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शिक्षक प्रोत्साहन सिरीज़ः राजस्थान के टोंक जिले में कैसे बदली एक स्कूल में शिक्षा की तस्वीर?

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राजस्थान के टोंक जिले के एक विद्यालय में बदलाव की कोशिश करते हुए हंसराज गुर्जर।

मेरा ऐसा मानना है कि शिक्षा के द्वारा ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है। इस काम में शिक्षक एक उत्प्रेरक के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। इसी संदर्भ में एजुकेशन मिरर के माध्यम से एक अनुभव आपके साथ साझा है। यह उन उन दिनों की बात है जब मेरा तबादला राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, कीरो की झौपड़ियां में हुआ था। जब मैं गांव कीरो की झौपडियां ग्राम पंचायत बनेठा में आया तो मैंने देखा कि गांव के अधिकांश लोगों में शराब पीने की लत है। गांव में लोग खुद ही शराब बनाते थे और पीते थे।

यह बात सन 2009 की है। उस समय गांव के लोगों का विद्यालय से कोई सरोकार नहीं था। इसके साथ ही गांव के लोग बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर भी बिल्कुल ध्यान नही देते थे। गांव में बालिका शिक्षा नगण्य रूप में थी। विद्यालय में कक्षा 5 तक 50 बच्चे थे और 1 अध्यापिका थी। वह भी शिक्षण व्यवस्थार्थ अन्य विद्यालय से लगाई गई थीं। मेरे आते ही वह अपने विद्यालय में चली गयीं।

‘शराबियों के गांव’ वाली पहचान

कुल मिलाकर आसपास के इलाके में इस गांव की पहचान ‘शराबियों के गांव’ के रूप में थी। तबादले के बाद मैं जब विद्यालय पहुंचा तो सबसे पहले मैंने स्कूल व गांव की परिस्थितियों का अवलोकन किया। विद्यालय व गांव का अवलोकन करने के बाद मैंने तय किया कि मुझे विद्यालय व गांव के हालात बदलने है। मैंने विद्यालय के संसाधनों व बच्चों के स्तरानुसार योजना बनाई।

किन्तु मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि मैं अकेला अध्यापक, पचास बच्चे व पांच कक्षाएं। मैंने विद्यालय के हालातों को चुनौती के रूप में स्वीकार कर लिया और अनुभवों के आधार पर सबसे पहले मैंने अपनी शिक्षण प्रक्रियाओं में बदलाव किया। जैसे कक्षा 1,2 के बच्चों का एक समुह बनाया और कक्षा 3,4,5 के बच्चों का एक अलग समुह बनाया। फिर उनमें अलग-अलग स्तर के बच्चों को चिन्हित करके शिक्षण योजना बनाई।

बदलाव की शुरूआत की प्रतिबद्धता

शिक्षण योजना अनुसार बच्चों के लिए भाषाई खेल गतिविधियां आयोजित करवाईं। जैसे शब्दों की लड़ी, अंतिम समान ध्वनी वाले शब्द, वर्णो से शब्द बनाना, शब्दों से कहानी बनाना, अधूरी कहानी पूरी करना और बोल-बोल कर सीखना आदि। मेरा यह भी लक्ष्य था कि मेरे सभी बच्चे बिना झिझक संकोच के अपनी मुखर अभिव्यक्ति कर सकें। इस हेतु मैंने बच्चों को खुब सारे अवसर उपलब्ध करवाये। इसी सिलसिले में मैंने विधालय में एक नई गतिविधि ‘गांव का अखबार’ की शुरूवात की जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि बच्चे इस गतिविधि के माध्यम से अपनी बात दुसरों को समझा सकें।

विषय शिक्षण के अलावा भी मैंने विद्यालय की अन्य गतिविधियों के स्वरूप को भी बदलने का प्रयास किया। इसके अन्तर्गत मैंने सबसे पहले मॉर्निंग एसम्बली के प्रारूप को बदलने की योजना बनाई। क्योंकि उससे पहले होने वाले मोर्निग एसम्बली बच्चों के लिए केवल औपचारिकता ही बनी हुई थी। जिसमें यह होता था कुछ बच्चे प्रार्थना करवाते और अन्य बच्चे उसका दोहरान करते। मॉर्निग एसम्बली का प्रारूप बदलने के बाद सभी कक्षाओं के बच्चे इसमें भाग लेने लगे। जैसे किसी दिन बच्चे कहानी सुनाते,नाटक करते, बालगीत गाते और चुटकुले-पहेलियां इत्यादि सुनाते।

फिर धीरे-धीरे बच्चों ने मॉर्निग एसम्बली में वाद्य यंत्रों का उपयोग करना शुरू कर दिया। बच्चे पूर्ण आजादी के साथ गीत गाते और नृत्य करते। इससे पहले विद्यालय में वाद्ययंत्र तो थे पर उनका उपयोग नहीं किया जाता था। धीरे-धीरे बच्चे कविता, गीत ओर लोकगीत गाने में माहिर हो गये। इन सब कार्यों से मॉर्निग एसम्बली में सभी कक्षाओं की सहभागिता होने लगी। मॉर्निंग एसम्बली में बच्चों के बैठने का प्रारूप भी बदलने लगा। जैसे बच्चे गोलाकार, त्रिभुजाकार, ANWSD आदि अक्षरों के आकार में बैठने लगे। इस तरह मॉर्निंग असेंबली का प्रारूप बदल गया और मॉर्निंग असेंबली बच्चों के लिए सीखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम और हिस्सा बन गई।

अभिभावकों के साथ संवाद से मिली मदद

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विद्यालय में बच्चों के अभिभावक मुझे शिक्षण कार्य करते हुए देखते। फिर धीरे-धीरे गांव में विद्यालय के बारे में चर्चा होने लगीकि नए वाले मास्टर साहब बच्चों को अलग ही तरीके से पढ़ाते हैं। इसके बाद मैंने स्कूल में नियमित में आने वाले अभिभावकों के घर-घर जाकर संपर्क करना शुरू कर दिया। इस तरह मुझे बच्चों के अभिभावकों से बातचीत करने का अवसर मिला फिर मैंने धीरे-धीरे बच्चों के अभिभावकों से शराब पीने के कारण होने वाले शारीरिक और पारिवारिक नुकसान के बारे में बताना शुरू किया। दरअसल ,शराब के कारण बच्चे मॉर्निंग असेंबली मैं भी देरी से आते थे इसलिए इस विषय पर गांव वालों से बातचीत करना जरूरी था।

फिर गांव वाले धीरे-धीरे विधालय आने लगे। मैंने सोचा कि इस बहाने से विद्यालय की एसएमसी बैठक को नियमित करने का प्रयास किया जाए ताकि विद्यालय और गांव के मुद्दों पर उसमें चर्चा हो पाए। फिर एक दिन विद्यालय के एसएमसी के अध्यक्ष और वार्ड पंच विद्यालय में आए और विद्यालय में अपने समाज के 25 गांवों के पंच पटेलों की शराबबंदी के लिए बैठक आयोजित करने में मदद मांगी। मैंने अवसर देखकर विद्यालय में बैठक आयोजित करने की आज्ञा दे दी और साथ ही बैठक में बातचीत करने की योजना बनाने में मदद की। विद्यालय में बैठक आयोजित की गई। बैठक के दौरान मुझे भी अपने विचार रखने का अवसर मिला। अपने विचार रखते हुए मैंने बच्चों की शिक्षा और खास तौर से बालिका शिक्षा पर विशेष जोर दिया। बैठक के बाद गांव वालों में बड़ा बदलाव आया और गांव वाले मेरी बात मानने लगे।

सफलता के उदाहरण से बदली सोच

इसके फलस्वरूप शिक्षण सत्र 2016-17 में मेरे विद्यालय के एक छात्र को आठवीं कक्षा के अंग्रेजी विषय में अच्छे अंक लाने की वजह से ब्लॉक स्तर पर SDO सर द्वारा सम्मानित किया गया। इस सम्मान के बाद गांव वालों की सोच में बड़ा बदलाव आया। पहले गांव वाले अक्सर मुझसे कहते थे कि मास्टर साहब हमारी जाति में कोई पढ़ा नहीं है और ना ही कभी पढ़ सकता है। लेकिन जब उनके गांव का बच्चा ब्लॉक स्तर पर सम्मानित हुआ तो गांव वालों को समझ आने लगा कि हमारे बच्चे भी पढ़ लिख कर आगे बढ़ सकते हैं

दरअसल ,वर्ष 1999 से लेकर 2017 तक विद्यालय से एक भी बालिका ने कक्षा 5 से आगे पढ़ाई नही की। फिर वर्ष 2017 में मेरे द्वारा प्रयास करने पर एक अभिभावकों ने बालिकाओं का दाखिला कक्षा 8 में करवाया फिर बालिका ने कक्षा 8 की परीक्षा दी और परीक्षा में उत्तर्णी हुई और आगे बालिका ने कक्षा 10 की परीक्षा में शामिल हुई। इसी प्रकार 2019 में एक अन्य बालिका कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय अलीगढ़ मे भी आगे पढ़ने के लिए प्रवेश लिया।

‘बच्चे ही नहीं, बड़े भी जीवनभर सीखते रहते हैं’

इस तरह सभी के आपसी सहयोग से विधालय के कामों की चर्चा होने लगी। फिर गांव के भामाशाहों का सहयोग भी मिलने लगा । भामाशाहों के सहयोग से विद्यालय में वाटर कूलर ,बिजली ,कंप्यूटर और पानी की मोटर आदि का इंतजाम किया। गांव वालों ने मिलकर विद्यालय में एक कमरे का निर्माण करवाया। आज विद्यालय में सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध है। वर्ष 13 -14 में विद्यालय प्राथमिक से उच्च प्राथमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हुआ। वर्तमान समय मे विधालय में 100 बच्चों का नामांकन है और विद्यालय में 6 अध्यापक कार्यरत हैं। विद्यालय में अब बच्चे स्वयं जिम्मेदारी के साथ कार्य करते हैं। बच्चे स्वयं मॉर्निंग असेंबली ,पोषाहार और अन्य गतिविधियों को बड़े चाव के साथ संपन्न करते हैं।

हमारे विद्यालय का एक यूट्यूब चैनल है जिसका नाम है HANSRAJ GURJAR BANETHA जिस पर विद्यालय के सभी शैक्षिक व सह-शैक्षिक गतिविधियों के वीडियो देखे जा सकते हैं। मुझे अपने विद्यालय शिक्षण अनुभव के आधार पर लगता है कि बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी जीवन भर सीखते रहते हैं ।और यह सीखना सिखाना सच्ची शिक्षा है जो जीवन भर चलती ही रहती है अंत में इतना ही कह सकता हूं कि शिक्षक और विद्यार्थी दोनों का सीखना जीवनभर चलते ही रहना चाहिए।

WhatsApp Image 2020-08-16 at 5.02.01 PM(लेखक परिचयः राजस्थान के टोंक जिले से एजुकेशन मिरर के लिए यह लेख हंसराज “हंस” ने लिखा है। आप विगत 30 वर्षो से अध्यापन का काम कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों के पक्षधर है। स्कूल की तरफ से बच्चों के सहयोग के ‘गाँव का अखबार’ जैसी पहल के माध्यम से संवाद और सामाजिक बदलाव का प्रयास कर रहे हैं। इस लेख में बदलाव की उनकी कोशिशों के एक सफ़र को समझा जा सकता है। पढ़िए यह लेख और लिखिए अपनी टिप्पणी।)

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3 Comments on शिक्षक प्रोत्साहन सिरीज़ः राजस्थान के टोंक जिले में कैसे बदली एक स्कूल में शिक्षा की तस्वीर?

  1. मनोज कुमार कुर्मी // August 22, 2020 at 6:28 pm //

    यह हम सभी का सौभाग्य है कि आपके साथ काम करने का अवसर मिला, हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं की आपकी तरह शिक्षकों में बच्चों के मन तक पहुंचने की भावना विकसित हो।

  2. Durga thakre // August 16, 2020 at 10:28 pm //

    बहुत अच्छा लगा जानकर
    शिक्षा के प्रति एक शिक्षक का जुनून उसे ऊंचाइयों पर लाता है ।
    Very nice sir

  3. Roopa Pareek // August 16, 2020 at 8:48 pm //

    व्यावहारिक एवं प्रेरणा दायक

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