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किताब के ‘घोंसले’ से बाहर झांकती बच्ची क्या कहती है?

P_20170802_135025_pस्कूल जाने वाले छोटे बच्चे चिड़ियों की दुनिया, घोंसले, अंडे, अंडों से निकलने वाले चूज़ों और घोंसलों की दुनिया से भली-भाँति परिचित होते हैं। यह पोस्ट एक ऐसे ही बच्चे की नज़रों से दुनिया को देखने का अवसर देती है, जो किताब के दायरे को तोड़ती है और वास्तविक ज़िंदगी में प्रवेश करती है।

 यह पोस्ट लिखी है एजुकेशन मिरर के पहले फ़ेसबुक लाइव के साथी और शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर लगातार विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करने वाले मुकेश भागवत ने।

P_20170802_135232_1_pवे लिखते हैं, “उसने ‘घोंसला’ के बारे में बताते वक्त यह सब दिखाया मुझे: किताब दिखायी।

P_20170802_135240_p_1वे आगे लिखते हैं, “फिर वह मुझे अपने खिड़की के पास ले गई और वहां बना घोंसला दिखाया; फिर एक दूसरी किताब निकाली और वहां बने घोंसले का चित्र दिखाया।”

P_20170802_134954_1_pआख़िर में वे कहते हैं, “उसके मन में व जेहन में ‘घोंसला’ को लेकर, उसके चित्र को लेकर और वास्तविक वस्तु को लेकर जो कनेक्शन बने हुुुए हैैं, उसका एक सहज अनुभव मिला।”

(अपनी इस पहली पोस्ट के जरिए मुकेश भागवत जी ने एजुकेशन मिरर के लिए लिखने का अपना वादा पूरा किया। वे शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर निरंतर चिंतन करते रहते हैं। लेखन के क्षेत्र में उनके बड़े योगदान की उम्मीद है।)

 

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