आरे जंगलः क्या पर्यावरण प्रेम सिर्फ पाठ्यक्रम और भाषण की विषयवस्तु है?
मुंबई की आरे कॉलोनी के जगंल के कटने की चर्चा पूरे भारत में हो रही है। इसका विरोध करने वाले लोगों में पर्यावरण प्रेमी, स्टूडेंट्स और समाज के वे सजग लोग हैं जिनको बच्चों और किशोरों के साथ-साथ समाज के साझे भविष्य की चिंता है। लेकिन ग़ौर करने वाली बात है कि ‘एक वृक्ष दस पुत्र (पुत्री भी पढ़ें) समान’ का नारा बार-बार दोहराने वाले समाज में पेड़ों की ऐसी निर्मम कटाई हो रही है, वह भी विकास के एक ऐसे खोखले मॉडल के नाम पर जिसे गाँव और आदिवासी समाज के कारण बची हुई जैव विविधता की जरा सी भी फ्रिक्र नहीं है।
पर्यावरण की परवाह ‘साझे भविष्य’ के लिए जरूरी
विकास के नाम पर पर्यावरण की यह तबाही साझे भविष्य के लिए एक संकट और त्रासदी का सबब बनेगी, इस बात से शायद ही कोई समझदार इंसान इनकार करेगा। ऐसे लम्हों में स्टीफन हॉकिंग की कही बात याद आती है कि इंसान की लालच और मूर्खता के कारण ही धरती का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। उनके शब्दों में, “हम अपने लालच और मूर्खता के कारण खुद को नष्ट करने के खतरे में हैं। हम इस छोटे, तेजी से प्रदूषित हो रहे और भीड़ से भरे ग्रह पर अपनी और अंदर की तरफ देखते नहीं रह सकते।”
नन्हे पौधों को पेड़ बनाने की टेक्नोलॉजी इंसान के पास नहीं है
एक साल में बिल्डिंग बनाई जा सकती है, लेकिन एक साल में नन्हे पौधे पेड़ में तब्दील नहीं होते। इतनी छोटी सी बात भी तथाकथित जिम्मेदार लोगों की समझ में नहीं आती। मुंबई की आरे कॉलोनी के जंगल में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एक त्रासदी है।
पर्यावरण से भी प्रेम का संदेश देने वाली संस्कृति व सभ्यता पर एक सवाल है। विकास की परिभाषा न लोगों से पूछकर बनी और न परियोजनाओं की रुपरेखा तय करने में जन-भागीदारी और विरोध का ही संज्ञान लिया जा रहा है। लोक का जनमत पक्ष में हो तो वोट न देने वाले किशोरों व बच्चों का भविष्य चंद लोगों के हितों को संरक्षित करने के लिए दांव पर लगाने से नहीं चूकते लोग।
ऐसा लगता है मानो पानी के बाद ऑक्सीजन प्यूरीफायर बेचने की तैयारी हो रही है। वायु प्रदूषण और हवा के जहरीली होने का प्रचार/मार्केटिंग (स्कूल व यूपीएससी के फैशनेबल निबंध में आने वाले पर्यावरण केंद्रित लेखों में) पहले ही हो चुका है। सीमेंट के जंगल से जंगल की दूरी बढ़ाने और ग़ायब करने की हर कोशिश भविष्य के साथ एक धोखा है जो विकास के नाम पर बार-बार दोहराया जा रहा है।
सुकून की खबर
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के आरे कॉलोनी के जंगल वाले मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सात अक्टूबर को सुनवाई करेगी। उम्मीद है कि स्टूडेंट्स, स्थानीय लोगों और पर्यावरण के प्रति सजग लोगों की अनसुनी आवाज़ को एक सकारात्मक जवाब मिलेगा। विकास जरूरी है, लेकिन उसकी परिभाषा और तरीके को व्यापक जनहित का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
Absolutely correct.
Now a days it is difficult to decide where to go for justice.