कविताः ‘अनाथ बचपन’
नन्ही सी पंखुड़ी हूँ मैं
बचपन की कली हूँ मैं
शिक्षा से दूर हूँ मैं
माँ के स्नेह से दूर हूँ मैं
स्कूल पहुचने से दूर हूँ मैं
पिता की परवाह से दूर हूँ मैं
दोस्तों के साथ से दूर हूँ मैं
अपना कह सकूँ ऐसे रिश्तों से दूर हूँ
भाई – बहन के दुलार से दूर हूँ मैं
अपनों से दूर हूँ मैं
सपनों से दूर हूँ मैं
नन्ही सी पंखुड़ी हूँ मैं
बचपन की कली हूँ मैं।
(यह कविता एचसीएल फाउण्डेशन हरदोई में काम करने वाले भुआल प्रजापति ने लिखी है। उन्होंने इस कविता को शीर्षक दिया है ‘अनाथ बचपन’। इस कविता में उनकी संवेदनशीलता और बचपन के बारे में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की कोशिश की गई है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बीएड की पढ़ाई की है और वर्तनमान में शिक्षक साथियों का सहयोग कर रहे हैं।)
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