही प्रयास ऐसा ही जारी रखे ताकी इससे शिक्षा से जुडे हुए लोगोंको बहुत सारी मदद मिलेगी।

    सतिश पवार
    प्रोग्राम लिडर
    पिरामल फौंडेशन

  8. इसका अगला भाग कब आयेगा..I am eager to know about what is learning and how it’s understanding has impact over teaching methods.. especially in subject like mathematics

  9. यह लेख बहुत अच्छा है. ऑनलाईन लर्निंग की पोल खोलता है..हमे अगले आलेख का इंतजार है..जो सिखना क्या है इसके उपर है

  10. Nice article

  11. Good to read this article. It clearly elaborates the fake claims of coding companies.

  12. स्कूल में बच्चों की प्रगति का लेखा-जोखा रखने की जरूरत नहीं है वंह बच्चों में दिखाई देनी चाहिए। जब भी स्कूल में निरीक्षण किया जाय सीधे बालकों से चर्चा की जाय। शाला समय 10.30 से 4.30 का होना चाहिए ।

  13. Durga thakre // February 26, 2021 at 12:56 pm //

    👌👌👌👍👍

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: